Son-Daughter Balance is Important for Society-बेटियां न कभी बोझ थीं न मजबूरी, परिवार में बेटा-बेटी दोनों ज़रूरी

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Son-daughter balance is important for society-आजकल एक चलन बहुत बढ़ा है सोशल मीडिया भरा रहता है खुशनसीब होते हैं वो जिनकी बेटियां होती है । बेटी सबके नहीं भाग्यशाली के घर पैदा होती है । आप यदि मुझे क्षमा करें और बेटी विरोधी ब्रैंड न करें तो मैं कुछ कहना चाहती हूं । वास्तव में मुझे ये मानसिकता अतिश्योक्ति लगती है । पिछली सदी में एक एक्सट्रीम यदि बेटे का महत्व था तो अब बेटी का भी अनावश्यक रूप से बढ़ा चढ़ा कर बखान किया जा रहा है । समाज बेटा और बेटी दोनों के संतुलन से बनता है । दोनों की अपनी विशषेताएं और महत्व हैं । न कोई ज्यादा न कोई कम । मेरा तो कहना है बेटे को बेटा रहने दो और बेटी को बेटी रहने दो । न दोनों की तुलना करो और न ही कहो कि बेटियां ही हैं जो मां बाप की देखभाल करती है । बेटे भी करते हैं खूब अच्छे से करते हैं ।

मेरी बेटी मेरा अभिमान, बेटे को भी अपना मान

यदि सबके घर केवल लक्ष्मियां ही पैदा होती रहीं तो उनको विष्णु जी कहां से मिलेंगें । लक्ष्मी जी को अपने हृदय में धारण करने के लिए विष्णु जी भी तो चाहिएं । श्री यानी लक्ष्मी जी को यदि कोई श्रीधर नहीं मिला तो वे सरस्वती और नर्मदा बन जाएगीं लक्ष्मी नहीं रहेंगी । मेरी बेटी मेरा अभिमान ज़रूर कहिए लेकिन बेटे को भी अपना मान और अभिमान मानें । भाई को बहन की और बहन को भाई की आवश्यकता होती है । बहन के बच्चों को मामा चाहिए और भाई के बच्चों को बुआ । भरे पूरे परिवार भारतीय समाज की परंपरा रही है ।

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Son-Daughter ‍‍Balance is Important for Society- अपने-पराये का फर्क

मैं ये बात अपने अनुभव से कह रही हूं । हम भी दो बहनें ही हैं । और अब मेरी बहन के दो बेटे हैं । साठ के दशक में किसी भी दंपत्ति के लिए ये फैसला लेना कि दो बेटियां ही बहुत हैं बहुत साहसिक कदम था । तब आज के जैसा आधुनिक जमाना नहीं था । मेरे पापा जी का ये तय कर लेना की जैसी प्रभु इच्छा आसान नहीं था । लेकिन सच मानिए परिवार में बेटे और भाई की कमी सालती है दिल में टीस रहती है । यकीन मानिए आपका अपना भाई ही आपको वो मान सम्मान देगा जो एक बहन को मिलना चाहिए । आप भले ही परिवार में किसी को भी अपना बेटे और भाई का दर्जा दें दें । सभी नेग रस्में करवा लें ज़रूरी नहीं कि वो भी आपको वहीं मान सम्मान दें जो अपनी बेटी अपनी बहन को देते हैं । तीज त्यौहार पर आपका मान रखें ही ये भी ज़रूरी नहीं है । जो नेग रस्म शादी ब्याह गृहप्रवेश मुंडन भात छुछक आदि में मायके से होता है वो निभाना उनकी न जिम्मेदारी है न मजबूरी ।

भाई ही नहीं होगा तो मायका कैसे रहेगा?

अब आप ये भी कह सकते हैं कि अपने सगे भाई- भाभी कौन सा करते हैं । अपवाद छोड़ दें तो हर मायके से बेटी को तीज त्यौहार शादी ब्याह गृहप्रवेश मुंडन आदि में पूरा मान सम्मान दिया जाता है । यदि भाई ही नहीं होगा तो मायका कैसे रहेगा । बहनों का आपस में कितना भी प्यार हो लेकिन मायका तो माता पिता के बाद भाई भाभी से ही होता है । निसंदेह आज समाज में बहुत बदलाव आ रहा है । संयुक्त परिवार टूट गए हैं एकल परिवारों में दो बच्चे या फिर एक ही बच्चे का चलन बढ़ रहा है । बच्चों की सोच भी बदल रही है । हिंदु परिवार सिकुड़ते जा रहे हैं । मौसी, मामा, बुआ, ताऊ, चाचा, मौसा, फूफा के रिश्ते खत्म होते जा रहे हैं । बड़े परिवारों का अपना ही आनंद है । मेरे पापा 6 भाई एक बहन और बीजी चार बहनें एक भाई थे । भगवान की दया से भरा पूरा परिवार हमने आनंद लिया बड़े परिवारों का दादके और नानके दोनों में ।

