Internet gaming traps on childhood- गेमिंग के गुबार में गुम हो रहे बचपन को बचाएं

Water Game Real Stuntman Run
Water Game Real Stuntman Run

Internet gaming traps on childhood-मोबाइल या अन्य गैजेट्स से बच्चों को दूर करने पर समाज के तमाम वर्गों के बीच चिंतन चल ही रहा था कि कोविड महामारी के कारण सब गुड़ गोबर हो गया। जिन हाथों से मोबाइल को दूर रखने की कवायद चल रही थी, उन्हीं हाथों में कई-कई घंटे मोबाइल थमाना मजबूरी बन गया। एक तरफ पढ़ाई, दूसरी तरफ ऑनलाइन गेम्स की लत, बच्चों के शरीर और मन-मस्तिष्क पर दोतरफा मार पड़ने लगी। आज दुनिया के तमाम देश ऑनलाइन गेमिंग पर सख्त पहरा बिठाने की जुगत में लगी हैं, ऐसे में भारत में भी हर किसी को इससे निजात पाने या इसे न्यूनतम करने की दिशा में पहल करनी होगी तभी हमारे देश के कर्णधार बेहतर राह पकड़ सकेंगे।

विज्ञान : वरदान या अभिशाप?

स्कूली दिनों में हम सभी ने एक विषय पर निबंध जरूर लिखा और पढा होगा और वह विषय है ‘विज्ञान : वरदान या अभिशाप।’ विज्ञान की देन ही प्रौद्योगिकी है, तो उसी प्रौद्योगिकी के नवाचार का एक रूप है मोबाइल-फ़ोन। आज के समय में नित्य नए मोबाइल-धारकों की बढ़ती संख्या पर हम और हमारी रहनुमाई व्यवस्था भले इठला लें, कि इक्कीसवीं सदी में हम अंगुलियों पर सबकुछ संभव बना रहे, लेकिन शायद हम तकनीक में मशगूल होकर यह भूलते जा रहे हैं कि इससे हम अपनी अमिट पुरातन विरासत को तो क्षीण कर ही रहे हैं साथ ही साथ बाल मन और युवावस्था भी पथभ्रष्ट होने के साथ अपनी जिंदगी को काल के ग्रास में धकेल रहे हैं सो अलग। ऐसा इसलिए क्योंकि जो उम्र मैदानी खेल खेलने की होती है।

यह भी पढ़ें: How to Become a Virtual Reality Developer- ऑनलाइन वर्ल्ड में इसलिये बढ़ रही इनकी डिमांड

किताबों की जगह फोन क्यों?

वीर, प्रतापी महापुरुषों की कहानियां अपने बुजुर्गों से सुनने की होती और किताबें जिस उम्र में हाथ में होनी चाहिए। उस उम्र में हमारे युवाजन और बच्चे ऑनलाइन गेम की तरफ़ बढ़ गए हैं। इसके कारणों में से एक यह भी है कि बढ़ते भौतिकवाद के युग में आज अभिवावक के पास समय का अभाव है जिसके कारण वे जिस उम्र में बच्चे के हाथ में खिलौना, उसके मुंह में मां का दूध और सिर पर माता-पिता का प्रेम होना चाहिए। उस अवस्था में उसे मोबाइल फ़ोन थमा दिया जाता है। जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। इसीलिए तो कहावत ही बन गयी है कि आज बच्चा पैदा भी हाथ में मोबाइल लेकर होता है।

Internet gaming traps on childhood

वैसे ऑनलाइन गेम के प्रति युवाओं और बच्चों का झुकाव कोई सिर्फ़ भारत के लिए समस्या नहीं, बल्कि बीते कुछ वर्षों में दुनियाभर के बच्चों में ऑनलाइन गेम को लेकर एक अलग प्रकार की दीवानगी पनपी है। जो कहीं न कहीं अब लत बनती जा रही है और लत किसी भी चीज की हो, अगर उसकी अति हो जाए, तो कहते हैं न कि ‘अति सर्वत्र वर्जते’। ऐसे में इसमें कोई दो राय नहीं कि इससे बच्चों के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है और शायद यही वज़ह है कि बीते कुछ महीने पहले चीन ने अपने यहां बच्चों के लिए जो नया नियम बनाया है कि अब वे हफ्ते में तीन घंटे ही ऑनलाइन गेम खेल सकेंगे, निश्चित रूप से वह एक बहुत ही महत्वपूर्ण क़दम है।

