Uniform civil code- यूनिफार्म सिविल कोड (uniform civil code) लागू होने पर सभी धर्मों के लोगों पर शादी-ब्याह, तलाक, गोद लेने, विरासत संपत्ति बंटवारे आदि को लेकर एक ही कानून लागू होगा।
माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर यूनिफॉर्म सिविल कोड (#UniformCivilCode) लगातार टॉप पर ट्रेंड कर रहा है । यूजर्स इस बात की अटकलें लगा रहे है कि सरकार संसद के इसी सत्र में इससे जुड़ा बिल पेश कर सकती है। केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड की चर्चा जोर पकड़ गई थी। सरकार ने 2019 में जब जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष प्रावधान करने वाली संविधान की धारा 370 को खत्म कर दिया तो समान नागरिक संहिता लागू किए जाने की उम्मीद भी बढ़ गई। दरअसल, बीजेपी अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करने, जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाने और देश में समान नागरिक संहिता लागू करने को दशकों से अपने अजेंडे में शामिल करती आई है।
Uniform civil code
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड संविधान निर्माताओं के सपनों को पूरा करने की दिशा में भी एक प्रभावी कदम होगा… उत्तराखंड में जल्द से जल्द यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने से राज्य के सभी नागरिकों को समान अधिकारों को बल मिलेगा.
अब समाज में धर्म, जाति और समुदाय की पारंपरिक रूढ़ियां टूट रही हैं, इसलिए समय आ गया है कि संविधान की धारा 44 के आलोक में समान नागरिक संहिता की तरफ कदम बढ़ाया जाए।
Uniform civil code
आइए जानते हैं कि आर्टिकल 44 में क्या है जिसका उल्लेख दिल्ली हाई कोर्ट ने किया है…
क्या कहता है आर्टिकल 44
संविधान के भाग चार में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत का वर्णन है। संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 के जरिए राज्य को विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर सुझाव दिए गए हैं और उम्मीद की गई है कि राज्य अपनी नीतियां तय करते हुए इन नीति निर्देशक तत्वों को ध्यान में रखेंगी। इन्हीं में आर्टिकल 44 राज्य को उचित समय आने पर सभी धर्मों लिए ‘समान नागरिक संहिता’ बनाने का निर्देश देता है। कुल मिलाकर आर्टिकल 44 का उद्देश्य कमजोर वर्गों से भेदभाव की समस्या को खत्म करके देशभर में विभिन्न सांस्कृतिक समूहों के बीच तालमेल बढ़ाना है।
Uniform civil code-डॉ. भीमराव आंबेडकर ने क्या कहा था
संविधान सभा में प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संविधान निर्माण के वक्त कहा था कि समान नागरिक संहिता अपेक्षित है, लेकिन फिलहाल इसे विभिन्न धर्मावलंबियों की इच्छा पर छोड़ देना चाहिए। इस तरह, संविधान के मसौदे में आर्टिकल 35 को अंगीकृत संविधान के आर्टिकल 44 के रूप में शामिल कर दिया गया और उम्मीद की गई कि जब राष्ट्र एकमत हो जाएगा तो समान नागरिक संहिता अस्तित्व में आ जाएगा।
धारा 44 -सभी धर्मों और समुदायों के लिए एक ही कानून
डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा में दिए गए एक भाषण में कहा था, ‘किसी को यह नहीं मानना चाहिए कि अगर राज्य के पास शक्ति है तो वह इसे तुरंत ही लागू कर देगा…संभव है कि मुसलमान या इसाई या कोई अन्य समुदाय राज्य को इस संदर्भ में दी गई शक्ति को आपत्तिजनक मान सकता है। मुझे लगता है कि ऐसा करने वाली कोई पागल सरकार ही होगी।’
स्पष्ट है कि हमारे संविधान निर्माताओं ने समान नागरिक संहिता को भले ही तत्काल लागू नहीं किया था, लेकिन धारा 44 के जरिए इसकी कल्पना जरूर की थी। वो चाहते थे कि सभी धर्मों और संप्रदायों के लोगों के लिए एक जैसा पर्सनल लॉ हो। इसलिए, उन्होंने नीति निर्देशक सिद्धांत के तहत अपनी भावना का इजहार कर दिया। इस आर्टिकल के जरिए संविधान निर्माताओं ने साफ कहा कि राज्य इस बात का प्रयास करेगा कि सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता बने जिसे पूरे देश में लागू किया जाए।
सभी धर्मों और समुदायों के लिए एक ही कानून
इसी उम्मीद में उन्होंने उस वक्त अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ बनाने का समर्थन किया था। अब संबंधित धर्म के पर्सनल लॉ के मुताबिक ही उसके मानने वालों में शादी, तलाक, गुजारा भत्ता, गोद लेने की प्रक्रिया, विरासत से जुड़े अधिकार आदि तय होते हैं। जिस दिन से देश में समान नागरिक संहिता लागू हो जाएगी, उसी दिन से शादी से लेकर विरासत से जुड़े मामलों में भी सभी धर्मों और समुदायों के लिए एक ही कानून लागू होगा।