घूमने के लिये कर्नाटक राज्य का विजय नगर बहुत खास है। यह डेक्कन का अंतिम गैर मुसलमान हिंदू साम्राज्य था, जो काफी अमीर भी हुआ करता था। विजय नगर की राजधानी हम्पी इस समय यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज की लिस्ट में शुमार हो चुकी है। हम्पी नाम पंपा से निकला है, जो तुंगभद्रा नदी का एक अन्य नाम है। पंपा भगवान ब्रह्मा की बेटी थी, जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ। बाद में यह नदी रूप में परिवर्तित हो गर्इं। इसी नदी के दक्षिणी किनारे पर हम्पी शहर है।
हॉस्पेट से हम्पी तक

हम्पी पहुंचने के लिए हॉस्पेट तक पहुंचना होगा, जहां पहुंचने के लिए रेलवे की सुविधा है। हॉस्पेट से हम्पी लगभग पौने घंटे की दूरी पर है, जहां ऑटो या बस के ज़रिए पहुंचा जा सकता है। एक छोटी सी जगह, जहां दूर- दराज तक केवल अवशेष और बड़े- बड़े पत्थर ही दिखते हैं। ऐसा महसूस होता है मानो आप पत्थरों के किसी शहर आ गए हैं। यही नहीं, वर्ल्ड हेरिटेज घोषित हो जाने के बाद यहां भवनों के निर्माण पर प्रतिबंध लगा है। तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित यह जगह खंडहरों के अवशेष के लिए इतनी मशहूर है कि विदेशी सैलानियों की संख्या यहां देशी सैलानियों से ज्यादा देखने को मिलती है।
घूमने के लिये हंपी के टीले खास

इन अवशेषों को देखने से ही पता चलता है कि किसी समय में यह एक भव्य और समृद्ध राज्य रहा होगा। कर्नाटक राज्य में स्थित हम्पी में घाटियों आैर टीलोां के बीच पांच सौ से अधिक स्मारक चिह्न हैं। मंदिर, तहखाने, जलाशय, पुराने बाजार, शाही मंडप, गढ़, चबूतरे, राजकोष जैसे कई अवशेष एक समृद्धशाली राज्य की गाथा कहते जान पड़ते हैं।
मौर्य राज्य का हिस्सा रहा है हंपी

बेल्लारी जिले में आने वाला हम्पी 3वीं सदी बीसी के दौरान मौर्य राज्य का भी हिस्सा हुआ करता था। नित्तूर आैर उडेगोलन में निकले पत्थरों के अवशेष इसकी पुष्टि करते हैं। इसी स्थान से एक ब्रााह्मी लिखावट आैर टेराकोटा सील भी प्राप्त हुई है, जिस पर 2 सदी सीई उल्लेखित है। 1343 से लेकर 1565 तक विजय नगर साम्राज्य में हम्पी को सबसे बेहतरीन माना जाता है। यही वजह है कि बाद में डेक्कन मुसलमानों ने इसे अपना बना लिया।
हम्पी को इसलिए चुना गया क्योंकि यह एक ओर तुंगभद्रा नदी आैर बाकी तीन ओर से पहाडि़यों से घिरा था। 1800 में पहली बार हम्पी के अवशेषों का सर्वेक्षण स्कॉटिश कर्नल कोलिन मैकेन्जी ने किया, जो पहले सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया थे। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया इस क्षेत्र में सर्वेक्षण करता रहता है।
द्रविड़ आर्किटेक्चर की मिसाल

द्रविड़ आर्किटेक्चर की कहानी कहते हम्पी के इमारतों को धार्मिक, सिविल आैर मिलिट्री भवनों में बांटा जा सकता है। हेमकुट पहाड़ी के जैन मंदिर, दो देवियों के धार्मिक स्थल आैर विरुपक्ष मंदिर परिसर के कुछ अवशेष विजय नगर साम्राज्य की कहानी बयान करते हैं। शिव की मूर्ति के चालुक्य समय के होने के संकेत मिले हैं, यानी 9वी- 10वीं सदी एडी के आस- पास के। यहां सड़क के किनारे आपको कई स्तंभ दिख जाएंगे। यहां के अधिकतर निर्माणों में ग्रेनाइट, जली र्इंटें आैर लाइम मोर्टार का प्रयोग किया गया है। बड़े पत्थरों आैर लिंटल सिस्टम का इस्तेमाल यहां के निर्माणों में मुख्य रूप से उपस्थित है। http://www.indiamoods.com/macau-in-asia-is-best-tourist-place-for-summer-vacations/
घूमने के लिये गोपुरा खास
विशाल दुर्ग की दीवारों पर मलबे की टुकड़ों के साथ बेतरतीब तरीके से अनियमित आकार के पत्थर लगे हैं, जिन्हें जोड़ने के लिए किसी भी बाइंडिंग चीज का इस्तेमाल नहीं किया गया है। प्रवेश द्वार के ऊपर के गोपुरा को पत्थर आैर र्इंट से बनाया गया है। छतों को भारी ग्रेनाइट स्लैब से बनाया गया है, जिसे वॉटर प्रूफ करने के लिए ब्रिक जेली आैर लाइम मोर्टार का इस्तेमाल किया गया है।
दिखते हैं इंडो- इस्लामिक डिज़ाइन

