The scent of saffron is spreading in Kashmir-कश्मीर के केसर की जब भी बात होती है तो खुशबू से मन महक उठता है। इन दिनों पंपोर के खेतों में इसकी खुश्बू बिखर रही है। पर्यटकों के लिये यह खास आकर्षण है। यहां के केसर के बारे में कहा जाता है कि व्यापारी बड़े-बड़े सूटकेस नोटों से भरकर लाते हैं और बदले में थोड़ी से खुशबू समेट कर ले जाते हैं। जामुनी रंग के फूलों के बीच में लाल रंग की पंखुड़ियां अलग कर इनकी पैकिंग की जाती है, इसी को सबसे बढ़िया केसर माना जाता है। अभी तक असली और नकली के फेर में पड़े केसर की पहचान पर शक किया जाता था लेकिन अब जीआई टैग मिलने के बाद यह समस्या खत्म हो गई है। अब कश्मीरी केसर अपनी असल पहचान के साथ विदेशों में खुशबू बिखेरेगा।
हवा में केसर की सुगंध जब बिखरती है तो रोम-रोम महक उठता है। केसर को कश्मीर में जीआई टैग मिलने के बाद लोग खुश हैं। उम्मीद जगी है कि अब हम धरती की इस जन्नत के शानदार प्रोडक्ट की सुगंध, स्वाद और करामाती रंग को पड़ोसियों ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के साथ साझा कर पाएंगे।
दुनिया भर में पहुंचेगा असली केसर
बहुत से लोग इस गफलत में रहते हैं कि स्पेनिश केसर (Spanish saffron) दुनिया में सबसे बढ़िया है और हमारा अपना तैयार किया हुआ केसर उससे कमतर है। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है । ऐसा केवल इसलिये हुआ क्योंकि कश्मीर के केसर में बड़े पैमाने पर मिलावट होती रही । जीआई टैग की मांग लंबे अरसे से थी और इसमें काफी वक्त लगा लेकिन इस लंबे रास्ते को तय करने के बाद अब ज्योग्राफिकल इंडीकेशन के बाद केसर अपनी पुरानी पहचान, गुणवत्ता और गौरव प्राप्त कर पाएगा । केसर को ज़ाफ़रान के नाम से भी जाना जाता है। दुनिया में वजन के हिसाब से सबसे महंगा मसाला है केसर । इसके कुछ ग्राम वज़न तैयार करने के लिये हज़ारों फूल की ज़रूरत होती है। (यानी करीब 45 हजार पत्तियों में से मात्र एक औंस केसर)। अगर दाम की बात करें तो केसर की सबसे प्रीमियम क्वालिटी प्रति किलोग्राम के हिसाब से 5 लाख रुपये तक बिकती है।
खाने में केसर
कीमत कुछ भी है लेकिन बीते कई वर्षों में केसर का इस्तेमाल भी खूब बढ़ा है। हालांकि इसके कारण हम इसके गुणों को भी कम आंकने लगे हैं। खाने में केसर का इस्तेमाल रस मलाई से लेकर जलेबी और पनीर टिक्का तक सबमें होता है। बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो असली और नकली केसर की अच्छी परख रखते हैं। जबकि कुछ लोग सोचते हैं कि इसकी क्वालिटी को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जाता है और उन्होंने जो क्वालिटी इस्तेमाल की वह मानकों के मुताबिक बिलकुल नहीं थी।
कैसे होती है खेती

यह तो हुई केसर के गुणों की चर्चा । अगर बात करें इसकी खेती की तो इसमें दो राय नहीं है कि यह बेहद कठिन और थका देना वाला कार्य है । छोटे परिवार जो भीड़भाड़ वाले इलाकों में रहते हैं , उनके द्वारा यह खेती नहीं की जा सकती, यानी उनके लिये इसकी मनाही है। बड़े और संयुक्त परिवारों में यह कई कारणों से हो पाती है। इसमें वक्त बहुत लगता है जबकि इसकी कटाई का सीज़न भी बहुत छोटा होता है। केसर का फूल बहुत छोटा होता है और पौधे पर ज़मीन से बहुत कम ऊंचाई पर खिलना शुरू हो जाता है। केसर के पूळ जब तोड़े जाते हैं तो इसे तोड़ने वाले को स्क्वैट पॉज़िशन या घुटनों के बल बैठना होता है। जो काफी मेहनत का काम है। इसके गुच्छे जर्दा या लच्छा कहलाते हैं। इसके गुच्छों से फूल हाथों से ही अलग किये जाते हैं।
कम मुश्किल काम नहीं है केसर तैयार करना
लोग छंटाई, ग्रेडिंग, फसल को सुखाने से लेकर इसकी पैकिंग जैसे विशिष्ट और मुश्किल कार्य सीमित स्थानों पर करते हैं । इस सीज़न के दौरान सभी परिवार के सदस्य केसर की फसल को खुशी-खुशी तैयार करते हैं ।