Son-daughter balance is important for society-हिंदु परिवारों की सोच और आकार दोनों ही बदल रहे हैं

लेकिन अब तो हिंदु परिवारों की सोच और आकार दोनों ही बदल रहे हैं । और ये पूरे हिंदु समाज के लिए खतरे की घंटी हैं । आप देख लिजिए एक समुदाय विशेष अपनी जनसंख्या के बलबूते कैसे पूरी दुनिया और भारत के कुछ प्रांतो , कश्मीर , केरल, बंगाल में तबाही मचाए हुए है । जो अपने अलवा किसी को देखना ही नहीं चाहता । ईसाई पादरी हों या फिर लव जेहाद ,जमीन जेहाद निशाने पर तो हिंदु ही हैं । हिंदुओं की बेटियों को लव जेहाद में फंसा कर धर्म परिवर्तन केवल शगल नहीं एक सोची समझी साजिश है । मेरा कहना यही है कि अतिश्योक्ति न किजिए बेटे को बेटे का स्थान और बेटियों को बेटियों का स्थान दिजिए ।

ऋग्वेद काल से बेटियां ब्रह्मवादिनी हैं विदुषी हैं 64 कलाओं की ज्ञाता

Little boy brother consoling and supporting upset girl embracing sister
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आज से नहीं ऋग्वेद काल से बेटियां ब्रह्मवादिनी हैं विदुषी हैं 64 कलाओं की ज्ञाता रही हैं । ये जो समाज में बदलाव आया बाल विवाह घूंघट की प्रथा आयी उसके लिए आतयायी खबीस खूनी संस्कृति के पोषक मुगल आक्रमणकारी हैं । बेटियां न कभी बोझ थी न हैं । हर घर का आंगन बेटियों के बिना सूना है । बेटियों से घर में रौनक आती है । कितना अच्छा हो अपने मायके की ये लक्ष्मियां ससुराल जा कर भी गृह लक्ष्मियां बन कर रहें तो कोई नहीं कहेगा कि बेटों से अच्छी तो बेटियां हैं । जो अपने माता पिता का अभिमान हैं वो ससुराल का मान सम्मान भी बनें तो रिश्तों में, परिवार में संतुलन अपने आप आ जाएगा । मेरे अनेक भांजों और भतीजों को सौभाग्य से बहुत अच्छी पत्नियां मिली हैं जिनसे उनका अपना जीवन और पूरे परिवार का जीवन खुशहाल है ।

Son-daughter balance is important for society-क्यों आ रहा बदलाव

समाज में बदलाव और संतुलन हमारी सोच लाएगी न कि कानून । महिलाओं के पक्ष में बनें कानूनों का सदुपयोग के बजाए दुरूपयोग ज्यादा हो रहा है । जिसके कारण आज परिवारों में बिखराव, डर का वातावरण है रिश्तों में दरारें आ रही हैं । ये एक दूसरा विषय है जिस पर लंबी चर्चा हो सकती है और मेैं अनेक प्रमाणों के साथ आपको पुष्टि कर सकती हूं कि जब से रिश्तों में अदालतों और वकीलों का दखल बढ़ा है परिवार टूट गए हैं । समाज की सोच बदल रही है ।

बेटियों की दुआ…

बेटी और बेटा दोनों परिवार की धुरी हैं दोनों को समान रूप से महत्व है । जैसे एक पंख से पक्षी नहीं उड़ सकता वैसे ही केवल स्त्री या केवल पुरूष से समाज की रचना नहीं हो सकती । बेटियों की कामना होती है उनका मायका हमेशा बसता रहे तभी तो विदाई के समय वे अपने दोनों हाथ से धान घर में बिखेर कर जाती हैं ताकि उनका मायका धन– धान्य, भाई-भतीजों, भाभियों और भतीजियों से भरा रहे । जब ससुराल से उनका मायके आने का मन हो तो बाबुल के घर के दरवाजे खुले मिलें । अपने बचपन की यादों को वो फिर से जी सके ।

भरा रहे बाबुल का घर…

विदाई के समय जब बेटी कहती है – तेरे महलां दे बिच बिच वे बाबुल गुडिया कौन खेडे , बाबुल कहता है — मेरियां खेडन पोत्रियां धीये घर जा अपने । और साथ ही वे भगवान से कामना करती हैं —- बाबुल दे वेड़े अंबी दा बूटा , अंबी नूं बूर पया , वसदा रहे मेरे बाबुल दा वेड़ा धीयां दी एही दुआ । बाबलु का आंगन बसने के लिए भाई होना भी ज़रूरी है ।

सर्जना शर्मा की फेसबुक वॉल से साभार