VirBhadra Singh के बाद कहां जाएगी हिमाचल की राजनीति?

Virbhadra singh
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वीरभद्र सिंह (Virbhadra singh) इस नाम की एक आम हिमाचली की ज़िंदगी में गहरी पैठ का अंदाज़ा होने के लिए आपको यहां का होना होगा..। हर तबके, हर सोच, हर पीढ़ी के हिमाचली के लिए आज का दिन मार्के का रहेगा..। यूं तो हर जान बराबर ही बेशकीमती होती है, बतौर राज्य ये कोविड-19 से मिला अब तक का सबसे बड़ा झटका है.

VirBhadra Singh के बाद कांग्रेस का क्या?

अगर यशवंत परमार को आप हिमाचल में सबसे ऊंचे कद का नेता मान लें, जैसे गांधी भारत के लिए थे तो वीरभद्र सिंह का दर्जा हिमाचल के नेहरू सरीखा होगा..। वजह सिर्फ इतनी भर नहीं है कि उन्होंने 60 साल बतौर विधायक या सांसद और 20 से ज़्यादा साल बतौर मुख्यमंत्री बिताए..। वजह ये है कि किस तरह उन्होंने सार्वजनिक जीवन के ये साल बिताए..।

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प्रदेश ने खो दिया एक सक्षम नेतृत्व

अगर प्रदेश की राजनीति में आपको बिकाऊ एमएलए, नित नई बनती और टूटती पार्टियां, गुंडे-बदमाश और माफियाओं से संक्रमित राजनीति नहीं दिखती तो एक अहम वजह वीरभद्र रहे हैं..। विकास के अनेक मानकों में हिमाचल अगर देश के पहले तीन राज्यों में आता है तो इसमें वीरभद्र सिंह के योगदान को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता..। शिमला के सियासी गलियारों में लोग जानते हैं कि वीरभद्र उन नेताओं में नहीं थे जो फैसले लेने के लिए सरकारी बाबुओं की अक्ल पर आश्रित रहते हैं. उनके भीतर खुद भी एक सक्रिय प्रशासक हमेशा मौजूद रहा.

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VirBhadra Singh के बाद

कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को भी शायद ये अंदाज़ा ना हो कि उन्होंने क्या खोया है..। वीरभद्र एक मंझे हुए राजनेता थे, अपने विरोधियों को काबू में रखना भी जानते थे..। लेकिन इसके लिए छिछले स्तर पर नहीं उतरे..। अगर पार्टी से उनके असंतोष रहे भी तो उन्होंने इसका तमाशा नहीं बनाया. जो मौका पार्टी से मिला उसे और ज़्यादा के लालच में ज़ाया नहीं किया..। आजकल के नेताओं को उनके सलाहकार सिखाते हैं कि ख़राब प्रचार भी अच्छा प्रचार है और सुर्खियों में बने रहने के लिए अनाप-शनाप भी बोलना पड़े तो अच्छा ही है. लेकिन वीरभद्र के मामले में उनका एक भी ऐसा बयान याद नहीं पड़ता जिसे आप अनर्गल कह सकें..।

पूरे प्रदेश में जनाधार रखने वाले नेता थे वीरभद्र

VIRBHADRA

हिमाचल की राजनीति की विभाजन- रेखा धर्म और जाति से ज़्यादा क्षेत्र और संस्कृति पर आधारित रही है..। ऊपरी इलाकों के पहाड़, जहां से वीरभद्र खुद थे और पंजाब की संस्कृति के ज़्यादा असर वाले निचले इलाके..। कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने इस ध्रुवीकरण को अपने-अपने तरीके से भुनाया है..। लेकिन वीरभद्र के बाद ऐसा नेता खोजना मुश्किल है जो ऊपरी इलाकों में तो गहरा जनाधार रखता ही हो, निचले हिमाचल में भी अपना दमखम साबित कर सकता हो.

VirBhadra Singh के बाद कौन बनेगा मास लीडर

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आरोप उन पर भी लगे, आय से ज़्यादा संपत्ति के, सरकारी नौकरियों में चिटों के ज़रिए भर्तियों के..। रजवाड़ाशाही, वंशवाद..इन मामलों में उन्हें आदर्श कहना मुश्किल होगा..। लेकिन कोई भी आरोप उनके दामन से चिपका नहीं रह सका..। इसकी इकलौती वजह थी लोगों के बीच उनकी स्वीकार्यता..।

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चौराहे पर खड़ी कांग्रेस का अगुवा कौन?

वीरभद्र सिंह के बाद अब प्रदेश की कांग्रेस चौराहे पर खड़ी है..। उसे ना सिर्फ प्रदेश में आगे का रास्ता चुनना है बल्कि ये भी तय करना है कि किसकी अगुवाई में उस रास्ते पर चलना है..। कांग्रेस के लिए ये कोई छोटी बात नहीं है क्योंकि हिमाचल अब भी उन गिने-चुने राज्यों में है जहां पार्टी अपने मरणासन्न नहीं है और अपने पैरों पर खड़ी है..। लेकिन राज्य में पार्टी के मौजूदा हालात को देखकर लगता है कि अगले चुनाव में उसे जीतने के लिए अब सिर्फ अपनी कारगुज़ारियों की नहीं, बल्कि बीजेपी की भी गलतियों की मदद चाहिए होगी..।

VirBhadra Singh के बाद

पड़ोस के उत्तराखंड को देखकर डर लगता है. क्या इस युग के अंत के बाद शिमला की कुर्सी के लिए भी वैसा ही म्यूज़िकल चेयर का खेल झेलना होगा हमें..?

FROM-Avarna Deepak