राजस्थान के भानगढ़ का भूतिया इतिहास बहुत से लोगों को पता होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि भानगढ़ का ऐसा हाल क्यों हुआ? चलिये हम आपको बताते हैं भानगढ़ की भूतिहा हालत की कहानी…
कहा जाता है कि सिंघा सेवड़ा नामक एक तांत्रिक की तंत्र विद्या के कारण भानगढ़ उजड़ गया । हाल यह है कि करीब 400 साल बीत जाने के बाद भी भानगढ़ का वैसा ही हाल है। कहते हैं कि भानगढ़ के राजा बहुत विनम्र दयावान थे तो रानी रत्नावती बेहद रूपवती । इतनी धार्मिक कि बड़े-बड़े तंत्र विद्या वाले पस्त हो जाते। रानी को तंत्र विद्या से दिव्य शक्ति भी प्राप्त हुई थी।
तांत्रिक को भा गई रानी
एक बार सिंघा सेवड़ा नाम का एक धूर्त तांत्रिक भानगढ़ में आया और उसने महल के सामने वाली पहाड़ी पर अपना डेरा लगाया। वहाँ उसकी छतरी आज भी बनी हुई है। एक दिन उसने रानी रत्नावती को देखा तो बस देखता ही रहे गया तथा वह उसके मन में उतर गई। तब से वह उसे प्राप्त करने का उपाय खोजने लगा। एक बार उसने रानी रत्नावती को मतरा हुआ तेल भेजा तथा कहा कि यदि रानी इस तेल की मालिश करे तो वे अपनी हर मनोकामना को पूर्ण कर लेगी। लेकिन रानी स्वयं तंत्र-विद्या को जानने वाली थी, उसे फौरन पता चल गया कि तेल वशीकरण मंत्रों से भरा है। रानी ने उसी तेल से एक शिला बना डाली। इसी शिला से दुष्ट तांत्रिक सिंघा सेवड़ा पर वार किया। रानी के वार से वह मर तो गया लेकिन मरते-मरते वह अपने तांत्रिक प्रभाव से भानगढ़ को भी उजाड़ गया।
अरावली से घिरा है भानगढ़
भानगढ़ अलवर जिले में थानागाजी से मात्र तीस किलोमीटर की दूरी पर अरावली की सुरम्य पर्वत शृंखला की तलहटी में बसा हुआ उजाड़ नगर है। वहाँ आज भी सड़कें, नालियाँ, महल, मकान, मंदिर और गली-मौहल्ले सब कुछ यथावत है लेकिन वहाँ रहता कोई भी नहीं है। बल्कि देखने वाले भी सूर्यास्त से पहले ही वहाँ से सटक लेना चाहते हैं। एक अजीव सन्नाटा तथा भय सा उस नगर में पसरा हुआ है-जो हर मानव मन में आतंक सा पैदा करने लगता है। यहाँ के भग्न-भवनों में पुरातात्विक महत्व की अनमोल विरासत को दबे देखा जा सकता है। खण्डहर होती हवेलियाँ, रानी के महल, कुएँ, नर्तक की डेरा, तांत्रिक की छतरी, नक्कारखाना, परकोटा, मंगलामाता का मंदिर, भैरूजी का का मंदिर, दक्षिण भारतीय शैली के जीवंत अनेक स्मारक यहाँ आज भी उपलब्ध हैं।
मीणा करते थे शासन
इतिहास से जुड़े तथ्यों पर यकीन करें तो यहां शुरूआत में मीणा समुदाय का राज था। बाद में कछवाहों ने मीणा को हराकर राज्य छीन लिया। इतिहास बताता है कि सन् 1574 ई. में यहाँ की सुरम्य आभा से प्रभावित होकर आमेर के शासकों ने अकबर के शासनकाल में भानगढ़ को बसाया था। कहा जाता है कि उस समय भानगढ़ की आबादी करीब दस हजार थी। बाद में राजा मानसिंह प्रथम के छोटे भाई माधोसिंह ने इसे अपने राज्य की राजधानी भी बनाया। सन् 1574 में ही माधोसिंह ने अकबर के साथ देष के पूर्वी भाग के विजय अभियान में भाग लिया था। वे स्वयं महायोद्धा तथा बहादुर इंसान होने से अनेक युद्धों में अकबर के साथ रहे थे। यहाँ तक कि महाराजा प्रताप के खिलाफ भी अकबर की ओर से अपने भाई मानसिंह प्रथम के साथ उन्होंने युद्ध किया। अकबर की मृत्यु के बाद उसके पुत्र सलीम को बादशाह बनाने में इनका बड़ा हाथ रहा।
भानगढ़ के पास अजबगढ़
भानगढ़ के पास है अजबगढ़ 1635 ई. में भानगढ़ के अजबसिंह ने बसाया था। यह स्थल भी प्राकृतिक सुषमा की दृष्टि से बहुत समृद्ध तथा मनमोहक है। प्रकृति ने यहाँ अपना संपूर्ण वैभव लुटा दिया है। भानगढ़ की तरह ही अजबगढ़ भी सूना तथा उजड़ा कस्बा है लेकिन अब नयी आबादी से यहाँ चहल-पहल बढ़ रही है। जयसागर बांध हर किसी को आकर्षित करता है।
दर्शनीय स्थल हैं यहां
इसके अलावा रघुनाथ मंदिर, हाली बाबड़ी तथा अन्य पुरा सम्पदा से जुड़े प्राचीन शिलालेखों का अंबार मिलता है यहाँ, जो इतिहास को अपने में समेटे स्थापत्य का बेजोड़ उदाहरण बना हुआ है आज भी। थानामाजी से जानेवाली बसें बीच अजबगढ़ से गुजरती हैं तथा एक सांय-सांय भन्नाता नगर आंखों में जग जाता है। भानगढ़ यहां से पाँच किलोमीटर दूर पहाड़ी की तलहटी में मौन साधे खड़ा यहाँ से देखा जा सकता है। परकोटा भी जीर्ण शीर्ण हालत में है।
यह भी है कहानी
कुछ लोगों का मानना है कि भानगढ़ नाथ सम्प्रदाय के सिद्ध बाबा बालनाथ के हाथ से उजड़ा। दूसरा मत है कि मुगल शासन काल के बाद आमेर की राजधानी जयपुर बन जाने से यह धीरे-धीरे खाली हो गया। भानगढ़ आज मोस्ट हॉन्टेड पैलेस कहलाता है। यह ऐसा अजूबा है, जिसे देखकर हैरान हुए बिना नहीं रहा जा सकता।