Raja Mahendra Pratap Singh University- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एएमयू के बगल में बनने वाले एक नए विश्वविद्यालय Raja Mahendra Pratap Singh University की आधारशिला रखी। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) का नाम बदलकर राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर रखने की भाजपा की पुरानी मांग के बाद योगी सरकार ने यह नयी यूनिवर्सिटी बनाने का ऐलान किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय का शिलान्यास किया। इस दौरान राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल भी मौज़ूद रहीं।
वर्ष 2014 में भाजपा के कुछ स्थानीय नेताओं ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का नाम बदलकर राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर रखने की मांग की थी। उनकी दलील थी कि राजा ने एएमयू की स्थापना के लिए जमीन दान की थी। यह मामला तब उठा था जब एएमयू के अधीन सिटी स्कूल की 1.2 हेक्टेयर जमीन की पट्टा अवधि समाप्त हो रही थी और राजा महेंद्र प्रताप सिंह के कानूनी वारिस इस पट्टे की अवधि का नवीनीकरण नहीं करना चाहते थे।
एएमयू के एक प्रवक्ता ने बताया कि हालांकि पिछले साल यह मुद्दा काफी हद तक सुलझ गया था, जब एएमयू के अधिकारियों ने सिटी स्कूल का नाम बदल कर राजा महेंद्र के नाम पर करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन इस मामले में कुछ तकनीकी रुकावटों को दूर करने का काम अभी जारी है।
राजा महेंद्र प्रताप विश्वविद्यालय का शिलान्यास करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलीगढ़ में उत्तर प्रदेश डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर तथा राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय के मॉडल का भी अवलोकन किया।
92 एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में बनाया जाएगा विश्वविद्यालय

सीएम योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में कहा था कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर विश्वविद्यालय की स्थापना इस क्षेत्र में एक राज्य विश्वविद्यालय स्थापित किए जाने की पुरानी मांग को पूरा करने के लिए की जा रही है और अलीगढ़ मंडल के सभी कॉलेज इस विश्वविद्यालय से संबद्ध होंगे। यह विश्वविद्यालय अलीगढ़ की कोल तहसील के लोढ़ा तथा मूसेपुर करीम जरौली गांव की 92 एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में बनाया जाएगा।
अलीगढ़ मंडल के 395 महाविद्यालयों को इससे संबंद्ध किया जाएगा। राजा महेंद्र प्रताप सिंह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र थे और वह एक दिसंबर 1915 को काबुल में स्थापित भारत की पहली प्रोविजनल सरकार के राष्ट्रपति भी थे।
कौन थे राजा महेंद्र प्रताप

राजा महेंद्र प्रताप सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले के मुरसान रियासत के राजा थे. जाट परिवार से निकले राजा महेंद्र प्रताप सिंह की एक शख़्सियत के कई रंग थे. वे अपने इलाक़े के काफ़ी पढ़े-लिखे शख़्स तो थे ही, लेखक और पत्रकार की भूमिका भी उन्होंने निभाई. पहले विश्वयुद्ध के दौरान अफ़ग़ानिस्तान जाकर उन्होंने भारत की पहली निर्वासित सरकार बनाई. वे इस निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति थे.
अफ़ग़ानिस्तान में की थी पहली निर्वासित सरकार की घोषणा
एक दिसंबर, 1915 को राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अफ़ग़ानिस्तान में पहली निर्वासित सरकार की घोषणा की थी. निर्वासित सरकार का मतलब यह है कि अंग्रेज़ों के शासन के दौरान स्वतंत्र भारतीय सरकार की घोषणा. राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने जो काम किया था, वही काम बाद में सुभाष चंद्र बोस ने किया था. इस लिहाज़ से देखें तो दोनों में समानता दिखती है.
यह भी पढ़ें:Raja Mahendra Pratap University-14 को अलीगढ़ में पीएम करेंगे शिलान्यास
गांधी के करीबी थे
हालांकि सुभाष चंद्र बोस कांग्रेसी थे और राजा महेंद्र प्रताप सिंह घोषित तौर पर कांग्रेस में नहीं रहे. हालांकि उस दौर में कांग्रेस के बड़े नेताओं तक उनकी धमक पहुंच चुकी थी. इसका अंदाज़ा महेंद्र प्रताप सिंह पर प्रकाशित अभिनंदन ग्रंथ से होता है जिसमें उनके महात्मा गांधी से संपर्क का ज़िक्र है.
इस ग्रंथ में महात्मा गांधी के विचारों को भी जगह दी गई है. गांधी ने महेंद्र प्रताप सिंह के बारे में कहा था, “राजा महेंद्र प्रताप के लिए 1915 में ही मेरे हृदय में आदर पैदा हो गया था. उससे पहले भी उनकी ख़्याति का हाल अफ़्रीका में मेरे पास आ गया था. उनका पत्र व्यवहार मुझसे होता रहा है जिससे मैं उन्हें अच्छी तरह से जान सका हूं. उनका त्याग और देशभक्ति सराहनीय है.”
2 साल तक देश से बाहर रहे राजा महेंद्र प्रताप सिंह

बहरहाल, सुभाष चंद्र बोस निर्वासित सरकार के गठन के बाद स्वदेश नहीं लौट सके, लेकिन राजा महेंद्र प्रताप सिंह भारत भी लौटे और आज़ादी के बाद राजनीति में भी सक्रिय हुए. 32 साल तक देश से बाहर रहे राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने भारत को आज़ाद कराने की कोशिशों के लिए जर्मनी, रूस और जापान जैसे देशों से मदद मांगी. हालांकि वे उसमें कामयाब नहीं हुए.
ग्रेस में बहुत ज़्यादा तरजीह नहीं मिली
1946 में जब भारत लौटे तो सबसे पहले वर्धा में महात्मा गांधी से मिलने गए. लेकिन भारतीय राजनीति में उस दौर की कांग्रेस सरकारों के ज़माने में उन्हें कोई अहम ज़िम्मेदारी निभाने का मौका नहीं मिला. जवाहर लाल नेहरू की विदेश नीति में जर्मनी और जापान मित्र देश नहीं रहे थे और राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने इन देशों से मदद मांगकर आज़ादी की लड़ाई शुरू की थी. ऐसे में राजा महेंद्र प्रताप सिंह को कांग्रेस में बहुत ज़्यादा तरजीह नहीं मिली.
अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ लड़ा था चुनाव
बहरहाल, 1957 में वे मथुरा से चुनाव लड़े और निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उन्होंने जीत हासिल की. इस चुनाव की सबसे ख़ास बात यह थी कि जनसंघ के उम्मीदवार के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी भी यहां चुनाव मैदान में खड़े हुए थे.उस चुनाव में राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने कांग्रेस के चौधरी दिगंबर सिंह को क़रीब 30 हज़ार वोटों से हराया था.