International Literature Festival In Shimla- -अंतर्राष्ट्रीय साहित्य उत्सव ‘उन्मेष’ आज से राजधानी शिमला में शुरू हो गया। साहित्य उत्सव का शुभारम्भ केन्द्रीय संस्कृति राज्य मंत्री और संसदीय कार्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने किया। इस उत्सव में देश-विदेश से लगभग 425 साहित्यकार, लेखक और जाने-माने विद्वान भाग ले रहे हैं। उत्सव में 64 विभिन्न कार्यक्रम होंगे और आदिवासी व लोक भाषाओं सहित 60 भाषाओं के लेखक अपनी रचनाओं का पाठ करेंगे। आजादी के अमृत महोत्सव की कड़ी में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी द्वारा संयुक्त रूप से इस उत्सव का आयोजन किया गया है।
गेयटी थियेटर में जानी-मानी कलाकार पद्म विभूषण अवार्डी साई परांजपे ने सिनेमा और साहित्य पर कार्यक्रम की अध्यक्षता की। गुजराती के कवि प्रबोध पारेख ने कहा कि मेरी पहली वफादारी सहित्य के लिए है। हमें यह कहना होगा कि सिनेमा साहित्य है और साहित्य सिनेमा है। वह सिनेमा को साहित्य के रूप में ही पाते हैं।
आज़ादी के 75 साल बाद हम कहां…
अर्जुन राम मेघवाल ने इस मौके पर कहा कि साहित्य उत्सव में इस बात पर मंथन किया जा रहा है कि आजादी के 75 वर्षों में हम कहां पहुंचे और अगले 25 वर्षों में कहां पहुंचना है। ऐसे आयोजन अब संस्कृति मंत्रालय द्वारा हर वर्ष देश के अलग-अलग स्थानों पर आयोजित किए जाएंगे। उन्होंने ये भी कहा कि शिमला के एेतिहासिक महत्व को देखते हुए संस्कृति मंत्रालय पर्यटन विभाग के सहयोग से जल्द ही एक बड़े संगीत महोत्सव का यहां आयोजन करेगा।
International Literature Festival In Shimla- गुलज़ार भी पहुंचे
साहित्य उत्सव में शिरकत करने पहुंचे बॉलीवुड के जाने माने गीतकार गुलजार वीरवार को मॉल रोड व रिज भी घूमे। इसके बाद गेयटी थियेटर पहुंचे। गुलजार शिमला स्थित भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के अध्येता भी रह चुके हैं।

इस अवसर पर राजयपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर, जगद्गुरु रामानंदचार्य, स्वामी रामचंद्र आचार्य, शिक्षा मंत्री गोबिद ठाकुर और अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे।
International Literature Festival In Shimla- -साहित्य का फलक बहुत विस्तृत
सिनेमा के लिए लेखन पर बहुत से पुरस्कारों से सम्मानित यतींद्र मिश्र ने कहा कि साहित्यकार अगर इस दिमाग से लिखेगा कि इसकी फिल्म बनानी है तो यह ठीक से साहित्य नहीं बन पाएगा। सिनेमा को एक फ्रेम में रचा जाता है। साहित्य का फलक बहुत विस्तृत होता है। शायद यही कारण है कि मुंशी प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु जैसे साहित्यकार असफल रहे हैं। यही बात सिनेमा के लेखकों पर लागू होती है, उन्हें साहित्य में उल्लेखनीय पहचान नहीं मिल पाती। गुलजार साहब ने बहुत से प्रयोग किए हैं, मगर इनका शिल्प बिल्कुल नया है। उन्होंने कहा कि फिल्म को साहित्यिक दर्जा मिलना चाहिए।
International Literature Festival In Shimla- -गुलजार की विशाल भारद्वाज से बातचीत आज
साहित्य उत्सव में 17 जून को गुलजार के साथ विशाल भारद्वाज की बातचीत भी आकर्षण का हिस्सा होगी। 17 जून के सत्र में आदिवासी लेखकों के समक्ष चुनौतियों एवं रचनापाठ की अध्यक्षता अनिल बर, गैर मान्यता प्राप्त भाषाओं में वाचिक महाकाव्य की महेंद्र कुमार मिश्र, साहित्य एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की एसएल भैरप्पा,बहुभाषी कविता पाठ की माधव कौशिक, अस्मिता लेखिका सम्मेलन की पारमिता सतपथी, मीडिया, साहित्य एवं स्वाधीनता आंदोलन पर बलदेव भाई शर्मा अध्यक्षता करेंगे। 18 जून को ही मैं क्यों लिखता हूं/लिखती हूं की अध्यक्षता रघुवीर चौधरी करेंगे। वहीं अमेरिका से विजय शेषाद्रि, चित्रा बैनर्जी दिवाकरुणी, मंजुला पद्मनाभन, मेडागास्कर से अभय के., दक्षिण अफ्रीका से अंजू रंजन, यूके से दिव्या माथुर, सुनेत्र गुप्ता, नीदरलैंड से पुष्पिता अवस्थी और नॉर्वे से सुरेश चंद्र शुल्क प्रवासी भारतीय साहित्यिक अभिव्यक्तियां विषय पर होने जा रहे संवाद में भाग लेंगे।