विजय नगर आर्किटेक्चर ने इंडो- इस्लामिक डिज़ाइनों को खुले हाथों से अपनाया था। तभी तो क्वीन्स बाथ आैर हाथी अस्तबल में में इंडो- इस्लामिक रंग दिखता है। 1565 सीई में हुए तालिकोटा के युद्ध के बाद विजय नगर का साम्राज्य ढहने लगा था। इस युद्ध के बाद जीवन्त मंदिरों आैर नायाब धार्मिक, शाही, सिविल आैर मिलिट्री निर्माणों के जरिए हमें उस शाही साम्राज्य की आर्किलॉजिकल झलकियां आैर भव्य जीवनशैली देखने को मिलता है।
विट्ठला मंदिर परिसर

हम्पी का विट्ठला मंदिर परिसर निस्संदेह सबसे शानदार है। इसके मुख्य हॉल में 56 स्तंभ हैं, इनमें से एक को थपथपाने पर इतना करिश्माई संगीत निकलता है कि सुनने वाला मंत्रमुग्घ हो जाता है। हालांकि अभी कुछ साल पहले ही इस स्तंभ को चारों ओर से घेरकर सुरक्षा प्रदान की गई है। पूर्व हिस्से में पत्थरों से बना एक विशाल रथ है, जिसके पहिए भी पत्थरों से बने है। अपने समय में यह रथ इन्हीं पहियों के मदद से चलता था। इस मंदिर तक पहुंचने वाली सड़क कभी बाजार का हिस्सा था, जहां घोड़ों को बेचने- खरीदने का काम किया जाता था। अभी भी यदि आप ध्यान से देखें तो सड़क के दोनों ओर बाजार के अवशेष दिखते हैं। http://www.indiamoods.com/shimla-train-start/
इस मंदिर में घोड़े बेचते फारसी लोगों की तस्वीर भी उकेरी हुई हैं। यहां प्रवेश के लिए तीन गोपुरम हैं आैर साथ ही कल्याण मण्डप एवं उतव मण्डप भी हैं। यहां एक बड़ा पुष्करणी (सीढि़यों वाली टंकी), वसंतोत्सव मण्डप, कुआं आैर दूर- दूर तक पानी पहुंचाने के लिए चैनल्स भी बने हुए हैं।
पंपावती मंदिर है खास

इसे पंपावती मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, जो हम्पी बाजार में स्थित है। इस मंदिर में तीन गौपुरा (प्रवेश के लिए दरवाजे) हैं। बड़ा टावर 160 फुट का है, जो मुख्य प्रवेश द्वार है। इससे छोटा टावर अंदर के मंदिर के परिसर में ले जाता है। तीसरे टावर को कनकागिरी गोपुरा कहा जाता है। यह अन्य धार्मिक स्थलों की ओर आैर फिर तुंगभद्रा नदी की ओर ले जाता है। छोटा वाला गोपुरा आैर खूबसूरत मण्डप को राजा कृष्ण देवराय ने 1510 ईसवी में अपने राज तिकल के समय बनवाना शुरू किया था, जिसे पूरा होने में 500 से अधिक साल लग गए। इस मंदिर परिसर में शिव जी की मूर्ति के अलावा, भुवनेश्वरी आैर पम्पा की भी मूर्तियां हैं। इस मंदिर में आज भी लोग पूजा- पाठ करते हैं।

लक्ष्मी नरसिंह की मूर्ति के ठीक बगल में यह शिवलिंग यह चेंबर में बना है लेकिन सामने की ओर खुला है। इस मूर्ति की तीन आंखें हैं। यह शिवलिंग जहां स्थापित है, वहां ऐसी व्यवस्था की गई है कि पानी हमेशा भरा रहे। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, सूखे के निदान के लिए गंगा नदी को स्वर्ग से धरती पर लाया गया। लेकिन नदी की धार इतनी तेज थी कि यह धरती को दो हिस्सों में बांट देती। तब भगवान शिव ने गंगा नदी को अपनी जटा पर धारण किया आैर अपनी जटा से नदी को धरती पर गिराया।
कृष्ण मंदिर परिसर

