कोरोना से अनाथ हुए बच्चों और अपनों को खोने वाले लोगों के दर्द की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन इस बीमारी ने जिन बच्चों के सिर से उनके माता-पिता का साया छीन लिया, उनके दु:ख और परेशानियों की थाह लेना असंभव है। माता-पिता के न रहने के कारण ये बच्चे न केवल Emotional Challenges का सामना कर रहे हैं, बल्कि financial troubles से भी जूझ रहे हैं, जिसके कारण उनके भविष्य पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं।
कोरोना से अनाथ बच्चों के आंकड़े नहीं मिल रहे

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने बताया कि महामारी के कारण 3,621 बच्चों के माता-पिता दोनों की मौत हो गयी है और 26,000 से अधिक ऐसे बच्चे हैं, जिनके माता या पिता में से किसी एक की मौत हो चुकी है। 10 वर्षीय दीपिका के पिता की करीब एक महीने पहले कोविड-19 के कारण मौत हो गयी थी और अब वह अपने जीवन को पटरी पर लाने की कोशिश कर रही है, लेकिन उसकी मां कल्पना सिन्हा ने कहा, ‘चीजें पहले की तरह सामान्य कभी नहीं हो पाएंगी।’ कल्पना के 57 वर्षीय पति एक हिंदी प्रकाशन घर के संपादक थे और परिवार में कमाने वाले एकमात्र व्यक्ति थे। कल्पना ने कहा, ‘मैं हमेशा गृहिणी रही हूं। मैं अचानक से बाहर काम करना कैसे शुरू करूं?’
गरीबों के बच्चों की मुश्किलें
इसी प्रकार, उत्तम नगर में रहने वाले गौरव (13) और रोहन (6) के पिता ई-रिक्शा चालक थे और परिवार में कमाने वाले एकमात्र व्यक्ति थे, लेकिन उनकी भी संक्रमण के कारण मौत हो गई। पिता की मौत के बाद उनकी परेशानियां बढ़ गई हैं। गौरव और रोहन की मां मधु गुप्ता ने कहा, ‘मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या-क्या संभालूं- अपने बच्चों को, उनके भविष्य को या खुद को। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा और मुझे डर लग रहा है।’
यह भी पढ़ें: कोविड पर सियासत चरम पर, प. बंगाल और दिल्ली नहीं दे रहे कोरोना से अनाथ हुए बच्चों का आंकड़ा
कोरोना से अनाथ बच्चों की व्यथा
दिल्ली में ऐसे ही तीन भाई-बहनों ने मई के पहले सप्ताह में अपने माता-पिता दोनों को खो दिया था। इन बच्चों की आयु नौ साल, 11 साल और 13 साल है। इन बच्चों का जीवन और भी कठिन तब हो गया, जब किराया नहीं दे पाने के कारण उनके मकान मालिक ने उन्हें घर से चले जाने को कह दिया। ऐसे में उनका मामा आरिफ मोहम्मद, जो वेल्डिंग का काम करता है, उनकी देखभाल के लिए आगे आया। आरिफ जैसे लोगों और कल्पना एवं मधु जैसी मांओं की मदद करने के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व वाला गैर सरकारी संगठन ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ (BBA) ऐसे बच्चों की पहचान कर रहा है, जो महामारी के कारण अनाथ हो गए हैं।
यह भी पढ़ें:Mental Immunity की भी समझें अहमियत, बड़ों के साथ बच्चों पर भी कोरोना का असर
बचपन बचाओ आंदोलन की भी सीमायें
बचपन बचाओ आंदोलन के निदेशक मनीष शर्मा ने कहा, ‘हमारे स्वयंसेवक ऐसे बच्चों का पता लगाने और उन्हें भोजन एवं आश्रय देकर राहत देने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन हमारे संगठन की भी सीमाएं हैं। हम बच्चों को दीर्घकालिक सहायता देने के लिए राज्य सरकार के अधिकारियों के संपर्क में हैं।’
एजेंसी