World Environment Day 5 June 2021, डिजिटल लड़ाई भी लड़नी होगी पर्यावरण के लिए

World Environment Day 5 June 2021। हमारे जीवनशैली में भी कई परिवर्तन हुए हैं। सभी को स्वीकार करना पडा। वर्क
फ्राॅम होम और आॅनलाइन क्लास को न चाहते हुए भी सभी ने स्वीकारा। उसी पर चल रहे हैं आज भी। जो बातें आपस में मिलकर और आमने सामने बैठकर होती थीं, वह डिजिटल की दुनिया में दखल देने लगीं। तो भला पर्यावरण की बात इससे अछूती कहां
रहती।

इंटरनेट की स्पीड कमतर

महानगरों और शहरों में काम करने वालों के लिए तो डिजिटल दुनिया आसान है, लेकिन जो गांवों औार सुदूरक्षेत्रों में रहते हैं उनके लिए कई तरह की समस्याएं हैं। बिजली का गुल हो जाना। इंटरनेट की स्पीड कमतर होना। कई बार कई घंटों तक बिजली का गुल होना। कुछेक बार तो कई दिनों तक इंटरनेट ही नहीं रहा। ऐसे में काम का प्रभावित होना लाजिमी है।

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जलवायु कार्यक्रम ऑनलाइन होने लगे

हाल ही में खबर आई कि कोरोना महामारी के दौरान जब जलवायु कार्यक्रम ऑनलाइन होने लगे, तो कई कार्यकर्ता खराब इंटरनेट की वजह से शामिल नहीं हो पा रहे हैं। खराब इंटरनेट जलवायु कार्यकर्ताओं के लिए समस्या पैदा कर रहा है। इसका असर इस
क्षेत्र में काम करने वालों पर अधिक है। बता दें कि कुछ दिन पहले ही जाम्बिया की जलवायु प्रचारक प्रीशियस कलोम्बवाना अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर के साथ ऑनलाइन ट्रेनिंग कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर उत्साहित थीं। दिक्कत यह रही कि जब उनकी बोलने की बारी आई तो खराब इंटरनेट के कारण उनकी आवाज और लोगों तक नहीं पहुंच पाई। कोरोना महामारी के कारण आयोजन वर्चुअल तरीके से हो रहे हैं। इनमें यूएन की जलवायु वार्ता भी शामिल है, जो सोमवार, 31 मई सेशुरू हंुई थी।

जलवायु कार्यकर्ता और विशेषज्ञ

इस तरह के आयोजनों में डिजिटल रूप से शामिल होना आसान हो गया है, लेकिन दुनिया भर में कई ऐसे कार्यकर्ता भी हैं जो कहते हैं विश्वसनीय कनेक्टिविटी के बिना उनकी आवाज कहीं गायब हो जाती है। अब इस ओर भी वैश्विक संगठनों का ध्यान गया है। इसकी चर्चा यूएन में भी हुई। कहा गया कि पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वालों को अब डिजिटली भी इम्पावर करना होगा।

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नेटवर्क जलवायु कार्रवाई

इस संदर्भ में 27 साल की कलोम्बवाना ने अपने अनुभव साझा किए। इनका अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर के साथ कार्यक्रम निराशाजनक अनुभव था। उन्होंने बताया कि जब आप कनेक्ट करने की कोशिश करते हैं और बोलना चाहते हैं और ऐसा नहीं
हो पाता है तो यह बहुत तनावपूर्ण होता है। बता दें कि कलोम्बवाना, सामुदायिक विकास के लिए नागरिक नेटवर्क जाम्बिया के लिए काम करती हैं, नेटवर्क जलवायु कार्रवाई के लिए एक गैर-लाभकारी अभियान चलाता है। हालांकि, कोरोना ने उन्हें कई प्रकार की सहूलियत भी प्रदान की। मसलन, कोविड-19 से पहले जलवायु परिवर्तन पर होने वाले आयोजनों में शामिल होने के लिए भी
कलोम्बवाना को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। कठिन वीजा व्यवस्था, लंबी यात्राएं और महंगे हवाई किराए। कई बार ऐसा संभव नहीं हो पाता था और वो ऐसी बैठक में शामिल नहीं हो पाईं।

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डिजिटल आयोजन

मगर यह आयोजन डिजिटल रूप से होने लगा तो इनके लिए और इनके जैसे दूसरे लोगों के लिए कई सुविधा लेकर आया। डिजिटल आयोजन में सिर्फ लॉग इन करने की जरूरत होती है,  लेकिन इस बदलाव ने डिजिटल विभाजन को भी उजागर किया है। खासकर गरीब क्षेत्रों और विकासशील देशों में रहने वाले जलवायु कार्यकर्ता अक्सर सबसे खराब कनेक्टिविटी से जूझते हैं।

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कोरेाना और पर्यावरण

हम कोरेाना और पर्यावरण के संदर्भ में इससे इतर बात करें, तो वर्तमान समय में कोरोना ने पूरे विश्व भर में एक अत्यंत ही घातक महामारी का रूप ले लिया है। कोरोना वायरस के चलते पूरी दुनिया में लंबे समय तक लॉकडाउन रहा। इसके चलते प्रकृति में मनुष्य का दख़ल एकदम बंद हो गया। नतीजा, प्रकृति खुलकर, निखरकर अपने नैसर्गिक स्वरूप में आ गई।

लॉकडाउन और पर्यावरण

कोरोना वायरस से मानवता को जरूर बड़ा नुकसान हुआ है, लेकिन पर्यावरण पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। लॉकडाउन की वजह से तमाम फैक्ट्रियां बंद हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अर्थव्यवस्था को भारी धक्का लग रहा है। लाखों लोग बेरोजगार हुए हैं। लेकिन अच्छी बात यह है कि कार्बन उत्सर्जन रुक गया है। ऐसा पहली बार नहीं है कि किसी महामारी के चलते कार्बनडाई ऑक्साइड का स्तर कम हुआ हो। इतिहास में इसके कई उदाहरण मिलते हैं। यहां तक कि औद्योगिक क्रांति से पहले भी यह बदलाव देखा गया था। जर्मनी की एक जानकार जूलिया पोंग्रात्स का कहना है कि यूरोप में चैदहवीं सदी में आई ब्लैक डेथ हो, या दक्षिण अमरीका में फैली छोटी चेचक। सभी महामारियों के बाद वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर कम दर्ज किया गयाथा। उस दौर में परिवहन के साधन भी बहुत सीमित थे और जब महामारियों के चलते बहुत लोगों की मौत हो गई, तो खेती की जमीन भी खाली हो गई और वहां ऐसे जंगली
पौधे और घास पैदा हो गए जिससे गुणवत्ता वाली कार्बन निकली।

REIMAGINE. RECREATE. RESTORE. : https://www.un.org/en/observances/environment-day

लेखिका – दीप्ति अंगरीश पत्रकार हैं।