Internet gaming traps on childhood

water game
water game

गौरतलब हो कि नए नियमों के अनुसार ऑनलाइन गेम्स कंपनियां अब बच्चों को चीन में सिर्फ शुक्रवार, शनिवार और रविवार को ही एक-एक घंटे के लिए ऑनलाइन गेम की सुविधा दे पाएंगी। इतना ही नहीं चीन ने दो साल पहले 2019 में भी बच्चों के 90 मिनट से अधिक ऑनलाइन गेम खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन तब साप्ताहांत या सार्वजनिक छुट्टियों में बच्चे प्रतिदिन तीन घंटे तक ऑनलाइन गेम खेल सकते थे। यही नहीं बल्कि दिशानिर्देश के तहत 16 साल से कम उम्र के बच्चों को ऑनलाइन गेम पर प्रतिमाह 200 युआन, जबकि 16-18 के बीच 400 युआन खर्च करने की अनुमति दी गई थी।

आंखों की रोशनी हो रही प्रभावित

वहीं बता दें कि साल 2015 में हुए एक अध्ययन में यह पाया गया कि मोबाइल फोन और ऑनलाइन गेम्स से 50 करोड़ चीनी नागरिक की आंखों की रोशनी प्रभावित हुई। अब आप सोच सकते हैं कि ऑनलाइन गेम आपके बच्चों को किस तरफ़ धकेल रहा है, लेकिन भारत की स्थिति क्या? यह हम सबको पता है। यहां तो एक-दो साल के बच्चों को भी हाथ में मोबाइल थमा दिया जाता और वह बड़े चाव से मोबाइल देखते-देखते बड़ा होता है। फ़िर भारत इस मामले में कहां खड़ा है? इसका सहज आंकलन हमें करना चाहिए।

चीन ने नियम कड़े किये


गौरतलब हो कि इसी साल जुलाई में चीन की सबसे बड़ी गेमिंग कंपनी ‘टेन्सेंट‘ ने यह घोषणा की थी कि वह रात दस बजे से सुबह आठ बजे के बीच गेम खेलने वाले बच्चों को रोकने के लिए फेशियल रिकग्निशन (facial recognition) शुरू कर रही है और यह कदम इस आशंका के बाद उठाया गया था कि बच्चे नियमों को दरकिनार करने के लिए एडल्ट आईडी का इस्तेमाल कर रहे हैं। इतना ही नहीं चीन में अब 18 साल से कम उम्र के बच्चे एक तय समय और दिन ही वीडियो गेम खेल सकेंगे। वीडियो गेम खेलने की अनुमति केवल रात 8 से 9 बजे के बीच होगी। वहीं गेमिंग कंपनियों को भी निर्देश दिया गया है कि इस समय सीमा से इतर बच्चों को वीडियो गेम खेलने से रोकें और एक सरकारी मीडिया आउटलेट ने तो ऑनलाइन गेम को ‘आध्यात्मिक अफीम’ तक कह दिया। अब आप समझ सकते हैं कि ऑनलाइन गेम की लत किस हद्द तक बच्चों को प्रभावित कर रही है।

