महामारी की मार- असहाय हो गये सैकड़ों परिवार, तुरंत मदद करे सरकार

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कोरोना महामारी की मार की वजह से मानव जीवन संकट में है। अब उन परिवारों की परेशानी बहुत बढ़ गई जिनके घरों की अकेले व्यक्ति के आधार पर जीविका चल रही थी। सरकारें अपने-अपने स्तर पर मदद करने करने की घोषणाएं तो कर रही है लेकिन अभी धरातल पर सब शून्य है। मध्यम व गरीब वर्ग के परिवारों का जीवन कठिनाई की ओर इसलिए चला गया। चूंकि इनके पास बैकअप के रुप में किसी भी प्रकार की धनराशि व संपत्ति नहीं होती। इनमें से बहुत से लोग तो किराए पर भी रहते हैं और ऐसे लोगों को जीवन-यापन करना बहुत बेहद मुश्किल हो रहा है।

महामारी की मार- करोड़ों लोग संक्रमण की चपेट में

आंकडों पर गौर करें तो कोरोना से देश में अब तक ढाई करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं। जिनमें से करीब पौने तीन लाख लोगों की मौंत हो चुकी है। यह वो आंकडा हैं जो सरकार ने बताया है। यदि सच्चाई पर जाएं तो निश्चित तौर यह दोगुना होगा। यदि इन आंकडों का भी वर्गीकरण करें तो मरने वाले 68 प्रतिशत गरीब व मध्यमवर्गीय लोग हैं।

मदद की घोषणाएं लेकिन अमल कब…?

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बीते दिनों मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी कोरोना से मरने वालों के परिजनों की मदद करने की घोषणा की है। केजरीवाल ने कहा कि ‘मैं ऐसे कई बच्चों को जानता हूं जिन्होंने अपने माता-पिता को कोरोना से खो दिया है। मैं उनका दर्द समझता हूं। इसके अलावा जिन बुजुर्गों ने अपने घर के कमाऊ युवाओं को खो दिया है, उन्हें भी सरकार मदद देगी। दिल्ली सरकार ऐसे बुजुर्गों को आर्थिक मदद मुहैया कराएगी।‘ 

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महामारी की मार-दिहाड़ीदारों पर संकट

लेकिन सवाल व स्थिति अपनी जगह अडिग है क्योंकि पीडित परिवारों को मदद कब और कैसे मिलेगी इसका अभी कोई अता-पता नही हैं ? इनमें से बहुत सारे लोग ऐसे थे जो रोज कमाकर अपना जीवन निर्वाह करते थे, मृतक के घरवालों को मकान मालिकों ने किराए का पैसा न मिलने पर भगाना शुरु कर दिया व राशन वालों ने उधार देना बंद कर दिया। हालात बद से बदतर होने लगे हैं।

परिवार में कई कमाने वाला नहीं

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ऐसे लोग सामाजिक संस्थाओं द्वारा जो खाना मिल जाता है उस ही पर आश्रित हो गए। जिसके परिवार में बूढ़े मां-बाप,पत्नी और बच्चे हैं और उनका कमाने वाला चला गया उन परिवारों की स्थिति बेहद दयनीय होती जा रही है। ऐसे स्थिति में बूढे मां-बाप कमा नहीं सकते और पत्नी छोटे बच्चों को छोड़कर जा नहीं सकती और यदि कुछ महिलाएं जा भी सकती हैं तो लॉकडाउन की वजह से उन्हें किसी भी प्रकार का काम नहीं मिल रहा।

महामारी की मार- घोषणाएं नहीं ज़मीनी स्तर पर काम की ज़रूरत

ऐसे लोगों के लिए सरकार को बेहद गंभीरता से सोचने की जरुरत है कि लोग भुखमरी के शिकार न हों। यहां अन्य मामलों की तरह घोषणाओं को लटकाते हुए काम नहीं चलेगा। चूंकि इस बार मामला मानव जीवन पर संकट और बुनियादी ज़रुरत का है। यदि लोग भूख से मरने लगे तो यहां सरकार पर कई तरह के सवालिया निशान खड़े हो जाएंगे। जिसकी शुरुआत होने लगी है। इसके अलावा सबसे बड़ी चिंता का विषय यह भी है कि जिन लोगों को अस्पतालों में बेड नहीं मिला। वह बिना इलाज के ही मर गए, उन लोगों को सरकार अपने आंकडें में नहीं गिन रही।

