Landslides In Hills-पहाड़ों में आने के लिए सही वक्त चुनना कितना ज़रूरी है. भाई, समझो. अब 15-20 साल पहले जैसी बात नहीं रह गई है. विकास का फावड़ा हिमालय को बुरी तरह खोद रहा है. वो यूं भी दुनिया के सबसे नए बने पहाड़ हैं इसलिए वैसे ही कच्चे हैं. सही मौसम में आपको आकर देखना चाहिए किन्नौर में अंधाधुंध बिजली परियोजनाओं ने वहां के पहाड़ों के साथ क्या किया है.
स्थानीय लोगों की सलाह ज़रूरी

स्थानीय लोगों को फिर भी मौसम का बेहतर अंदाज़ा रहता है. वो जानते हैं किस मौसम में घर से नहीं निकलना है. उन्हें ऐसी सड़कों पर गाड़ी चलाने का ज़्यादा अभ्यास होता है, वो वैकल्पिक रास्तों को जानते हैं. लेकिन कोई बाहर से अगर ग़लत मौसम में पहाड़ों का सफर कर रहा है तो जोखिम तो रहेगा ही. हिमालय के पहाड़ों की दूसरी बदनसीबी ये कि कई सरहदें उनसे होकर गुज़रती हैं..
Landslides In Hills-हाईवे का खमियाज़ा
बॉर्डर पर चीन के बुनियादी ढांचे को टक्कर देने का जो ख़ामियाजा पहाड़ों के लोग भुगत रहे हैं, उसके लिए किन्नौर जितना दूर जाने की भी ज़रूरत नहीं. आप अपने यहां कुल्लू के ही उन लोगों से पूछकर देख लीजिए जिनके लिए हाइवे पर सफर करना मजबूरी है. ऐसी कोई बरसात नहीं गुज़रती जिसमें या तो कोई इस हाइवे पर मौत का शिकार ना हो या फिर मरते-मरते ना बचे. जिस सड़क पर ये हादसा हुआ है वो भी चीन की सरहद तक लेकर जाती है.
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सरहदों का सितम
सही मौसम में भी ये सड़क ख़तरे से खाली नहीं है. ज़रा सी हवा तेज़ हो तो भी पत्थर गिरते रहते हैं. ऐसे में बरसात के दौरान सांगला घाटी जाने का फैसला दुस्साहस ही कहा जाएगा. मैं ये नहीं कह रहा कि सरहद पर हम सामने वाले मुल्क से कम साबित हों. चीन के साथ सरहद पर बुनियादी ढांचे का अंतर पाटना तो बेहद ज़रूरी है. लेकिन फिर काम कैसे करवाया जाता है, ये भी चीन से सीख सकते हैं.
Landslides In Hills-बदला ले रहे पहाड़?

जिस तरीके से हिमाचल में रणनीतिक सड़कें ( Roads in Himachal) बनी हैं, उन्हें देखकर नहीं लगता कि जब उनका सर्वे हुआ होगा तो पहाड़ों को बचाना कोई बहुत ऊंची प्राथमिकता रही होगी. अब पहाड़ हर बारिश में बदला लेते नज़र आते हैं. दूसरी दिक्कत हमारे सिस्टम में काम शुरू तो हो जाता है लेकिन फिर अनवरत जारी रहता है. मानो सरकारें अपने विकास की मुंहदिखाई कई पीढ़ियों से करवाने की ज़िद पकड़ लेती हैं.
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हादसे से सबक लें
अगर वक्त पर काम ख़त्म हो जाएं तो भी शायद पहाड़ों का दरकना कम हो. लेकिन आप उन्हें रात-दिन खोदते ही रहेंगे तो ऐसे हादसे कैसे रुकेंगे. वो भी तब जब जलवायु- परिवर्तन का कोप हर बीतते साल के साथ और साफ होता जाता है. इस हादसे में मरने वालों का बहुत दुख है मुझे. घूमने के आनंद में डूबे कुछ लोग. अगली शाम, अगले काम का प्रोग्राम बना रहे होंगे. नई खींची तस्वीरों से रोमांचित होंगे और पलक झपकते ही ये… ऐसी मौत किसी को ना आए.
Avarna Deepak