What’s special in the K series squid game-दक्षिण कोरिया की ड्रामा सीरीज़ स्क्विड गेम (Squid Game) लोकप्रियता के सारे रिकॉर्ड तोड़ रही है. 17 सितंबर को रिलीज़ होने के बाद से ये नेटफ्लिक्स पर नब्बे से भी ज़्यादा देशों में नंबर वन शो है. 10 करोड़ से भी ज़्यादा लोग इसे देख चुके हैं. सोशल मीडिया पर सीरीज़ से जुड़े हैशटैग छाए हुए हैं.
खेल में क्या..?

कर्ज़ और नाकामी के बोझ तले पिस रहे 456 लोगों को बेहद मोटे ईनाम का लालच देकर बच्चों को छह खेल खेलने के लिए जुटाया जाता है. सभी खेल एक अंजान जगह पर होते हैं. नकाबपोश और हथियारबंद लोग इन खेलों को संचालित करते हैं. कुछ खेलों में अकेले ही मुकाबले में उतरना होता है, कहीं टीम बनाने की इजाज़त होती है. विजेता सिर्फ एक ही हो सकता है और हारने वालों को तुरंत मौत बख्श दी जाती है.
यह भी पढ़ें: Amazon original hush hush की घोषणा, इस सीरीज़ में होंगे सभी महिला किरदार
हालांकि सीरीज़ का कथानक कोई ऐसा भी अनूठा नहीं है. ऐसे खेलों की कहानियां जिनमें इंसानी जान दांव पर लगी हो, कई दशकों से दर्शकों को लुभा रही हैं. 1975 में आई अमेरिकी फिल्म रोलरबॉल्स से लेकर साल 2000 की बैटल रॉएल और इसके बाद आई हंगर गेम्स, ऐसी कई फिल्में और नाटक हैं जो “डेथ गेम्स” की थीम पर बने हैं और सुपरहिट रहे हैं.
फिर स्क्विड गेम में ऐसा क्या ख़ास है?
अब तक इस तरह की फिल्में और ड्रामा ज़्यादातर साइंस फिक्शन रहे हैं और भविष्य की प्रलय की बात करते हैं. लेकिन स्क्विड गेम की कहानी वर्तमान परिवेश की है. कहानी के मुताबिक सारे खेल दुनिया के अरबपतियों के मनोरंजन के लिए खेले जाते हैं. खेल में शामिल आम लोगों को बैरकों में रखा जाता है. वो महरूमियत में पिस रहे हैं और पैसे की प्रतिस्पर्धा में एक दूसरे की जान की भी परवाह नहीं करते. जबकि धनकुबेर दर्शक आलीशान कमरों में इस खूनी खेल का मज़ा लेते हैं.
छलावा है लोकतंत्र…
लेकिन खिलाड़ियों पर खुलेआम तानाशाही की जा रही हो, ऐसा भी नहीं है. वोट करने का हक उन्हें भी है. अगर बहुमत की राय खेलों को बंद करने की होती है तो नियम के अनुसार खूनी खेल बंद हो जाएंगे. लेकिन ये लोकतंत्र छलावे से ज़्यादा कुछ नहीं क्योंकि खेल का शिकार बने लोगों के पास चुनने के लिए दो ही विकल्प हैं- या तो गुरबत की गर्त में गिरो या फिर सेठों के दिल बहलावे के प्यादे बनकर ज़िंदा रहो और पैसे कमाने की कोशिश करो.
पूंजीवाद के खेल की झलक
आपको ये कुछ-कुछ दुनिया की मौजूदा हकीकत जैसा नहीं लगता? क्या इसी तरह दो फीसदी धनकुबेरों का पूंजीवाद बाकी दुनिया को अपने इशारों पर नहीं नचा रहा? क्या पूंजीवाद लालच को खुदा और ज़हरीली प्रतस्पर्धा को उसकी पूजा नहीं बना रहा? क्या इस अराध्य और अराधना दोनों में इंसानियत पीछे नहीं छूटती जा रही? कौन है जो दुनिया में दो वर्गों की मौजूदगी से इनकार कर सकता है- कठपुतली सर्वहारा और उनकी डोर खींचने वाले पूंजीपति.
स्क्विड गेम को बनाने वाले जानते हैं हमारे दौर का दुश्मन कौन है जो आंखों के सामने है लेकिन फिर भी नज़र नहीं आता. उन्हें ये भी मालूम है कि इस दुश्मन से उसी के बनाए नियमों पर चलकर जीतना मुमकिन नहीं है. स्क्विड गेम दरअसल पूंजीवाद के खेल की ही झलक है. इसीलिए इतने सारे लोगों के दिलों को छू रही है.
From Avarna Deepak-FB wall