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जांच कमेटी गठित हो

इस ओर एक कमेटी गठित करके जांच के आधार ऐसे परिवारों को भी मदद देने की जरुरत है। यहां केन्द्र व राज्य सरकारों को बडे एक्शन ऑफ प्लान की आवश्क्ता है। निवेदन यह है कि ऐसे में सरकारें अपनी राजनीति चमकाने व उपस्थिति दर्ज कराने के चक्कर में जनता को निशाना न बना लें चूंकि उदाहरण के तौर पर यदि हम राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां का वासी केन्द्र व राज्य सरकार के आपसी मतभेद की भेंट चढ़ जाता है। हर मामले पर केजरीवाल कहते हैं कि हमनें तो केन्द्र सरकार से कुछ मांगते हैं तो वह देती नहीं।

महामारी की मार- भूखों मरने की नौबत न आये

केजरीवाल ने अपने स्तर पर कोरोना से पीडित परिवारों की मदद का जो ऐलान किया है तो वह उसका जल्द से जल्द पूरा करें। यदि वो अन्य घोषणाओं की तरह इसमें केवल राजनीति कर रहे तो जनता सांसत में आ जाएगी। चूंकि इस बार ज़रुरत किसी योजना के लाभ से नहीं जुड़ी अब तो मामला भूख से मरने का हो गया। हालात बैचेन करने वाले बन चुके हैं।

ऐसे निपटेंगे संकट से?

पिछले वर्ष लॉकडाउन में केजरीवाल ने मकान मालिकों से किराया न लेने की अपील की थी। उसके लिए कोई कानूनी खाका तैयार नही किया था। उसका परिणाम यह हुआ कि किसी भी मकान मालिक ने किसी भी प्रकार की कोई मदद नहीं की। कुछ घटिया मानसिकता के लोगों ने तो किराएदारों का सामान घर से बाहर फेंक दिया था। ऐसे मामलों में पुलिस भी कोई सहायता नही कर पाई थी।

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टकटकी लगाए देख रही है जनता

केजरीवाल या अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों की मदद की घोषणाओं के बाद जरुरतमंद टकटकी लगाए बैठे हैं कि सरकार हमें बचा लेगी इसलिए तुरंत प्रभाव के साथ पूरे देश में इस मामलें को लेकर एक जैसा नियम लागू होना चाहिए। इस बार केन्द्र सरकार का स्वास्थ्य बजट 94,452 करोड था लेकिन कोरोना संकट के चलते बढ़ाकर 2,23,846 करोड कर दिया। इस बजट में 35000 करोड की वैक्सीन भी शामिल है लेकिन यहां अहसहाय परिवारों की मदद के लिए थोडा सा और बजट बढ़ाया जाए।

महामारी की मार-अमेरिका का मॉडल

अपने-अपने देश की जनता के लिए आर्थिक मामले पर विश्वस्तरीय चर्चा करें तो अमेरिका ने पिछले वर्ष कोरोना से मरने वालों के परिजनों व लॉकडाउन की वजह से 17.5 करोड डॉलर के पैकेज के द्वारा मदद की थी। इस वर्ष भी नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 139 राहत पैकेज का ऐलान किया है। इसके तहत हर अमेरिकी को खाते में कारीब एक लाख रुपये मिलेंगे। इसके अलावा रुस, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब व अन्य तमाम देशों ने अपने नागरिकों को आर्थिक मदद करके उन्हें संकट में नही आने दिया। हमारे देश में संदर्भ में चर्चा करें तो अधिक जनसंख्या का होना हमें पिछड़ा बनाता है।

महामारी की मार-तैयार हो चुनौती से निपटने का खाका

मोदी सरकार को धरातल पर उतर कर काम करना होगा। यदि यह काम राज्य स्तर करना है तो उसके लिए मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की जाए। तुरंत प्रभाव के साथ आदेश दिया जाए और जल्द से जल्द खाका तैयार कर जरुरतमंदों को लाभ पहुंचाया जाए।

योगेश कुमार सोनी, वरिष्ठ पत्रकार