The 5 big movements of India -आजा़दी हमें बहुत बलिदानों के बाद मिली है। हम आज आज़ाद भारत में सांस ले रहे हैं तो हमारे पूर्वजों के प्रयासों और कुर्बानियों की बदौलत। आज हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो इन्हीं वीरों और शहीदों की बदौलत ये मौके हमें नसीब हुए हैं। इस लेख में हम आपको बता रहे हैं देश के उन 5 बड़े आंदोलनों के बारे में जिन्होंने अंग्रेज़ी हुकूमत की नींव हिलाकर उन्हें भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था।
असहयोग आंदोलन-1920-22

असहयोग मतलब अंग्रेज़ों को सहयोग ना देना इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था। अंग्रेज़ों के बनाये गये सामान का बहिष्कार करना।
1 अगस्त 1920 को औपचारिक रूप से असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुयी,उसी दिन लोकमान्य तिलक ने अपनी आखिरी सांस ली थी। महात्मा गांधी ने अली बंधुओं के साथ पूरे देश का भ्रमण किया, और रैलियां की। हजारों की संख्या में छात्रों ने स्कूल और कॉलेज छोड़ दिए एवं उस दौरान स्थापित कए गये 800 से ज्यादा स्कूल कॉलेज में दाखिला लिया।
शुरुआत 1 अगस्त 1920
नेतृत्व – -मोहनदास करमचंद गांधी
आंदोलन का कारण -जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड
आंदोलन की समाप्ति -12 फरवरी 1922
आंदोलन की समाप्ति का कारण -चौरी-चौरा काण्ड
The 5 big movements of India-चौरी चौरा कांड- 12 फरवरी 1922

चौरी चौरा कांड गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में 4 फरवरी 1922 को हुआ था, जब असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा समूह पुलिस के साथ भिड़ गया था।
जवाबी कार्रवाई में, प्रदर्शनकारियों ने हमला किया और एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी, जिससे उसमे सभी रहने वाले सभी कब्जाधारियों की मौत हो गई।
घटना के कारण तीन नागरिक और 22 पुलिसकर्मी मारे गए।
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कूका विद्रोह-1857
सिख संप्रदाय के नामधारी कूके लोगों के सशस्त्र विद्रोह को ‘कूका विद्रोह’ के नाम से जाता है। सन् 1857 ई. गुरु राम सिंहजी के नेतृत्व में कूका विद्रोह हुआ।
कूका के लोगों ने पूरे पंजाब को बीस-बीस जिलों में विभाजित किया और अपनी समानांतर सरकार बनाई।
कुके वीर की संख्या सात लाख से ऊपर थी। अधूरी तैयारी में विद्रोह भड़क उठा और इसीलिए इसे दबा दिया गया।
The 5 big movements of India-नील विद्रोह 1859-1860
सन् 1859 से 1860 ई. तक नील किसान और अंग्रेज़ों के मध्य पहला संगठित आंदोलन चलाया गया जिसे नील आंदोलन के नाम से जाना जाता है। उस दौरान
बिहार और बंगाल में बहुतायत नील की खेती की जाती थी जिससे अंग्रेज बनिये खूब धन कमाते थे और वे संथाल मजदूरों का भरपूर शोषण करते थे। जिसके कारण शोषित मजदूरों ने विद्रोह कर दिया।
जिसमे अंगेज़ों की कई कोठियाँ जला दी गयी, अंग्रेज़ों को मार दिया गया था। जिसके फलस्वरूप शोषितों का शोषण बंद हो गया।
बंग-भंग आंदोलन-1905-1912
बंगाल में स्वदेशी आंदोलन पहले से ही चल रहा था। इसके तहत विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग को प्रोत्साहित किया जा रहा था।
इसी तरह, सन् 1905 में भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल प्रांत के विभाजन की घोषणा की। इस घोषणा ने पूरे बंगाल को उत्तेजित कर दिया और विश्वास क्रांतिकारी समितियाँ सक्रिय हो गईं। बम और पिस्तौल का इस्तेमाल अत्याचारी अंग्रेजों के खिलाफ किया जाने लगा। यह आंदोलन न केवल बंगाल तक सीमित हो गया, बल्कि पूरे भारत की स्वतंत्रता के लिए एक आंदोलन बन गया।
16 अक्तूबर, 1905 पूरे बंगाल में शोक पर्व के रूप में मनाया गया

—योजना के क्रियान्वयन का दिन 16 अक्तूबर, 1905 पूरे बंगाल में शोक पर्व के रूप में मनाया गया। रवीन्द्रनाथ टैगोर तथा अन्य प्रबुद्ध लोगों ने आग्रह किया कि इस दिन सब नागरिक गंगा या निकट की किसी भी नदी में स्नान कर एक दूसरे के हाथ में राखी बाँधें। इसके साथ वे संकल्प लें कि जब तक यह काला आदेश वापस नहीं लिया जाता, वे चैन से नहीं बैठेंगे।
The 5 big movements of India
- 16 अक्तूबर को बंगाल के सभी लोग सुबह जल्दी ही सड़कों पर आ गये। हजारों लोग जेल गये; पर कदम पीछे नहीं हटाये। लाल, बाल, पाल की जोड़ी ने इस आग को पूरे देश में सुलगा दिया।
- इससे लन्दन में बैठे अंग्रेज शासक घबरा गये। ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम ने 11 दिसम्बर, 1912 को दिल्ली में दरबार कर यह आदेश वापस ले लिया।
- उन्होंने वायसराय लार्ड कर्जन को वापस बुलाकर उसके बदले लार्ड हार्डिंग को भारत भेज दिया।