ऐसे ही एक दौरे पर किश्तवाड़ में हमें केसर की एक स्थानीय वेरायटी के बारे में पता चला। दरअसल मेजबान ने हमें इस केसर का एक छोटा सा कास्केट तोहफे में दिया । हालांकि हम इसके लिये उनके बहुत शुक्रगुज़ार थे क्योंकि यह केसर न केवल पेंपोर वाले केसर से अलग था बल्कि लाजवाब भी था।
केसरिया धरती
श्रीनगर से थोड़ी ही दूरी पर सिटी ऑफ लोटस पदमापुरा यानी पेंम्पोर है। इसके केसर और इससे महकती इस ज़मीन के बारे में एक बार जहांगीर ने अपनी डायरी में लिखा था कि जब वसंत के दिनों में यहां केसर की फसल लहलहाती है और खेत खिलते हैं तो कैसे सारी धरती केसरिया रंग में रंगकर बेहद खूबसूरत हो जाती है। प्रकृति प्रेमी और कुदरती खूबसूरती में यकीन करने वालों का मानना है कि पेंपोर की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेना हो तो यहां चांदनी रात में बेहतरीन अनुभव हो सकता है , क्योंकि तब जहां तक नज़र जाती है हर तरफ केसर के फूल खिली हुई चांदनी में बहुत सुंदर नज़र आते हैं।
केसर का सफर
पुरानी लोककथाओं में कहा जाता है कि ज़ाफ़रान को क्राइस्ट के जन्म के बाद 5 वीं शताब्दी के दौरान दो सूफी संतों द्वारा फ़ारस से लाया गया था। लोककथाओं के मुताबिक इन दोनों संतों को कोई गंभीर और पुराना रोग था जिसका इलाज एक स्थानीय चिकित्सक ने कर दिया। इससे खुश होकर इन दोनों संतों ने चमत्कारी गुणों वाला एक दुर्लभ फूल उन्हें भेंट किया। ईरान से भी इसके यहां तक पहुंचने की काफी संभावनाएं हैं क्योंकि कुछ प्रारंभिक ग्रंथों में कश्मीर को सगीर (छोटा ईरान) कहा गया है। वैसे कश्मीरी भोजन और शिल्पकला समेत भाषा और शिष्टाचार पर भी फ़ारस की गहरी छाप दिखती है।
कश्मीरी पंडितों की कहानी
हालांकि इस बारे में कश्मीरी पंडितों की परंपरा में कश्मीरी केसर एक अलग कहानी कहता है। इनके मुताबिक महान चिकित्सक वागभट को इसका जनक माना जाता है । कहा जाता है कि इक बार उन्होंने एक गंभीर नेत्र रोगी का इलाज किया था , जिसने खुश होकर उन्हें यह कीमती तोहफा दिया था। माना जाता है कि आयुर्वेद में और इससे तैयार होने वाले उत्पादों में केसर की मौजदूगी बहुत पहले से थी। आयुर्वेद के जानकार केसर के चिकित्कीय गुणों से भली भांति वाकिफ थे। 4वीं शत्बादी में बनी पारंपरिक चिकित्सा पद्वति को बताने वाले भावप्रकाश निगंतु में भी इसका ज़िक्र है।
पत्तियों में छुपा है सेहत का खज़ाना
केसर के परखे हुए गुणों के आधार पर कहा जा सकता है कि मज़बूत सेहत के लिये रामबाण है। शरीर को ताज़गी और फुर्ती से भर देता है। इसके अळावा इसे कामोदीपक माना जाता है। यह गुणकारी तत्व च्यवनप्राश जैसी आयुर्वेदिक औषधियों में ज़रूरी रूप से विद्यमान रहता है। राजस्थान के राजघरानों में विशेष अवसरों के लिए शराब बनाने के लिए इसे इस्तेमाल किया जाता था। इसके अलावा इससे एक और सुगंधित ड्रिंक केसर कस्तूरी तैयार होती है। केसर को गर्म तासीर वाला माना जाता है इसलिये खासकर यह सर्दियों का मसाला है।
इन पंक्तियों को लिखने के दौरान लेखक याद करते हैं कि कड़ाके की ठंड में केसर, इलायची और बादाम के साथ मिलाकर मां जब उन्हें दूध देती थी तो यह उनकी इम्युनिटी बढ़ाने के अलावा ठंड से बचाने का काम करता था। जब केसर हाथ में नहीं होता था तो उन दिनों में हल्दी की एक चुटकी, जिसे गरीबों का केसर भी कहते हैं दूध में केसर का काम करती थी।
शाकाहारी और मांसाहारी भोजन में भी केसर
