The life of the brave mothers of revolutionaries, Part -2-क्रांतिकारी मणींद्रनाथ बनर्जी की माता सुनयना की कथा भी कुछ कम कारुणिक नहीं है। इस माता ने अपने दो क्रांतिकारी बेटे खोए। अभी राजेंद्रनाथ लाहिड़ी की शहादत को महीना भर भी नहीं हुआ था कि मणींद्र ने उसका बदला लेने के लिए अंग्रेज़ों से रायबहादुर की उपाधि पा चुके उनके ख़ुफिया विभाग के कारकुन जितेंद्र बनर्जी को गोली मार दी। इसके लिए उन्होंने 13 जनवरी की तारीख़ चुनी, जो संयोग से उनका जन्मदिन भी थी। घटनास्थल था वाराणसी का दशाश्वमेध घाट। गोली मारने के बाद एक बार तो मणींद्र भाग निकले, मगर थोड़ी ही देर बाद लौट आए और गिरे पड़े जितेंद्र के पास जाकर पूछने लगे, ‘राय बहादुर, लाहिड़ी की फांसी का ईनाम तुम्हें मिल गया न?’
आखिरी बार बेटे से मिलने की इच्छा रही अधूरी

पकड़े गए तो उन्हें दस साल की सज़ा हुई और 1934 में फतेहगढ़ केंद्रीय कारागार में लंबी भूख-हड़ताल के बाद मन्मथनाथ गुप्त व यशपाल की उपस्थिति में अंतिम सांस ली तो उनकी विद्रोही संस्कार वाली साहसी माता सुनयना को आखि़री बार उन्हें देख सकना भी नसीब नहीं हुआ। साल भर पहले ही सुनयना ने ऐसे ही एक सत्याग्रह के बाद अपने एक और बेटे भूपेंद्रनाथ बनर्जी को खोया था और किसी से कोई चंदा आदि लिए बिना अपनी संपत्तियां बेंचकर मणींद्र के मुक़दमे की पैरवी करती रही थीं। वर्ष 1937 में मन्मथनाथ गुप्त जेल से छूटकर आए तो इस मां ने न सिर्फ उन्हें आश्रय दिया बल्कि अपना सारा स्नेह उन पर उड़ेल दिया। लेकिन 23 फरवरी, 1962 को गुमनाम मौत से पहले तक देश की ओर से उन्हें इसका जो सिला मिला, क्रांतिकारियों के लेखक सुधीर विद्यार्थी के एक वाक्य में वह इस प्रकार है : ‘जानें क्या-क्या सहते झेलते तुम हमसे विदा ले गईं, माता सुनयना!’
The life of the brave mothers of revolutionaries, Part -2-
बटुकेश्वर दत्त की मां कामिनी देवी उनके जीते जी चल बसी थीं। वरना स्वतंत्र भारत में अपने क्रांतिकारी बेटे की दुर्दशा उन्हें रोज़ एक नयी मौत मारती। बटुकेश्वर को उम्रक़ैद की सज़ा हुई तो भगत सिंह ने उनसे कहा था, ‘तुम्हें ज़िंदा रहकर सिद्ध करना होगा कि क्रांतिकारी सिर्फ मरना ही नहीं जानते, वे ज़िंदा रहकर हर मुश्किल का जीवटता से सामना भी कर सकते हैं।’ बटुकेश्वर ने उम्रक़ैद के बाद से 1965 में अपनी मृत्यु से पहले के आज़ाद भारत में भयानक असहायता, दारुण निर्धनता, त्रासद गुमनामी और असहनीय जिल्लत भोगकर भी भगत सिंह को सही सिद्ध किया। इस बीच उन्हें एक सिगरेट कंपनी में छोटी-सी नौकरी का अभिशाप भी झेलना पड़ा।
The life of the brave mothers of revolutionaries, Part -2-
खुदीराम बोस (Khudiram Bose) अपनी शहादत के वक़्त इस अर्थ में अनाथ थे कि जब वे छह साल के थे, तभी पहले उनकी मां लक्ष्मीप्रिया देवी और बाद में चिता त्रिलोक्यनाथ बोस का प्राणांत हो गया था। इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में, जो अब आज़ाद पार्क है, पुलिस द्वारा घेर लिए जाने पर ख़ुद ही ख़ुद को शहीद कर लेने वाले चंद्रशेखर आज़ाद की मां जगरानी देवी को बहुत दिनों तक कोदो खाकर अपने पेट की आग बुझानी पड़ी। पंडित जवाहरलाल नेहरू को मालूम हुआ तो उन्होंने उनके लिए 500 रुपये भिजवाये। हां, बाद में सदाशिव मल्कारपुरकर जैसा बेटा पाकर वे धन्य हो गईं। सदाशिव आज़ाद के सबसे विश्वासपात्र सैनिकों में से एक थे और उन्होंने 22 मार्च, 1951 को अपने सेनापति की जन्मदात्री के निधन और अंतिम संस्कार तक उनके प्रति अपने सारे फ़र्ज़ निभाए। यहां तक कि अपनी आस्थाओं के प्रतिकूल उन्हें तीर्थयात्राएं भी कराईं।
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बेटे के अचानक लौट आने का अंधविश्वास रखती थीं
माता जगरानी आज़ाद को संस्कृत का प्रकांड विद्वान बनाना चाहती थीं। इसके बदले वे शहीद बन गए तो भी उन्हें किसी दिन उनके अचानक लौट आने का अंधविश्वास था। उन्होंने इसके लिए मन्नत मानकर अपनी दो उंगलियों में धागे बांधे हुए थे और कहती थीं कि उसे आज़ाद के आने के बाद खोलेंगी। आज़ाद के लिए रोते-रोते उन्होंने अपनी आंखें भी ख़राब कर डाली थीं। लेकिन बाद में सदाशिव की सेवाओं से इतनी खुश रहने लगी थीं कि अपने आसपास के लोगों से कहतीं, ‘चंदू यानी चंद्रशेखर आज़ाद रहता तो भी सदाशिव से ज्यादा मेरी क्या सेवा करता?’
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आखिरी वक्त में बेटे की गोद में सोई वह मां
सदाशिव को ऐतिहासिक भुसावल बम केस में 14 साल का काला पानी हुआ था और उनकी सज़ा के दौरान ही उनकी मां इस संसार को छोड़ गई थीं। जगरानी में वे अपनी दिवंगत मां की छाया महसूस करते थे और उन्हें गर्व था कि उनके कालापानी के दिनों में भूख-प्यास तक भूल जाने वाली इस मां ने अंततः उनकी गोद में ही आखि़री सांस ली। लेकिन, झांसी में इस वीर माता की समाधि का सन्नाटा कभी-कभी ही टूटता है। अन्यथा वह लावारिस-सी पड़ी रहती है और वहां कोई उसे प्रणाम करने नहीं जाता।
SH.Krishnapratap is a Senior Writer and Journalist-
कृष्णप्रताप एक वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं-