सिमट रहे दायरे :हमारे आसपास कुछ बदल-सा गया है। आधुनिकता ने सबसे ज्यादा असर अगर किसी पर डाला है तो वे हैं हमारे आपसी रिश्ते। चीजें हों या रिश्ते सब कुछ सिमट सा गया हैं। रिश्तों के बीच जो एक समय में व्यापक दूरियां हुआ करती थीं, वे दायरे कम हो गई हैं और किसी-किसी रिश्ते में तो खत्म ही हो गईं। सोच के ग्लोबल होने के साथ-साथ पति-पत्नी, भाई-बहन, सास-बहू, ससुर-बहू, मां-बेटी, पिता-पुत्र/पुत्री-कहने का अर्थ यह है कि हर तरह के पारंपरिक रिश्ते में एक बदलाव आया है। यह बदलाव Negative नहीं है, Positiveभी है।
बच्चों के साथ पिता का प्यारा रिश्ता

कभी बच्चों के लिए, खासकर बेटे के लिए पिता किसी तानाशाह से कम नहीं होते थे। बेटे की कोई बात अपने पिता तक पहुंचानी होती थी तो वह मां के माध्यम से पहुंचाता था। पिता-पुत्र के बीच एक संवादहीनता की स्थिति ही कायम रहती थी और बेटी भी पिता से डर के कारण एक दूरी बनाकर चलती थी। अब इस रिश्ते में एक बहुत ही प्यारा बदलाव देखने को मिल रहा है। बच्चे अपने पिता से अब दूरी बनाकर नहीं चलते, वरन एक मित्रवत् व्यवहार उनके बीच कायम हो गया है। वे अपनी हर बात पिता से शेयर करने लगे हैं।
सिमट रहे दायरे –क्योंकि सास भी कभी बहू थी...

सास-बहू का रिश्ता एक ऐसा रिश्ता है, जिसे लेकर सबसे ज्यादा भयभीत दोनों ही पक्ष के लोग रहते थे। बहू को सास के नाम से डर लगता था और सास को बहू के अस्तित्व से। लेकिन अब न तो टिपिकल सास का ही जमाना रहा है और न ही सास के दबदबे को चुनौती देने वाली बहू का। शिक्षित और वर्किंग सास न सिर्फ अब बहू को अपनी तरह से जीने की आजादी देती है, वरन उसके साथ हर तरह से एडजस्ट करने की कोशिश भी करती है। बहू भी सास को अपनी मां की तरह ट्रीट करने लगी है।
बदल गये हैं Hubby

पति-पत्नी के रिश्ते में जो बदलाव आया है, उसने तो वैवाहिक समीकरणों को भी परिवर्तित कर दिया है। पति अब पत्नी पर डोमिनेट नहीं करता, न ही उसे अपने से कमतर समझता है। अब पति घर के कामों में तो पत्नी को सहयोग देता ही है, साथ ही बेबी सिटिंग भी करता है। आपसी रिश्तों में अब पहले की तरह घुटन नहीं रही है, बल्कि दोनों एक-दूसरे को स्पेस देते हैं। पति अपनी पत्नी के काम से जुड़ी कमिटमेंट्स को समझता है। इस रिश्ते में अब अंडरस्टैंडिंग, कंप्रोमाइज और कोपरेट करने का भाव समाहित हो गया है। यही कारण है कि पति-पत्नी अब दोस्तों की तरह व्यवहार करने लगे हैं।
बहन-भाई हो गये सयाने

भाई-बहन के रिश्ते में सदा ही एक मधुरता रही है, लेकिन फिर भी बहनें भाई से डरा करती थीं। लेकिन वक्त के साथ इस रिश्ते में अब खौफ की जगह ले ली है मित्रता ने। भाई-बहन भी अब फ्रेंड्स ही बन गए हैं। वे एक-दूसरे के साथ अपनी सारी बातें शेयर करते हैं।
सिमट रहे दायरे : दोस्ती के मायने बदले
दोस्ती के रिश्ते में पहले जहां काफी सीमाएं हुआ करती थीं, उसमें अब व्यापक परिवर्तन आ गया है। केवल पुरुष-पुरुष ही नहीं, स्त्री-पुरुष की दोस्ती में भी चेंज आया है। चैटिंग, पार्टी और साथ घूमना आम बात हो गई है। इस खुलेपन की वजह से जहां संकीर्णता पर उन्होंने प्रहार किया है, वहीं दूसरी ओर इन रिश्तों के बीच व्याप्त हिचक टूटने से बहुत सारी परेशानियां भी कम हुई हैं। तमाम पारंपरिक रिश्तों में आए बदलाव का प्रभाव पॉजीटिव ही हुआ है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है। रिश्तों में आए खुलेपन ने सीमाएं तोड़ने को विवश किया है, जिससे मर्यादाएं आहत हुई हैं। हमारी संवेदनशीलता में कमी आई है, जिसकी वजह से लोग एक-दूसरे को टेक इट फार ग्रांटेड लेने लगे हैं। सहज होना अच्छा है, पर इतना नहीं कि उससे दूसरे की भावनाएं आहत हों। रिश्ता चाहे जो हो, वह अत्यधिक नाजुक और संवेदनशील होता है। केवल निभाना ही नहीं, उसे संभालना भी आवश्यक है।
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