पद्मश्री मिल्खा सिंह का सफर- मिल्खा सिंह ने अपने जीवन में सब कुछ हासिल किया था, लेकिन उनका एक सपना अधूरा रह गया। मिल्खा सिंह अक्सर कहते थे कि रोम ओलंपिक जाने से पहले उन्होंने दुनिया भर में कम से कम 80 दौड़ों में हिस्सा लिया था, इनमें उन्होंने 77 दौड़ें जीतीं थी। जो एक रिकॉर्ड बन गया था। सारी दुनिया ये उम्मीदें लगा रही थी कि रोम ओलंपिक में 400 मीटर की दौड़ मिल्खा ही जीतेगा। मैं अपनी गलती की वजह से मेडल नहीं जीत सका। मैं इतने सालों से इंतजार कर रहा हूं कि कोई दूसरा इंडियन वो कारनामा कर दिखाए, जिसे करते-करते मैं चूक गया था, लेकिन कोई एथलीट ओलंपिक में मेडल नहीं जीत पाया।
सेना में जाने के बाद खुद को तराशा

वे बताते थे कि उनका बचपन और जवानी ऐसे माहौल में बीती थी कि उन्हें एथलेटिक्स की स्पेलिंग तक नहीं आती थी। सेना में जाने के बाद उन्हें अच्छे कोच मिले, जिन्होंने ऐसा तराशा कि उनके नाम के आगे फ्लाइंग सिख लग गया। मिल्खा सिंह ने अपने खेल करियर में वर्ष 1958 के एशियाई खेलों में 200 (21.6 सेेकेंड ) व 400 मीटर ( 46.6 सेकेंड) में गोल्ड मेडल जीते। वर्ष 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड मेडल जीता। वर्ष 1962 की एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीता। रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह चौथे स्थान पर रहे।
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जब रो पड़े थे फ्लाइंग सिख
मिल्खा सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जीवन सिर्फ पांच ऐसी घटनाएं थी जब वह अपनी आंखों से आंसू नहीं रोक पाए। पहली बार वर्ष 1947 में बंटवारे के समय जब उनकी आंखों के सामने परिजनों की हत्या हुई तब वह खूब रोए थे।
1960 रोम ओलंपिक में मेडल से टूके

दूसरी बार वर्ष 1960 रोम ओलंपिक में जब वह मेडल जीतने से चूक गए थे। तीसरी बार पाकिस्तान में धावक अब्दुल बासित को पाकिस्तान में हराया तो भी वह बहुत रोए थे। जीतने के बावजूद बंटबारे का सारा दर्द दोबारा उनकी आंखों के सामने आ गया था, हालांकि यह खुशी के आंसु थे, लेकिन मेरे लिए यह आसान नहीं था। वर्ष 1958 में जब कॉमनवेेल्थ गेम्स में जब गोल्ड मेडल जीता तो भी मेरी आंखों में खुशी के आंसू गए थे। आखिरी बार मेरी आंखों में आंसू वर्ष 2013 में फिल्म भाग मिल्खा भाग को देखकर आए थे। इस फिल्म में अपने जीवन के अहम पलों को पर्दे पर देखकर मैं भावुक हो गया था। इसके अलावा मेरे जीवन में जो भी मुझे मिला उसे मैंने सहर्ष स्वीकार किया।
राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने दिया उड़न सिख का नाम
वर्ष 1960 मेें जब मिल्खा सिंह पाकिस्तान दौड़ने गए तो उनके सामने पाकिस्तान के प्रसिद्ध धावक अब्दुल बासित से जीतना बड़ी चुनौती था। मिल्खा बताते थे कि उस समय उनके मन में यही था कि यह दौड़ प्रतियोगिता नहीं युद्ध का मैदान है और मैं हारा तो मेरा देश हार जाएगा। मैंने जीत हासिल की, तो पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने मुझे बुलाकर कहा कि मिल्खा आज तुम दौड़े होते तो यकीनन हार जाते, लेकिन आज तुम उड़े हो। इसलिए मैं तुम्हेें फ्लाइंग सिख की उपाधि देता हूं। इसके बाद से मिल्खा के नाम के आगे फ्लाइंग सिख लगने लगा।
मैडम तुसाद में लगा पुतला
वर्ष 2017में दिल्ली के मैडम तुसाद संग्रहालय में फ्लाइंग सिख पद्मश्री मिल्खा सिंह का मोम का पुतला लगाया था। इस पुतले का अनावरण खुद मिल्खा सिंह ने चंडीगढ़ में किया था। मिल्खा सिंह ने इस मौके पर कहा था कि मैं इस सम्मान को पाकर काफी हूं। मैडम तुसाद संग्रहालय में देश दुनिया के महान खिलाड़ियों के साथ अपना पुतला देखना मेरे लिए गर्व की बात है।
फिटनेस का मंत्र देते थे-दौड़ो भागो

वर्ष 2019 में वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन ने मिल्खा सिंह को अपना गुडविल अंबेसेडर बनाया था। इस दौरान मिल्खा ने कहा था कि मेरे पास फिटनेस का एक ही मंत्र है, ज्यादा से ज्यादा दौड़ो-भागो। आप जितने ज्यादा भागोगे डॉक्टर से उतने ही दूर रहोगे। वह एशियन देशों में जाकर करेंगे युवाओं को फिटनेस के प्रति प्रेरित करेंगे। शरीरिक कमजोरी की वजह से मिल्खा सिंह विदेश में जाकर युवाओं को तो प्रेरित नहीं कर सके, लेकिन शहर में अभी वह कई खेल कार्यक्रमों में शिरकत करते थे। मिल्खा बताते थे कि उन्हें हर रोज 10 से 20 खेल प्रशंसकों के पत्र आते हैं, जिनके जवाब वह खुद देते हैं।
एथलीट्स को चाहिए कोई एक रोल मॉडल
मिल्खा सिंह कहते थे कि अगर रोम ओलंपिक में मैं मेडल जीत जाता तो आज देश में जमैका की तरह हर घर से एथलीट्स निकलते। मैं रोम में मेडल जीतने से नहीं चूका, बल्कि मैं इस देश को रोल मॉडल और सपने देने से चूक गया था। पीटी ऊषा और श्रीराम सिंह जैसे एथलीट भी मेडल जीतने से चूक गए, जिनसे देश को खासी उम्मीदें थी। अगर हम मेडल जीत गए होते तो एथलेटिक्स गेम्स के प्रति भी युवाओं में वही आकर्षण होता जो ध्यानचंद के समय हॉकी का और वर्ष 1983 में क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने के बाद क्रिकेट का था। मैं इतने सालों से इंतजार कर रहा, लेकिन मेरा इंतजार खत्म नहीं हुआ।
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एथलेटिक्स गेम्स को भी मिले क्रिकेट की तरह तवज्जो
मिल्खा सिंह अक्सर हर मंच से यह शिकायत करते थे कि क्रिकेट सिर्फ 10 से 14 देश खेलते हैं, बावजूद इसके उसे मीडिया की तरफ से ज्यादा कवरेज दी जाती है, लेकिन एथलेटिक्स गेम्स 200 से ज्यादा देश खेलते हैं उस लिहाज से एथलेटिक्स गेम्स को तव्जो नहीं दी दिया जाता है। इसलिए एथलेटिक्स में महत्व को हमें समझना होगा। मिल्खा सिंह को टोक्यो ओलंपिक में एथलीट हिमादास से खासी उम्मीदें थी। इस बाबत उन्होंने उन्हें तैयारी के टिप्स भी दिए थे।
By-Niroshaa Singh