Massoud Wants to Talk But Ready to Fight-पंजशीर का शेर कहे जाने वाले अहमद मसूद ने तालिबान के सामने झुकने से इनकार किया है लेकिन उन्होंने कहा है कि बातचीत की जा सकती है। टोलो न्यूज़ के मुताबिक मसूद बातचीत के लिये तैयार हैं। तालिबान को नॉदर्न एलायंस से कड़ी टक्कर मिल रही है. मसूद और खुद को अफगानिस्तान का केयरटेकर राष्ट्रपति घोषित कर चुके अमरुल्ला सालेह ने तालिबान के खिलाफ रणनीति बना ली है. हालांकि, तालिबान ने अहमद मसूद को सरेंडर करने के लिए चार घंटों का समय दिया था लेकिन उन्होंने कहा है कि वे बात कर सकते हैं लेकिन अगर बात नहीं बनती है तो लड़ने को भी तैयार हैं।
पंजशीर को घेरकर खड़ा है तालिबान
तालिबान मिलिटेंट पंजशीर को घेरकर खड़े हैं। आशंका है कि यहां लड़ाई गंभीर हो सकती है। क्योंकि जहां अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में से 33 पर तालिबान ने कब्जा जमा लिया है, वहीं अब भी पंजशीर घाटी उसके लिए दूर की कौड़ी रही है। खुद को राष्ट्रपति घोषित कर चुके अमलरुल्लाह सालेह यहीं के रहने वाले हैं। उन्होंने तालिबान को ऐसे दौर में पंजशीर घाटी को जीतने की चुनौती दी है, जब प्रेसिडेंट अशरफ गनी समेत कई नेता जान का डर देखकर भाग गए हैं।
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-पंजशीर की घाटी से काबुल तक का सफर करने वाले सालेह अब अंतिम उम्मीद के तौर पर देखा जा रहा है. उनके पास भी मुजाहिदों की एक फौज है, जो पंजशीर की घाटियों की निगेबां है, उनके साथ अहमद शाह मसूद के बेटे अमहद मसूद हैं, जिनके पास ट्रेंड लड़ाके हैं. इन्हीं के दम पर तालिबान को ना सिर्फ अंतिम लड़ाई की चुनौती दी जा रही है.

Massoud Wants to Talk But Ready to Fight-पंजशीर में रहते हैं अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद
अमलरुल्लाह सालेह के अलावा इसी राज्य में अहमद मसूद भी हैं, जिनके पिता अहमद शाह मसूद तालिबान के खिलाफ लड़ते हुए मारे गए थे। अमरुल्लाह सालेह ने 17 अगस्त को एक ऑडियो संदेश जारी कर कहा था, ‘अफगानिस्तान के संविधान के मुताबिक वह देश के कार्यवाहक राष्ट्राध्यक्ष हैं।’अमरुल्लाह सालेह ने तालिबान को चुनौती देते हुए कहा कि मैं अपने देश के लिए खड़ा हूं और युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है।
सालेह की बहन को तालिबान ने यातनाएं देकर मारा था

अमरुल्लाह सालेह का जन्म पंजशीर में अक्टूबर 1972 में हुआ था। ताजिक मूल के परिवार में जन्मे अमरुल्लाह सालेह कम उम्र में ही अनाथ हो गए थे। लेकिन उन्होंने कम उम्र में ही अहमद शाह मसूद के तालिबान विरोधी आंदोलन को जॉइन कर लिया था। सालेह निजी तौर पर तालिबान का दंश झेल चुके हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक 1996 में तालिबान ने उनकी बहन का अपहरण कर लिया था और हत्या कर दी थी। खुद सालेह ने टाइम मैगजीन के लिए लिखा था कि 1996 में जो हुआ, उसके बाद से तालिबान को लेकर मेरा नजरिया बदल गया था। इस घटना ने उनके मन में तालिबान के खिलाफ गुस्सा भर दिया कि वह मसूद के आंदोलन का ही हिस्सा बन गए। ताजिकिस्तान के दुशांबे में स्थित अफगानिस्तान दूतावास ने उनकी ही तस्वीर लगा ली है।
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-जासूस के तौर पर भी किया है काम
