Story of Lalquila- बहादुर शाह ज़फऱ के लिखे गीतों से सजी, 1960 में रिलीज़ यह फिल्म थी आजा़दी की कहानी

lal quilla 1960
lal quilla 1960

क्लासिक सिनेमा की जब भी बात होती है तो 1960 और उससे पहले बनी फिल्मों का ज़िक्र होता है। इस दौर में टेक्नॉलॉजी नहीं थी लेकिन टेलेंट कूट-कूट कर भरा था। 1960 में रिलीज़ आई ऐसी ही एक फिल्म थी, लाल किला…जिसे प्रोड्यूस किया था एचएल खन्ना, निर्देशक थे नाना भाई भट्ट, गीत लिखे थे खुद बहादुर शाह जफर ने और भरत व्यास ने। फिल्म का संगीत दिया था एसएन त्रिपाठी ने। अभिनय से सजाया था निरुपाराय, जयराज, हेलेन, कमल कपूर जैसे कलाकारों ने.. सुनिये ये गीत..इसके बारे में कहा जाता है कि यहर गज़ल बहादुर शाह जफर ने जेल के दिनों में दीवारों पर लिखी थी, क्योंकि उन्हें कागज़ कलम रखने की इजाज़त नहीं थी..

Story of Lalquila

लालकिला भी उनमें से एक है जिसे नानाभाई भट्ट ने 1960 में रिलीज किया था। बड़ी मजेदार बात यह है कि इसके सारे गीत बहादुर शाह जफर के लिखे हैं। 1960 तक तो बहादुर शाह जफर जीवित नहीं थे, मगर उनकी बेहद मकबूल रचनाओं को नानाभाई भट्ट ने उन्हें फिल्म के गीतों का रूप दे दिया और उनका यह प्रयोग बेहद सफल रहा। एसएन त्रिपाठी ने जैसा संगीत दिया है, लगता है, ये ग़ज़लें ऐसी ही गायी गयीं होंगी और फिर आवाज ने इन रचनाओं को और भी ऊंचा उठा दिया। लता, मोहम्मद रफी, शमशाद बेगम के सुरों में ये ग़ज़लें रच बस गयीं।

इस फिल्म की नायिका थीं निरूपा राय यानी अमिताभ बच्चन की फिल्मी मां। तब निरूपा राय जैसी हीरोइनों का ही बोलबाला था। हीरो तो जयराज थे जिन्हें फ्लैशबैक के पाठक कम ही जानते होंगे। मगर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझने के लिए यह फिल्म देखनी जरूरी है। यह काल 1857 के आसपास का है जब छोटी-छोटी रियासतों के राजा आपस में लड़ रहे थे और गोरी हुकूमत इसका फायदा उठा रही थी क्योंकि गोरी सरकार ईस्ट इंडिया कंपनी के जरिए तब भारत में पैठ बना चुकी थी। हर छोटी-बड़ी रियासत को उसने किसी न किसी तरह अपने शिकंजे में फंसा लिया था। अब उनकी निगाहें लालकिले पर थीं जहां हिंदुस्तान का बादशाह बहादुर शाह जफर आसीन था।

lal quila
lal quila

फिल्म की बात शुरू करने से पूर्व इस बादशाह के जीवन पर कुछ प्रकाश डाल दूं तो पाठकों को फिल्म बेहतर ढंग से समझ आयेगी। वैसे भी पीरियड फिल्में समझना दिक्कत का काम है। बहादुर शाह जफर उर्फ मिर्जा अबु जफर सिराजुद्दीन मुहम्मद मुगल सल्तनत के आखिरी बादशाह थे। वह अकबर द्वितीय के दूसरे बेटे थे। वह अपने बड़े बेटे जहांगीर द्वितीय को गद्दी पर बैठाना चाहते थे, लेकिन जहांगीर द्वितीय ने चूंकि अंग्रेजों के आवास पर हमला कर दिया था फलस्वरूप अंग्रेजों ने जहांगीर द्वितीय को बंदी बना लिया था, लिहाजा अंतिम राजशाही का मुकुट बहादुर शाह जफर के हिस्से आया। मुगलिया सल्तनत क्या थी—बस मुट्ठीभर रियाया के राजा। बहादुर शाह का शासन सिर्फ शाहजहांपुर तक ही महफूज था।

