Why Everyone Wants Brahmin Vote – समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव (Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav) और बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती (Mayawati) , दोनों ही उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव (2019 Lok Sabha election) के बाद से सत्ता का स्वाद नहीं चखा है। 2022 के विधानसभा चुनाव सामने हैं ऐसे में दोनों अपनी नींद से जाग रहे हैं। अब दोनों ने अपने वोट बैक को खंगालना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि उनकी सबसे पहली नज़र ब्राह्मण वोटर्स (Brahmins) पर हैं।
ब्राह्मण सम्मेलनों की सियासत

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने ब्राह्मणों के समुदाय के बीच एक विशेष अभियान (special campaign) का नेतृत्व करने के लिए ब्राह्मण नेता सतीश मिश्रा (Brahmin leader Satish Mishra) को चुना है। इधर जैसे ही मायावती ने अपना अभियान शुरू किया, एसपी भी मैदान मेें कूद पड़ी। एसपी के ब्राह्मण कैडर को याद आ गया कि कैसे बीएसपी ने सत्ता में रहने के दौरान एससी-एसटी एक्ट के जरिये झूठे केस दर्ज कराकर उनका उत्पीड़न किया था। एसपी नेता अभिषेक मिश्रा ने तो कह भी दिया कि ब्राह्मण मायावती के अत्याचार शायद नहीं भूले हैं।
Why Everyone Wants Brahmin Vote-2017 से बीजेपी के साथ हैं ब्राह्मण वोटर्स
उत्तर प्रदेश में पिछले चुनावों पर नज़र डालें तो साल 2017 में विधानसभा चुनाव (2017 Assembly election) हुए उसमें यह वोटर्स बीजेपी (Bharatiya Janata Party) के पीछे खड़े दिखे। ठीक इसी तरह साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को ब्राह्मणों (Brahmins) को जबरदस्त समर्थन मिला। मुद्दा राम मंदिर का हो या बाकी जातिगत राजनीति, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी ब्राह्मणों ने बीजेपी का कमल खिलाया। अब सवाल यह है कि आखिर देश के सबसे बड़े राज्य (biggest State of India) में इस वोट बैंक को सभी सियासी दल क्यों हथियाना चाहते हैं? आखिर क्यों इतना अहम है ब्राह्मणों का वोट..?
पुरानी है जातिगत सियासत
यूपी में जाति पर आधारित राजनीति पुरानी है। इसी राजनीति के साथ -साथ ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यकों (OBCs, Dalit and minority) पर दांव लगते रहते हैं और साथ में सफर करते हैं भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और नीति पक्षाघात जैसे नकारात्मक पहलू।
Why Everyone Wants Brahmin Vote-15 फीसदी आबादी पर सबकी नज़र

ब्राह्मण मतदाताओं के पीछे राजनीतिक दलों के भागने पीछे की वजह स्पष्ट है। क्योंकि राज्य में करीब 15 फीसदी ब्राह्मण हैं। प्रदेश के करीब 18 से 20 जिले ऐसे हैं, जहां 20 प्रतिशत या उससे अधिक ब्राह्मणों की आबादी है। गोरखपुर, गोंडा, बलरामपुर, बस्ती, अयोध्या, संत कबीर नगर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, रायबरेली, वाराणसी, कानपुर, प्रयागराज, उन्नाव, कन्नौज, भदोही, झांसी, मथुरा, चंदौली जिलों में ब्राह्मणों की संख्या अच्छी है। इन जिलों में चुनाव को ब्राह्मण प्रभावित करने की स्थिति में है।
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2007 में बीएसपी के इस नारे ने फूंकी थी पार्टी में जान….
अब आपको याद दिला दें 2007 का वह नारा जिसने जाटव-ब्राह्मण सामाजिक गठबंधन की शुरुआत की, जिसने बीएसपी प्रमुख मायावती को यू.पी. में सत्ता में पहुंचा दिया। कहा भी जाता है कि नारे और स्लोगन किसी भी अभियान की जान होते हैं, शायद यह बीएसपी के थिंक टैंक की रचनात्मक ही थी कि इस राजनीतिक आख्यान को जातिवाद से जोड़ा गया जो करिश्माई साबिक हुआ। नारा था - 'ब्राह्मण शंख बजाएंगे तो हाथी बढ़ता जाएगा (If the Brahmin keeps blowing the conch, the elephant will keep moving forward)'। 2007 के चुनाव में सपा के खिलाफ प्रदेश में माहौल था और कांग्रेस, भाजपा मजबूत लड़ाई में नहीं थे। दूसरी तरफ बीएसपी ने सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला चलाकर ब्राह्मणों को साध लिया। उस चुनाव में सतीश चंद्र मिश्र की अगुआई में बीएसपी ने ब्राह्मण सम्मेलन किया और 86 ब्राह्मण चेहरों को टिकट भी दिया। यही फॉर्मूला काम कर गया।
Why Everyone Wants Brahmin Vote-सत्ता ब्राह्मणों के साथ…?
ब्राह्मण यूपी में इस वक्त स्विंग वोटर (impactful swing voters) माना जा रहा है। साल 2007 में यह मायावती के साथ गया तो उनकी सरकार बनी। साल 2012 में यह एसपी के साथ आया तो अखिलेश की सरकार बनी (Akhilesh Yadav became the Chief Minister)। साल 2017 में ब्राह्मण बीजेपी के साथ खड़ा हो गया और योगी सरकार बन गई। लेकिन इस बार यूपी में किसकी सरकार बनेगी, क्या यह भी ब्राह्मण तय करेंगे, यह बड़ा सवाल है….।
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By- Kavita Sanghaik