-अमरुल्लाह सालेह 2001 तक अहमद शाह मसूद के आंदोलन से जुड़े रहे थे, लेकिन अमेरिका में जब आतंकी हमला हुआ तो फिर उनकी भी दिशा बदल गई। इसके बाद वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के लिए एक बड़ी एसेट बन गए थे। यहां तक कि उनका यह रिश्ता ही था कि जब तालिबान का राज खत्म हुआ था तो वह सत्ता में आए। 2004 में उन्हें अफगानिस्तान की नई बनी इंटेलिजेंस एजेंसी का हेड बनाया गया था। जो नेशनल सिक्योरिटी डायरेक्टोरेट के नाम से काम करती है। इस दौरान उन्होंने एक बड़ा नेटवर्क तैयार किया, जो तालिबान के बारे में जानकारियां देता था।
Massoud Wants to Talk But Ready to Fight-करजई से मतभेद के बाद राजनीति में आए सालेह
-अमरुल्लाह सालेह ने खुफिया एजेंसी के हेड के पद से 6 जून, 2010 को एक आतंकी हमला होने के बाद इस्तीफा दे दिया था। उस वक्त हामिद करजई राष्ट्रपति थे, जिनसे उनके मतभेद थे। करजई तालिबान से बात करने के हिमायती थे और सालेह ने इसका विरोध किया था। 2011 में सालेह ने करजई के खिलाफ एक शांतिपूर्ण आंदोलन की शुरुआत कर दी थी। इसके बाद वह अशरफ गनी के साथ आए और फिर जब उन्हें सितंबर 2014 में सत्ता मिली तो वह उपराष्ट्रपति बने।
पंजशीर की कहानी…..
-पंजशीर अफगानिस्तान का वह प्रांत है जहां का इतिहास कहता है तालिबान के आगे झुकना उन्हें मज़ूर नही है। क्योंकि ये अफगान इतिहास के सबसे धाकड़ गुरिल्ला लड़ाके रहे अहमद शाह मसूद का पंजशीर प्रांत है. वो अहमद शाह मसूद जिसने सोवियत संघ की तोपों की नाल को अपने जुनून के दम पर मोड़ दिया था. अहमद शाह मसूद ने अपनी गुरिल्ला तकनीक से तालिबान को काबुल में झुका दिया था, काबुल से एक वक्त के लिए भगा दिया था.
Massoud Wants to Talk But Ready to Fight-काबुल से 120 कि मी दूर है, ….
– पंजशीर काबुल से 150 किलोमीटर दूर पंजशीर को तालिबान कभी नहीं जीत पाया. तालिबान 1998 में भी पंजशीर पर कब्जा नहीं कर पाया था. 1995 में अहमद शाह मसूद के नेतृत्व में तालिबान को काबुल में हराया गया था. तालिबान ने 9/11 से ठीक दो दिन पहले अहमद शाह मसूद की फिदायीन हमले में हत्या कर दी गई थी.
तालिबान से लोहा लेने का जज्बा अहमद शाह मसूद पंजशीर के एक-एक कण भर गए और अब उनके बेटे अहमद मसूद और उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह हथियारबंद लड़ाकों के साथ पंजशीर को तालिबान के खिलाफ लड़ाई में तैयार करने में जुटे हैं.
सालेह का ऐलान
इस बीच उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने ट्वीट कर लिख दिया है, ”मैं तालिब आतंकवादियों के आगे कभी नहीं, कभी भी और किसी भी परिस्थिति में नहीं झुकूंगा. मैं अपने नायक अहमद शाह मसूद, कमांडर, लेजेंड और गाइड की आत्मा और विरासत के साथ कभी विश्वासघात नहीं करूंगा. मैं उन लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा जिन्होंने मेरी बात सुनी. मैं तालिबान के साथ कभी भी एक छत के नीचे नहीं रहूंगा. कभी नहीं.”
Massoud Wants to Talk But Ready to Fight
– तालिबान के आगे अमेरिका ने हार मान ली, जिसके आगे तमाम अफगानी सैनिकों ने सरेंडर कर दिया. लेकिन आखिरी उम्मीद के तौर पर अमरुल्ला सालेह अब भी डटे हैं. अमरुल्ला सालेह अफगानिस्तान के हीरो लड़ाका अहमद शाह मसूद के शार्गिर्द रहे हैं.