यह आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा सुरक्षित इमारत है, जिसे राजा कृष्णदेव राय ने 1513 के दौरान बनवाया था। इस मंदिर के सामने के हिस्से में कृष्णदेवराय द्वारा उकेरित एक पत्थर भी है। विजय नगर साम्राज्य के खत्म हो जाने के बाद इस मंदिर को पूरी तरह से भुला दिया गया था, इसका प्रयोग पूजा के लिए नहीं किया जाता था। करीब दस- पंद्रह साल पहले कृष्ण मंदिर बाजार की खोज की गई आैर इसके रेस्टोरेशन का काम आज भी चालू है। इसके पूर्वी हिस्से में पवित्र टंकी भी है, जिसे लोग पुष्करनी कहते हैं।
लोटस महल है खास

इसे कमल के फूल की तरह डिजाइन किया गया है। यह जनाना इनक्लोजर के अंदर है, जिसका प्रयोग विजय नगर साम्राज्य की महारानियां किया करती थीं। इसेे कमल महल या चित्रागनी महल के नाम से जाना जाता है। यह हम्पी के उन गिने- चुने इमारतों में से एक है, जो टूटे- फूटे नहीं हैं। इसकी बालकनी आैर रास्तों को गुंबद से ढका गया है, जो खुले हुए कमल की तरह दिखता है। बीच के गुंबद को भी कमल की कली की तरह बनाया जया है। इस इमारत को इस्लामिक टच दिया गया है, जबकि इसकी छत का डिजाइन हिंदू स्टाइल का है।
भारतीय आैर इस्लामिक आर्किटेक्चर के जोड़ का यह अनूठा नमूना है। यह महल दो मंजिल का है, जिसके चारों ओर दीवार आैर चार टावर बने हैं। ये टावर भी पिरामिड आकार हैं ताकि कमल से दिख सकें। खिड़कियों आैर बालकनी को खड़ा करने के लिए 24 स्तंभों की मदद ली गई है। खिड़कियों आैर स्तंभों पर समुद्री जीव आैर पक्षियों के पैटर्न उकेरे गए हैं। कहा जाता है कि राजा कृष्णदेवराय की महारानी अपना अधिकतर समय यहीं व्यतीत करती थीं।
जैन मंदिर और हाथी अस्तबल

हेमकुट जैन मंदिर, रत्ननत्रयुक्त, पाश्र्वनाथ चरण आैर गनिगत्ती जैन मंदिर यहां स्थित हैं। इन मंदिरों से अधिकतर मूर्तियां गायब हैं। अवशेष बताते हैं कि ये मंदिर 14वीं सदी के हैं। यह भी राजा कृष्णदेवराय के समय का अस्तबल है, जहां शाही हाथियों को रखा जाता था। इसके समीप ही एक अन्य इमारत है, जहां शाही हाथियों के महावत रहा करते थे। यहां आपको इंडो- इस्लामिक आर्किटेक्चर का नमूना भी देखने को मिलता है।
पत्थरों के पाइप से पहुंचता है पानी
हम्पी में आज भी आपको दूर- दूर तक पानी पहुंचाने के लिए पत्थरों को सलीके से काटकर बनाए गए पत्थरों के पाइप दिख जाएंगे। यही नहीं, पत्थर की बनी प्लेट भी आगन्तुकों को सहज तौर पर विस्मित करती है, जिसमें कटोरियां भी बनी हुई हैं। हम्पी घूमते समय हमारे गाइड ने जब ये पत्थर के पाइप आैर पत्थर की प्लेट दिखाई तो मन में उत्सुकता जागी कि आखिरकार इन पाइप से पानी कहां- कहां तक पहुंच जाता होगा। पूछने पर पता चला कि लोटस महल तक पानी पहुंच जाया करता था, जो उस जगह से करीब 4- 5 किलोमीटर की दूरी पर होगा।
आज हम भले ही हम दूसरे देशों को तकनीक में स्वयं से आगे होने की बात करते हों लेकिन सच तो यह है कि हमारे पुरखे बहुत दूर की सोच रखते थे। आैर इस दूर की सोच का जीता- जागता सबूत हम्पी है, जिसे यूनेस्को ने भी वर्ल्ड हेरिटेज साइट का मुकुट पहना दिया है।