Navratri special 2022-देवी ऋचाओं में संपूर्ण देवलोक, शारदीय नवरात्र के महत्व को जानना ज़रूरी

Navratri special 2022
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Navratri special 2022-वेदों में देवी के अनेक नाम हैं। इनकी ऋचाएं एक अविनाश परम आकाश में प्रतिष्ठित हैं, जिसमें सारे देवता निवास करते हैं। जगत में महाशक्ति ही परब्रह्म है और इसे ही परमात्मा कहा गया है, जो विविध रूपों में अपनी लीला दिखाती है। ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति भी इसी से होती है, विष्णु द्वारा उसी शक्ति से उसका पोषण होता है, शिव द्वारा सृष्टि का संहार भी इसी शक्ति से होता है। नवदुर्गा व दस महाविद्या भी इसी शक्ति का रूप हैं। ग्रंथों में देवी की स्तुति के संदर्भ वैदिक काल से ही मिलते हैं। ऋग्वेद में कहा है कि सृष्टि से पूर्व एकमात्र देवी थी जिसने ब्रह्मांड की रचना की।

निष्काम रूप से उपासना करने वालों को प्राप्त होती है सिद्धि

ब्रह्मा, विष्णु व रुद्र का प्रादुर्भाव उनसे ही हुआ। इनको ही अपरा शक्ति के नाम से जाना जाता है। ऋग्वेद में इन्हें सुन्दरी, बाला, अम्बिका, बगला, वाराही, मातंगी, स्वयंवर कल्याणी, भुवनेश्वरी, चामुण्डा, चण्डा, तिरस्करिणी, शुक्रश्यामला, अश्वारूढ़ा, प्रत्यागिरी, धूमावती, सावित्री, सरस्वती के नाम से जाना गया है। इनकी ऋचाएं एक अविनाश परम आकाश में प्रतिष्ठित हैं, जिसमें सारे देवता निवास करते हैं। अथर्ववेद में स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण रूप, तीनों अवस्थाओं से परे निगुर्ण महालक्ष्मी के स्वरूप का वर्णन किया है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि सकाम उपासना करने वालों के कार्य सिद्ध नहीं होते। केवल निष्काम रूप से उपासना करने वालों को सिद्धि की प्राप्ति होती है।

Navratri special 2022

श्री, लक्ष्मी, वरदा, विष्णुपत्नी, वसुप्रदा, हिरण्यरूपा, स्वर्णमालिनी, रजतस्रजा, स्वर्णप्रभा, स्वर्णप्रकारा, मुक्तांलकारा, चन्द्रसूर्या, बिल्वप्रिया, ईश्वरी, भुक्ति, ऋद्धि, समृद्धि, विभूति, पुष्टि, धनदा, धनेश्वरी, श्रद्धा, भोगिनी, सावित्री, धात्री, विधात्री आदि नाम मन्त्रों द्वारा, उनकी पूजा करनी चाहिए। दान से शोभा पाने वाली, अन्न से संपन्न तथा स्तुति करने वाले उपासकों की रक्षा करने वाली सरस्वती देवी की अाराधना के संदर्भ ऋग्वेद में मिलते हैं।

Navratri special 2022-विशेष महत्व के शारदीय नवरात्र

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सौ वर्ष लगातार युद्ध करने के बाद भी देवता जिस महिषासुर दैत्य को पराजित न कर पाये, उसका वध करने वाली देवी की अाराधना के लिए शारदीय नवरात्र का अपना विशेष महत्व है। उस देवी ने न केवल इंद्र, सूर्य, चंद्रमा, कुबेर, यम और वरुण जैसे देवताओं को अपमानित करने वाले, उनका घर और अधिकार छीनने वाले महिषासुर दैत्य का नाश किया, अपितु अपने त्रिशूल से, गदा से शक्ति की वर्षा आदि से उसकी सेना के सैकड़ों महादैत्यों का वध किया। नवरात्रि ऐसा समय है, जिसमें किये गये हर प्रकार के अनुष्ठान व साधना पूरा फल देते हैं।

सभी देवों का तेज

जिस देवी की स्तुति देवता भी करते हों, उस देवी की शक्ति का रूप निश्चित ही अतुलनीय है। मार्कण्डेय पुराण में लिखा है कि देवताओं के शरीर से निकला अतुलनीय तेज एकत्रित होने पर एक नारी के शरीर के रूप में परिणित हो गया। भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख, यम के तेज से बाल, विष्णु के तेज से भुजाएं, चन्द्रमा के तेज से स्तन व इंद्र के तेज से कटि प्रदेश का प्रादुर्भाव हुआ। पृथ्वी के तेज से दोनों चक्षु, सूर्य के तेज से अंगुलियां व कुबेर के तेज से नासिका की उत्पत्ति हुई। प्रजापति के तेज से दांत, अग्नि के तेज से नेत्र उत्पन्न हुए। भौहें संध्या के और कान वायु के तेज से उत्पन्न हुए। देवताओं के इस तेज शक्ति पुंज को भगवान शंकर ने अपने शूल में से शूल, भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र में से चक्र दिया। इंद्र के वज्र, अग्नि की शक्ति, वायु के धनुष, वरुण के पाश, शंख से सुसज्जित देवी को जहां यमराज ने दंड अर्पित किया, वहीं सूर्य ने देवी के रोमकूपों में अपनी किरणों का तेज भर दिया।

Navratri special 2022-कन्यापूजन- देवी की स्तुति का साधन

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लोक में मातृत्व शक्ति को ही सर्वोपरि माना गया है। नवरात्रि में शक्ति के इस रूप को महत्व दिया जाता है। नवरात्रि में उपवास, पूजा-पाठ के अलावा कुमारी पूजन का विशेष महत्व है। अष्टमी, नवमी के दिन कन्याओं की पूजा कर उनको उपहार देने की परंपरा है। यह देवी की स्तुति का साधन है। बंगाल में तो दुर्गा पूजा विशेष उत्साह से की जाती है। वहां देवी की मूर्ति का निर्माण, पूजा व विसर्जन एक महाउत्सव के रूप में किया जाता है। मां भगवती का स्मरण, ध्यान व पूजन हमे संसार की असारता का बोध कराकर वास्तिवक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाता है।

दुर्गुणों को जीतने का नाम

नवरात्र में मां दुर्गा के तीन प्रमुख रूप माने गये हैं। प्रथम रूप महाकाली के स्वरूप को दर्शाता है, जिसके द्वारा मानवीय दुगुर्णों यथा काम, क्रोध, लोभ मोह को जीता जाता है। दूसरा सात्विक व राजसिक गुणों की प्राप्ति हेतु महालक्ष्मी का रूप और तीसरा परमात्मा को जानने के लिए सरस्वती का रूप।

अनूप कुमार गक्खड़