Story of Lalquila

हां, अंग्रेजों को लालकिला जरूर चुभ रहा था। बहादुर शाह जफर के चार बेगमों से 16 बच्चे थे। शायद यही कारण है कि उनके वंशजों की आज भी कोई न कोई ख्वाबो-खबर मिल ही जाती है। अभी ताजा-तरीन बनायी गयी एक डाक्यूमेंटरी फिल्म में उनकी बेटी कलसूम जमानी के जलावतन होने की कहानी है कि कैसे आधी रात को उसके अब्बा ने उन्हें उनके शौहर व छोटी बेटी समेत लालकिले से भागने की सलाह दी थी क्योंकि सुबह होते ही उन्हें भी जलावतन कर दिया जाना था। कलसूम कैसे भागी थी और आखिर मेें वह मक्का मदीना फिर बगदाद में भी रही थी।

कवि और शायर भी थे बहादुर शाह जफर

नौ बरस के बाद जब वह स्वदेश लौटी थी काफी गुहारों के बाद तो अंग्रेजों ने उन्हें 10 रुपये मासिक पेंशन देेने की बात मानी थी। शायद हिंदुस्तान की कीमत अंग्रेजों ने इतनी ही आंकी थी। लालकिला की कहानी 1857 के गदर में शामिल ‘विद्रोहियों’ की कहानी है जिसे परोक्ष रूप से जफर मदद कर रहे थे। वैसे भी जफर कवि हृदय थे इसलिए क्या हिंदू क्या मुसलमान सभी के लिए उनका रवैया एक सा था। इसलिए अंग्रेजों के खिलाफ एकमुश्त होकर लड़ने वाली रियासतों ने उन्हें हिंदुस्तान का राजा घोषित कर दिया और जफर को विद्रोह का नेतृतव संभालना पड़ा।

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लालकिले के अंदर अंग्रेज़ी दमन की दास्तान

जो फौजें रियासतों ने भेजी थीं, उनका और अपनी फौज का कमांडर अपने बेटे मिर्जा को सौंपकर खुद जफर विद्रोहियों के साथ अज्ञात स्थान पर चले गये। जैसे ही विद्रोह भड़का दिल्ली की सीमाओं पर लुटेरों ने लूटपाट कर दी। लालकिले की जेल में बंद कई बंदियों की सामूहिक हत्या कर दी। बद-अमनी देखकर अंग्रेजों ने मौका देखा और उन्होंने जफर के पुत्रों की हत्या कर दी। खुद भागे जफर को उन्होंने हुमायूं मकबरे से कैद करके रंगून भेज दिया जहां बीमार हालत में 87 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गयी।

1857 मेें उठे विद्रोह के इतिहास पर से पन्ने पलटती लालकिला

दरअसल यह मूवी दिल्ली के लालकिले के बहाने 1857 मेें उठे विद्रोह के इतिहास पर से पन्ने पलटती है। इसी लालकिले को जफर ने उन विद्राेह के शहीदों को समर्पित किया था जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के सर्वनाश के लिए पहली कील ठोकी थी। किस प्रकार सदियों पुरानी मुगलिया सल्तनत का कुछ ही दिनों में काम तमाम हो गया। इसी लालकिले में सागर सिंह हिंदू विद्रोहियों ने अपने आपको अंग्रेजी हुकूमत से छिपाया था।

1857 के गदर की कहानी

अंग्रेजों ने जो खून की होली खेली, उसे रोकने के लिए कई संतों, जिनमें रमदास का नाम भी लिया जाता है, के अलावा लक्ष्मी जैसी राजपूत वीरांगनाओं के नाम भी लिये जाते थे जिन्होंने तलवार उठायी थी। हिंदुस्तानी तो इस मौत के तांडव को रोकने की कोशिश कर ही रहे थे, अंग्रेजों में मेजर टेलर व उनकी बेटी हेलन भी काफी बीच-बचाव कर रहे थे। लेकिन लालकिला पर हुई कार्रवाई के बाद समूचे देश में विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। ब्रिटिश फौज से बगावत करने वाले मंगल पांडे भी इसका उदाहरण हैं। फिल्म की कहानी कुछ और नहीं, बल्कि 1857 के गदर की ही कहानी है। बाकी फिल्म देखने पर पता लगेगा।

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