डॉ. रितिका सचदेव एडिशनल डायरेक्टरसेंटर फॉर साइट, नई दिल्ली
नवजात की आंखों की देखभाल कैसे करें, माता-पिता के सामने यह बड़ी चुनौती होती है। जानकारी के अभाव में पेरेंटस अक्सर नवजात बच्चों के अंगों की अनदेखी कर जाते हैं। जबकि शिशु की आंख के रंग पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए बल्कि आंख की छोटी से छोटी कमी का पता लगने पर तुरंत आई एक्सपर्ट के पास जाना चाहिए. आइए जानते हैं कि हम घर पर कैसे जांच कर सकते हैं?

जन्म के समय में ही आंख में किसी प्रकार की गड़बड़ी का पता चलते ही आई एक्सपर्ट के पास जाएं. शिशु की आंखें व्यस्क की अपेक्षा छोटी होती हैं. इन्हें व्यस्क की आंखों के बराबर विकसित होने में लगभग दो वर्ष का समय लगता है. नवजात शिशुओं की आंखों में संक्रमण कोई असाधरण बात नहीं है. पैदा होने से लेकर तीन सप्ताह तक शिशु नियोनैटल कंजक्टिवाइटिस का शिकार हो सकता है. इसके लक्षण स्वरूप शिशु की आंख लाल रहती है और निरंतर पानी निकलता रहता है. इस संक्रमण को आई एक्सपर्ट द्वारा दी गई एंटीबायोटिक के इस्तेमाल से ठीक किया जा सकता है. आंखों में से निरंतर पानी गिरना और तरल मात्रा में डिस्चार्ज की समस्या कई बच्चों में आमतौर पर पाई जाती है.
आंख से पानी आना

शिशु के जन्म ( baby birth) के बाद लगभग चार सप्ताह तक बच्चों की आंख में आंसू कम बनतेे हैं इसलिए आंख से किसी भी प्रकार का पानी आना आसाधरण और हानिकारक होता है. जन्म के समय आंख से पानी आने का मतलब संक्रमण होता है, लेकिन शिशु के तीन महीने या उससे अधिक के हो जाने पर ऐसे लक्षणों का उभरना टियर डक्ट (tear duct) का रूक जाना माना जाता है. टियर डक्ट (tear duct) वह छोटी ट्यूब होती हैं, जो आंखों के भीतरी छोर को नाक से जोड़ती हैं. ये जन्म के तीन से चार सप्ताह के पश्चात् विकसित होती हैं. ऐसे में नाक के मध्य भाग पर मालिश और एंटीबायोटिक से राहत पहुंचती है. लेकिन अगर यह पानी निकलना 3-4 महीनों तक ठीक न हो तो एक प्रक्रिया के दौरान टियर डक्ट (tear duct) को खोला जाता है. लेकिन इलाज में देरी करने से आगे चलकर बड़ी surgery करानी पड़ सकती है.
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बुफ थैलमस या इंफैंटाइल ग्लूकोमा infantile glaucoma

आप मानें या न मानें, जन्म के समय पर काला मोतिया भी हो सकता है. बुफ थैलमस ( buff thalamus) या इंफैंटाइल ग्लूकोमा ( infantile glaucoma) वह अवस्था होती है, जब आंखों में से पानी निकलता है और फोटोफोबिया, प्रकाश में असहजता महसूस होती है। इसके उपचार के लिए पहले आंखों में दवाएं डाली जाती हैं जिससे आंख का प्रेशर काबू में लाया जा सके. उसके उपरांत सर्जरी की जाती है. अगर आंख का मध्य काला भाग कोर्निया धुधला दिखे या फिर उसके आसपास सफेद भाग उत्पन्न हो गया हो तो तुरंत डाक्टर से परामर्श लें. हो सकता है कि गर्भावस्था के दौरान मां से शिशु की आंख में संक्रमण हो जाए. इसे मां और शिशु दोनों में टार्च टेस्ट करके निश्चित किया जा सकता है. पलक में किसी भी प्रकार की विषमता को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.
कोलोबोमा क्या है coloboma is what
कोलोबोमा ( coloboma) वह अवस्था है जब पलक का कोई भाग अनुपस्थित हो. दरअसल, पलक कोर्निया का 1-2 मिमी भाग ढक़ते हैं. लेकिन किसी शिशु में अगर ये ज्यादा भाग को ढक़ते हों तो यह स्थिति पलक का लटकना कहलाती है. इसलिए शिशु की आंखों की हर गतिविधि को ध्यान से देखना चाहिए. अगर गतिविधि में कोई रूकावट हो तो यह अवस्था नर्व पाल्सी कहलाती है.समय से पहले जन्मे बच्चों में आरओपी या रेटिनोपैथी आफ प्रीमैज्युरिटी होने का खतरा अधिक होता है। यह ऐसा विकार है जो कि दोनों आंखों की रौशनी छीन सकता है।
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प्रेगनेंसी के आखिरी हफ्तों में विकसित होती हैं आंखें
खासकर वे शिशु, जो समय से पहले पैदा हो जाते हैं या जिनका वजन कम होता है, इससे प्रभावित होते हैं. दरअसल, गर्भावस्था के आखिरी बारह सप्ताहों में आंखें तेजी से विकसित होती हैं. तो, पहले पैदा हुए शिशुओं की आंखें सही ढ़ंग से विकसित नहीं हो पातीं और आंखों में कुछ असाधारण रक्त कोशिकाएं जन्म लेने लगती हैं. इन कोशिकाओं से खून निकलता है, जो कि रेटिना को क्षति पहुंचाता है. कई शिशु तो इसके चलते अंधेपन का शिकार हो जाते हैं. इसलिए किसी योग्य नेत्र रोग विशेषज्ञ से इसकी जांच कराना आवश्यक है जिससे शिशु को अंधेपन से बचाया जा सके. http://मां चाहती है शिशु की संपूर्ण सेहत, ये चीजें खाएं ताकी…
आंखों के जुड़ाव पर भी करें गौर

शिशु की आंखों का जुड़ाव भी ठीक होना चाहिए. टेढ़ी आंखें भेंगापन का चिन्ह हो सकती हैं. ऐसे केस में तुरंत नेत्र विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए. हालांकि छ: महीने तक आंखों के जुड़ाव में किसी अंतर को साधारण माना जा सकता है. शिशु की दृष्टि तीव्रता की जांच इससे की जाती है कि वह प्रकाश और अन्य उत्पादों के प्रति किस तरह की प्रतिक्रिया करता है?
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वैसे, तो यह बहुत ही कम देखने को मिलता है. मगर कई शिशु ऐसे भी होते हैं जिनकी आंखें बनी ही नहीं होतीं. आंख की जगह पर खाली गड्ढ़े बने होते हैं. इसलिए अभिभावकों को शिशु की आंख संबंधित हर क्रिया पर गौर करना चाहिए. शुरूआती अवस्था में ही किसी भी विषमता का निदान और उसका उपचार आवश्यक है. इससे आप अपने शिशु की दुनिया में नया उजाला ला सकते है।