भारत में स्थिति चिंताजनक

अब बात भारत की करें तो यहां आएदिन ऑनलाइन गेम की लत के कारण बच्चों की होने वाली मौतों की खबरें हम सुनते-पढ़ते रहते हैं। इतना ही नहीं कई बच्चे इसके इतने आदी हो जाते हैं कि खाना-पीना तक छोड़कर दिन-रात उसी में लगे रहते हैं और उनकी नींद कम हो जाती है और खेलने से मना किया जाए तो चिड़चिड़ेपन का शिकार होने लगते हैं। इसके अलावा कोरोना काल में पढ़ाई के ऑनलाइन हो जाने के कारण बच्चों में ऑनलाइन गेम की लत का खतरा और भी बढ़ गया है। जी हां एक आंकड़े के मुताबिक भारत में करीब 30 करोड़ लोग ऑनलाइन गेम खेलते हैं और 2022 तक यह संख्या बढ़कर 55 करोड़ हो जाने की आशंका है। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत की कितनी बड़ी जनसंख्या सिर्फ़ ऑनलाइन मोबाइल में गेम खेलने में लगी हुई है। वहीं एक अन्य आंकड़े की बात करें तो वर्तमान में अपने देश में ऑनलाइन गेमिंग का बाजार 7 से 10 हजार करोड़ रुपये के बीच है, जिसके अगले एक साल में 29 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच जाने की उम्मीद है। अब इन आंकड़ों से ही स्थिति की भयावहता को समझा जा सकता है, लेकिन इसको लेकर न हमारी रहनुमाई व्यवस्था सचेत नज़र आती है और न ही परिजनों के पास इतना समय होता कि वे हर पल बच्चों पर नज़र रख सकें कि आख़िर मोबाइल में उनका बच्चा क्या कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ बच्चों का मस्तिष्क इतना भी विकसित नहीं होता कि वे ऑनलाइन गेम की लत से खुद को बचा सकें इसलिए अभिभावकों और सरकार का दायित्व बन जाता है कि वे बच्चों के हित में कदम उठाएं, लेकिन अभी इस दिशा में भी प्रयासों की बेहद कमी दिखाई पड़ती है।

मानसिक अस्वस्थता, बचाव जरूरी

बता दें विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी गेम खेलने की लत (जिसे गेमिंग डिसऑर्डर नाम दिया गया) को मानसिक अस्वस्थता की स्थिति माना है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि गेमिंग कोकीन और जुआ के समान लगने वाली एक लत हो सकती है। इसके अलावा बात कोरोना काल की करें तो इस दौरान तो समस्या और विकराल ही हुई है। इस दौरान कोरोना का डर और दूसरी अन्य वजहों से बच्चों का ऑनलाइन गेमिंग 41 फीसदी तक बढ़ा है और ऑनलाइन गेम का चस्का एकल परिवार के बच्चों में ज़्यादा देखने को मिल रहा। यह भी एक कड़वी सच्चाई है और इन ऑनलाइन गेम्स में पड़कर बच्चे आक्रामक और हिंसक बन रहे हैं सो अलग। इसके अलावा कई बार यही खेल उन्हें अवसाद की तरफ़ भी धकेलने का काम करता है।

Internet gaming traps on childhood

भारत में ब्लू व्हेल जैसे गेम के चलते कई बच्चों की जान चली गई और इन खबरों को लगभग सभी ने सुना और पढा भी, फ़िर भी ऑनलाइन गेम्स धड़ल्ले से हमारे देश में चल रहे हैं। वह भी बिना किसी नियम और शर्तों के। मालूम हो कि जब कोई भी बच्चा लगातार घण्टों-घण्टों तक मोबाइल और कंप्यूटर पर गेम खेलता है। फ़िर बच्चों की आंखों और अन्य अंगों पर उसके गम्भीर दुष्प्रभाव भी पड़ते हैं। ऐसे में जब चीन अपने देश का बचपन सुरक्षित करने के लिए ऑनलाइन गेम्स को लेकर कानून बना सकता है तो फिर हमें और हमारी व्यवस्था को क्यों नहीं इस दिशा में सोचना चाहिए। वैसे संयुक्त परिवार की जड़ों से हमारे समाज का कटना भी कई समस्याओं का कारण है और इसके लिए हम सरकार को दोष नहीं दे सकते। फ़िर भी ऑनलाइन गेम्स पर अंकुश आज जरूरत है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए, क्योंकि यह मामला बच्चों से जुड़ा हुआ है और बच्चे ही देश का भविष्य होते हैं। ऐसे में भारत में भी ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों पर चीन जैसा दबाव बनाए जाने और नियमन की जरूरत है।

महेश तिवारी