Unknown Facts About Swami Vivekanandaji- स्वामी विवेकानंद ने 14 वर्षों तक लड़ा था ये केस

Unknown Facts About Swami Vivekanandaji
Unknown Facts About Swami Vivekanandaji

Unknown Facts About Swami Vivekanandaji- महान संतों के जीवन की कई घटनाएं प्रेरणादायक होती हैं.बहुत सी ऐसी बातें हैं जिनके बारे में हम में से बहुत कम लोग जानते हैं. स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़े ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण घटनाक्रम से हम आपको रूबरू करा रहे हैं.

सत्य को हजार तरीके से बताया जा सकता हैं फिर भी सत्य एक ही होगा.

जब तक तुम खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक तुम भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते.

तुम्हे अन्दर से बाहर की तरफ विकसित होना है. कोई तुम्हे पढ़ा नहीं सकता, कोई तुम्हे आध्यात्मिक नहीं बना सकता. तुम्हारी आत्मा के अलावा कोई और गुरु नहीं है.

शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है. विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है. प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है.

बस वही जीते हैं,जो दूसरों के लिए जीते हैं.

14 वर्षों तक केस लड़ा

विवेकानंद जी (Swami Vivekanandaji) सन्यासी बनने के बाद भी अपने कर्तव्य विमुख नहीं हुए थे. इसका उदाहरण उनका अपने घर की समस्या से अंत तक जूझना था. वास्तव में उनके चाचा तारकनाथ के देहांत के बाद उनकी पत्नी ज्ञानादासुन्दरी ने इनके परिवार को उनके पैतृक घर से बाहर निकाल दिया था. जिसके लिए विवेकानंद ने 14 वर्षों तक केस लड़ा था , और फिर अपने जीवन के आखिरी शनिवार को 28 जून 1902 के दिन उन्होंने कुछ मुआवजा भरकर ये केस बंद करवाया था.

1887 में वाराणसी में विवेकानंदजी, स्वामी प्रेमानंद के साथ चल रहे थे, तभी वहाँ पर बंदरों का समूह आ गया,और सभी सन्यासी इधर-उधर भागने लगे,और अव्यवस्था हो गयी.लेकिन एक बुजुर्ग सन्यासी ने चीखकर कहा रुको- और जानवरों के सामने खड़े हो जाओ ,ये सुनकर विवेकानंद और उनके सहयोगी प्रेमानन्दजी उन बंदरों के सामने खड़े हो गये, इस सन्दर्भ में विवेकानंदजी ने न्यूयॉर्क के भाषण में कहा था कि “कभी भी समस्याओं से डरकर ना भागे,हिम्मत के साथ उनका सामना करो,यदि हमें अपना डर मिटाना हैं तो बाधाओं के सामने हमे डटकर खड़ा रहना होगा.

सभी इंसान एक समान

Swami-Vivekananda
Swami-Vivekananda

1888 में आगरा और वृन्दावन के मध्य मार्ग में उन्हें एक व्यक्ति चिलम फूंकते हुए दिखा,स्वामीजी ने रुककर उससे चिलम मांगी,उसने कहा कि आप साधू हो और मैं वाल्मीकि कुल का हूँ, स्वामीजी उठकर जाने लगे तभी उन्होंने सोचा कि मुझे इसका चिलम काम में क्यों नहीं लेना चाहिए?? उन्होंने कहा-मैंने सन्यास ग्रहण किया है ,मैंने परिवार और जाति के बंधन को तोड़ दिया हैं,ये कहकर वो चिलम पीने लगे. स्वामीजी ने इस सन्दर्भ में कहा था कि भगवान के बनाये सभी इंसान एक समानहैं,इसलिए किसी के लिए भी जाति निर्धारित द्वेष भाव मन में न रखे.

गुरु के प्रति समर्पण

स्वामीजी का अपने गुरु के प्रति समर्पण भाव का मार्ग भी काफी रोचक था. 1890 में विवेकानंद जी ने एक बार किसी महान पहाड़ी बाबा के बारे में सुना,जो गुफा में रहते थे और बहुत कम खाना खाते थे. विवेकानंद ने उनसे दीक्षा लेने की सोची,लेकिन दीक्षा की एक रात पहले उनके सपने में स्वामी राम कृष्ण परमहंस आये और उनके पलंग के पास उन्हें देखते हुए उदास भाव से खड़े रहे. विवेकानंदजी ने तुरंत दीक्षा का विचार त्याग दिया लेकिन उनके गुरु का उनके सपने में आने का क्रम अगले 15-20 दिन तक चला,इसलिए अंतत: उन्होंने अपने मित्र को लिखा कि अब वो किसी भी बाबा के पास नहीं जायेंगे.

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अर्ध-चेतन की अवस्था में आभास

विवेकानंद जी जब ऋषिकेश में थे तब उन्हें मलेरिया हो गया था,और उनके पास कोई डॉक्टर नहीं था,और उनकी स्थिति इतनी खराब थी कि उन्हें डॉक्टर के पास भी नहीं ले जाया जा सकता था. तब एक बुजुर्ग सन्यासी आया और उसने स्वामीजी को शहद और पीपल का चूर्ण दिया जिससे उनकी तबियत में सुधार हुआ. उन्होंने आँखें खोलते ही कहा कि अर्ध-चेतन की अवस्था में उन्हें आभास हो गया था कि उन्हें परमात्मा का कोई महत्वपूर्ण कार्य करना हैं,और जब तक मैं वो ना कर लू तब तक मुझे शांति नहीं मिल सकती.

Sir John Lubbock और स्वामीजी

मेरठ में प्रवास के दौरान विवेकानंद सर जॉन लुब्बोक्क (Sir John Lubbock) के संग्रह से एक वोल्यूम लेकर पढ़ते थे,उनके लिए स्वामी अखंडानंद वो किताब सिटी लाइब्रेरी से लाते थे जिसे स्वामीजी अगले दिन ही लौटा देते. लाइब्रेरियन को शक हुआ कि स्वामीजी पढ़ते भी हैं या नहीं? एक दिन स्वामीजी खुद उस लाइब्रेरियन से मिले जिसने उनसे वोल्यूम के सवाल पूछे तब उसे पता चला कि स्वामीजी ने ना केवल वोल्यूम पढ़े हैं बल्कि उन्हें याद भी कर लिया हैं.v