Mental Immunity की तरफ इससे पहले शायह ही कभी ध्यान दिया गया हो। बड़ों के साथ छोटे बच्चों के मन पर भी कोरोना ने खासा असर किया है। स्कूल बंद हैं, बाहर खेलना मना है। दोस्तों के घर जाना, उनको घर बुलाने पर भी रोक लगी है। इससे वो बहुत परेशान हो रहे हैं जिसका असर उनकी मेंटल हेल्थ पर पड़ रहा है। तो इस वक्त पेरेंट्स को जरूरत है उनका खास ख्याल रखने की।
Mental Immunity की तरफ ऐसे दें ध्यान- बच्चे के गुस्से को समझें
बच्चा अगर छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो रहा है, दिन भर उदास रहता है और जरा-जरा सी बात पर रोने लगता है तो उसके इस बिहेवियर पर चिढ़ने के बजाय समझने की कोशिश करें। क्योंकि यह संकेत है कि बच्चा मानसिक रूप से परेशान है।
उनकी बात भी सुनें

थोड़ा वक्त बच्चों के लिए भी निकालें। उनके साथ खेलें, नई-नई चीज़ें सिखाएं और भी दूसरी एक्टिविटीज़ में इंगेज करें। इससे उसकी बोरियत तो दूर होगी ही साथ ही वो कुछ नया भी सीख जाएंगे।
Mental Immunity की अहम कड़ी- पर्सनल स्पेस भी दें
दिन भर बच्चे के पीछे लगे रहने, उसकी केयर करने के साथ-साथ उसे पर्सनल स्पेस न देना भी दर्शाता है। तो कुछ देर के लिए उसे अकेला भी छोड़े। जिससे वो अपने मन-मुताबिक चीज़ें करेगा। हां, लेकिन ध्यान रखें कि वो कुछ गलत न कर रहा हो।
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खुद भी सकारात्मक रहें
नेगेटिव बातों से थोड़ी दूरी बनाकर रखें और विपरीत परिस्थितियों में मन को खुश रखने का प्रयास करें। कहते हैं मनुष्य के मष्तिष्क में एक दिन में 60 हजार विचार आते हैं। इनमें से आधे विचार नेगेटिव होते हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि अधिकतर विचार क्षण भर के लिए आते हैं और निकल जाते हैं। कुछेक विचार ऐसे होते हैं जो दिमाग से निकलते ही नहीं। वो कहते हैं न कि यह बात मेरे दिमाग में अटक गई। बस उसी बात को आपने इस कसौटी पर तोलना है कि वह फीलिंग मात्र है या फैक्ट (वास्तविकता) से उसका कुछ लेना-देना है। जिस दिन यह फर्क आपने ठीक से कर लिया, आप व्यवहारिक जीवन में कभी मात नहीं खाने वाले।
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Mental Immunity की ज़रूरत, तनाव और स्ट्रेस से बचें
यह एक मानसिक रोग है। इसमें रोगी को तेज बेचैनी के साथ नकारात्मक विचार आते हैं और डर लगता है। चिंता का अहसास होता है। जैसे अचानक हाथ कांपने लगते हैं या फिर पसीना आने लगता है। कोई काम करने में मन न लगना भी एनजाइटी का लक्षण हो सकता है। इस तरह के मानसिक रोगों का भी उपचार संभव है। मानसिक रोग जैसे लक्षण होने पर चिकित्सक की सलाह लें। शुरुआत में केवल काउंसलिंग से ही उपचार हो जाता है। रोग बढ़ने पर दवाएं खानी पड़ती हैं और उसके साथ काउंसलिंग भी की जाती है।