Indian Women Athletes In Tokyo- ओलंपिक में भारतीय महिला खिलाड़ियों ने दिखा दिया कि वे किसी से कम नहीं हैं। भारतीय हॉकी महिला टीम की बात हो या बाकी एथलेटिक्स में महिला खिलाड़ियों के प्रदर्शन की, सबने अपनी प्रतिभा से देश ही नहीं बल्कि दुनिया में नाम रौशन किया। इन महिला खिलाड़ियों ने हर बार की तरह देश के लिये पदक हासिल किये। इनकी जीत ने एक नयी इबारत लिखी। जो भविष्य के खिलाड़ियों के लिए प्रेरणादायक बनेगी। यहां हम बात कर रहे हैं देश का नाम रोशन करने वाली इन महिला खिलाड़ियों की…
Indian Women Athletes In Tokyo- मीराबाई चानू

मणिपुर की रहने वाली मीराबाई छह भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं और कद की भी छोटी हैं। इम्फाल से करीब 20 किलोमीटर दूर उनका गांव नोंगपोक काकजिंग है। पहाड़ी इलाकों के जीवन की तरह इनका बचपन भी कठिन परिस्थितियों वाला रहा। चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी काटना और भोजन बनाने एवं पीने के लिए दूर-दराज से पानी भरकर लाना ही इनकी दिनचर्या थी। हां दिली रुझान खेलों के प्रति था। वह तीरंदाज बनना चाहती थी, लेकिन वेट लिफ्टर कुंजरानी के बारे में सुना तो इसी में आगे बढ़ने की ठान ली। मेहनत रंग लाई और रविवार 8 अगस्त को अपना जन्मदिन एक शानदार जश्न के साथ मनाया।
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ट्रक में चढ़कर जाती थीं प्रैक्टिस करने
हालांकि यह सफर इतना आसान नहीं था। स्पोर्ट्स अकादमी घर से बहुत दूर थी। ट्रक में लिफ्ट लेकर वह जातीं, खूब पसीना बहातीं और वापस आकर घर के काम भी निपटातीं। तभी तो जब वह टोक्यो से लौटीं तो ट्रक ड्राइवर के लिए विशेष भोज का इंतजाम किया। बचपन से ही कड़ी मेहनत करने वाली चानू का जोश और जज्बा आखिरकार रंग लाया। टोक्यो ओलंपिक में पहले ही दिन पदक तालिका में भारत का नाम अंकित करा दिया था। उन्होंने 49 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीतकर भारोत्तोलन में पदक के 21 साल के सूखे को खत्म किया। इस 26 साल की खिलाड़ी ने कुल 202 किलो भार उठाया। वह ओलंपिक मेडल जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला भारोतोल्लक हैं। मीराबाई चानू के बारे में प्रसिद्ध है कि वह अपने बैग में हमेशा देश की मिट्टी रखती हैं।
पीवी सिंधू है रोशनी

महज 8 साल की उम्र में बैडमिंटन थाम लिया था। शौकिया खेल की तरह नहीं, जूनून के साथ। जुनून तो होना ही था। आखिर परिवार में माहौल ही खेल और खिलाड़ी का था। स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु के पिता पिता पीवी रमन्ना और मां पी विजया राष्ट्रीय स्तर पर वॉलीबॉल खेल चुके हैं। माता तो अर्जुन अवार्डी हैं। बैडमिंटन पर अपना अलग स्टाइल बना चुकीं पीवी सिंधु का जोश और जज्बा ही था कि ओलंपिक में इनके जाने पर ही पदक की उम्मीद बंध चुकी थी और हुआ भी वैसा ही। इस 26 साल की खिलाड़ी ने इससे पहले 2016 रियो ओलंपिक में रजत पदक जीता था। वह ओलंपिक में दो पदक जीतने वाली देश की पहली महिला और कुल दूसरी खिलाड़ी हैं।
कई रिकॉर्ड हैं सिंधू के नाम
हैदराबाद की इस खिलाड़ी ने 2014 में विश्व चैंपियनशिप, एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतने के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनायी। पूरी दुनिया में स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी के तौर पर ख्याति पा चुकीं पीवी सिंधु को अब तक कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। बचपन से ही बैडमिंटन खेल रहीं सिंधु ने तब और दृढ़ संकल्प ले लिया जब 2001 में पुलेला गोपीचंद ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप का खिताब जीते। सिंधु ने अपनी पहली ट्रेनिंग सिकंदराबाद में महबूब खान की देखरेख में शुरू की थी। इसके बाद सिंधु गोपीचंद की अकादमी से जुड़कर बैडमिंटन के गुर सीखने लगीं। कई अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में देश का नाम रोशन कर चुकीं सिंधु प्रसन्न रहकर अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते रहने को ही सफलता की सही डगर मानती हैं।
मुक्केबाज़ लवलीना बारगोहेन बनीं विश्व चैंपियन

पिता टिकेन बारगोहेन का अपना व्यवसाय। माता मामोनी बारगोहेन हाउस वाइफ। बच्ची ने बचपन में ही अपने इरादे स्पष्ट कर दिए। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। मां ने पूरा सपोर्ट किया। पिता ने पैसे की तंगी नहीं आने दी और इस जुनूनी लड़की लवलीना बोरगोहेन ने 23 साल की उम्र में अपने करिअर के पहले ही ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया। वह विजेन्दर सिंह और मैरी कॉम के बाद मुक्केबाजी में पदक जीतने वाली तीसरी भारतीय खिलाड़ी हैं। असम के गोलाघाट जिले के बरो मुखिया गांव की लवलीना पहले ‘किक-बॉक्सर’ बनना चाहती थीं। लवलीना और उनकी दो बहनों ने पिता के लिए चाय बागान के व्यवसाय को आगे बढ़ाने में भी बहुत सपोर्ट किया। धीरे-धीरे पिता का व्यवसाय अच्छा जम गया और लवलीना के सपनों को पंख लगने लगे। उन्होंने अपने इरादे जाहिर किए और लग गयीं पूरी धुन से।
कोरोना से जंग जीतकर जीता मेडल
टोक्यो ओलंपिक की तैयारी के लिए उन्हें यूरोप जाना था। कुल 52 दिनों का टूर था। लेकिन ऐन मौके पर कोरोना वायरस से संक्रमित हो गयीं। उन्होंने कोरोनो को मात दी और ऐसी शानदार वापसी की कि 69 किलोग्राम वर्ग में चीनी ताइपे की पूर्व विश्व चैम्पियन निएन-शिन चेन को मात दे दी। असम की इस लड़की के जीवन में भले ही आर्थिक तंगी कभी रोड़ा न बनी हो, लेकिन सामाजिक ताने-बाने से इन्हें कई बार दो-चार होना पड़ा। समाज में कई लोग लड़कियों को आगे बढ़ते नहीं देख सकते थे। लेकिन लवलीना को घरवालों का सपोर्ट मिला तो उन्होंने अपनी ट्रेनिंग शुरू कर दी। मैरीकॉम को अपना आदर्श मानने वाली लवलीना ने आखिरकार खूब मेहनत की और उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिलता रहा। शुरुआत छोटी-मोटी प्रतियोगिताओं से हुई और देखते-देखते ओलंपिक तक का पदकीय सफर शानदार रहा।