केसर का उपयोग हमारे देश में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों व्यंजनों को स्वादिष्ट बनाने और गार्निश करने के लिए किया जाता है। बिरयानी की तो कल्पना करना असंभव है इसके बिना । केसर की कुछ पत्तियां जब खाने पर छिड़क दी जाती हैं तो उसका रंग ही नहीं बल्कि स्वाद भी बदल जाता है। ‘केसरी द रवा हलवा’ का तो नाम ही बता देता है कि इसमें केसर का रंग और स्वाद दोनों है। बहुत बार ऐसा भी होता है कि कुछ आर्टिफिशल कलर्स को केसर की जगह इस्तेमाल कर खाने को गार्निश किया जाता है। यह कन्फ्यूजन भी सही नहीं है कि केसर की कुछ किस्में ही गार्निश के लिये इस्तेमाल की जा सकती हैं। मसाला चाय की बात अलग है लेकिन अगर कश्मीर के कहवा की बात करें तो सुनहरे रंग की यह चाय सर्दियों की सुबह में जादू का काम करती है। केसर लखनऊ और हैदराबाद में बेशकीमती ‘ब्रेड शीर माल’को बनाने में इस्तेमाल होता है। यह बादाम के टुकड़ों के साथ मलाईदार दूध को गार्निश करने के लिये प्रयोग होता है। कुल्फी और फिरनी, खीर और कई मिठाइयाँ केसरिया गार्निश के बिना अधूरे लगते हैं।
ऐसे ही एक बार हमें बनारस में केसर बाटी का स्वाद चखने का मौका मिला जो केसरिया क्लॉटेड मिल्क का कॉम्बिनेशन था।
लड्डू और केसर का कॉम्बिनेशन
सबका प्रिय बूंदी का लड्डू तब और स्वादिष्ट बन जाता है जब इस पर सुगंधित केसर की कुछ पत्तियां छिड़क दी जाएं । लस्सी और ठंडई के केसर-युक्त पेय तो हमेशा से ही सादे ड्रिंक से थोड़ा ऊपरी पायदान पर रहते हैं। वहीं बंगाल में, केसर नारियल क्रीम में पकाया झींगा और ज़ाफ़रानी मछली करी की तो बात ही कुछ और है । ऐसा लगता है कि यह मुगल पाक प्रथाओं से काफी प्रभावित है । महाराष्ट्र में, केसर कई भोज्य पदार्थों में जरूरी तत्व है। हरे रंग की इलायची के साथ यह यहां के सुगंधित स्वादिष्ट श्रीखंड का अहम हिस्सा बन जाता है।
केसरिया रंग के मायने
यह केवल खाने-पीने की चीज़ों तक सीमित नहीं है। बल्कि इसका दायरा काफी व्यापाक है। केसर को विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता और शान का प्रतीक माना जाता है । केसरिया रंग वीरता, त्याग के साथ निस्वार्थ सेवा का प्रतीक माना जाता है। केसरिया बन्ना, केसरिया रंग के परिधानों में सजे-धजे युवा योद्धा को कहते हैं । राजस्थानी लोक गीतों में केसरिया बन्ना के गीत विशाल रेगिस्तान में गूंजते हैं। मीरा बाई के मशहूर भजनों में प्रेम और करुणा जैसे गुणों की प्रशंसा करने के लिए केसर के रंग का उपयोग हुआ। केसर, जिसे संस्कृत में कुमकुम कहा जाता है, पारंपरिक रूप से लगभग सभी अनुष्ठानों में इस्तेमाल होता रहा है। माथे पर लगाए जाने वाले टीके में केसर का रंग उसे और चमकदार बनाने के लिये किया जाता है। पुराने दौर में चंदन की तरह, केसर श्रृंगार का भी एक अनिवार्य हिस्सा था – यानी फॉरमल मेकअप था।
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इत्र की महक और केसर
परफ्यूमर्स यानी इत्र बनाने वालों ने इसका उपयोग पीढ़ियों के लिए मोहक इत्र में किया है। कन्नौज के टोबैकोनिस्ट ( (तंबाकू -पान मसाला बनाने वाले) जो भारतीय (इत्र) बनाने के लिए प्रसिद्ध है, वे कई पीढ़ियों से इसे इत्र बनाने के लिए प्रयोग कर रहे हैं। इत्तदा खान, मुत्तदा खान, बीते दिनों में ज़ाफरान की कई किस्में मुशकी दाना और इलायची दाना बनाने में करते थए, जो चांदी के अर्क में लिपटी होती थी। धर्म पाल प्रेम चंद और सत्य पाल जैसी सुगंधियां अपने महंगे प्रोडक्ट बाबा या तुलसी के साथ बरसों से केसर मिला रहे हैं। इन सुगंधियों का बखान करने के लिये आप सोच सकते हैं कि हम नशे को बढ़ावा दे रहे हैं लेकिन ऐसा नहीं है । तो क्यों न आप भी केसर युक्त, चांदी के वर्क में लिपटी हरी इलाइची से अपना माउथ प्रेश कर लें।
परफ्यूम में भी
फ्रांस में गुरलीन ने कश्मीरी केसर से प्रेरित होकर अपने मशहूर परफ्यूम का नाम शालीमार रखा। पूर्व एशियाई और दक्षिण पूर्व एशियाई व्यंजनों में केसर का प्रयोग नहीं होता लेकिन मध्य पूर्व और यूरोप के कुज़ीन में यह खूब पाया जाता है। इटली में रोसेटो का स्वाद बढ़ाने वाला केसर, सेपन में पेला समेत कई सीफूड में मिलाया जाता है। केसर की पत्तियां और इससे बने लड्डू हर तरह के त्योहारों की शोभा बढ़ाते हैं।
मुख्य लेख वरिष्ठ लेखक और पत्रकार पुष्पेश पंत ।-साभार