राजनीति में लंबी पारी खेलने वाले दिवंगत पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह देश के दूसरे प्रधानमंत्री ( Lal Bahadur Shastri) के कहने पर सियासत में आये थे। कहा जाता है कि पढ़ाई पूरी करने के बाद वीरभद्र सिंह हिस्ट्री के प्रोफेसर बनना चाहते थे, लेकिन लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर वीरभद्र सिंह ने राजनीति में आ गये। पूर्व सीएम ने शिमला के बिशप कॉटन स्कूल (Bishop Cotton School) से अपनी पढ़ाई की थी।
Bishop Cotton School से स्कूल, सेंट स्टीफन से कॉलेज

इस स्कूल में पढ़ने वाले सहयोगी बताते हैं कि आज भी आने वाले हर व्यक्ति को वह रजिस्टर खोल कर दिखाया जाता है जिसमें 5359 रोल नंबर के सामने वीरभद्र सिंह का नाम लिखा हुआ है। एशिया के सबसे पुराने शिमला के बिशप कॉटन स्कूल से पढ़ाई करने के बाद वीरभद्र सिंह ने दिल्ली के सेंट स्टीफन्स कॉलेज से बीए ऑनर्स की पढ़ाई की।
उस दौर में देश के बड़े परिवारों के बच्चे ही इस स्कूल में पढ़ने आया करते थे। हालांकि उस समय यह किसी ने नहीं सोचा था कि इस स्कूल में पढ़ने वाला छात्र एक दिन देश-प्रदेश की राजनीति में बड़ा नाम कमाएगा।
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रोल नंबर 5359 के आगे लिखा है नाम

किसी आम विद्यार्थी की तरह वीरभद्र भी स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन आज स्कूल आने-जाने वाले हर एक व्यक्ति को वह रजिस्टर खोल कर दिखाया जाता है जिसमें 5359 रोल नंबर के सामने वीरभद्र सिंह का नाम लिखा हुआ है। शिमला के बिशप कॉटन स्कूल से पढ़ाई करने के बाद वीरभद्र सिंह ने दिल्ली के सेंट स्टीफन्स कॉलेज से बीए ऑनर्स की पढ़ाई की। वीरभद्र सिंह हिस्ट्री के प्रोफेसर बनना चाहते थे, लेकिन लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर वीरभद्र सिंह ने राजनीति में कदम रखा।
वीरभद्र सिंह के स्कूल bishop cotton school का इतिहास

शिमला का बिशप कॉटन स्कूल एशिया का सबसे पुराना स्कूल है। यह 28 जुलाई, 1859 को बना था। साल 1905 में स्कूल की बिल्डिंग में आग लग गई। इसके बाद साल 1907 में इसे फिर से बनाया गया। स्कूल अपने आप खुद में कई ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे हुए है। साल 1914 में हुए विश्व युद्ध के शहीदों के नाम भी इस स्कूल में सुरक्षित रखे गए हैं। 22 अक्टूबर 1947 को भारत पाक विभाजन के समय स्कूल के दरवाजे बंद कर दिए गए थे। इस समय यहां पाकिस्तान के 42 छात्र पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन विभाजन की वजह से इन विद्यार्थियों को स्कूल छोड़ना पड़ा था।
बिशप कॉटन के इरविन हॉल के बारे में जानें….
साल 1947 से लेकर साल 2009 तक विद्यालय के इरविन हॉल को इसलिये बंद रखा गया था क्योंकि इसी हॉल में स्पीच के दौरान पाकिस्तान के छात्रों को स्कूल छोड़ने के लिये कहा गया था। साल 2009 में इरविन हॉल के दरवाजे जब खोले गए, तब 62 साल पहले स्कूल छोड़कर जाने वाले छात्रों को भी इस में आमंत्रित किया गया था। यह लोग कालका-शिमला टॉय ट्रेन में सवार होकर स्कूल पहुंचे थे। यह पल ऐतिहासिक था।