कहीं आपका बच्चा भी ADHD सिंड्रोम से पीड़ित तो नहीं है। दरअसल, बच्चों को समझना आसान नहीं होता, कई बार तो हम उन्हें बिना बात के डांट देते हैं। अपनी आशाओं को हम उन पर लाद देते हैं । नतीजा, वो कब उपेक्षा का शिकार हो जाते हैं हमें पता भी नहीं चलता। बच्चे का पढ़ाई में कमजोर होना, बात ना मानना या जिद करना ये कुछ ऐसे लक्षण हैं जो हमे सबसे ज्यादा परेशान करते हैं। हम मान बैठते हैं कि बच्चा बिगड़ गया है। लेकिन हम कभी इस समस्या की तह तक नहीं जाते। जानकर हैरानी होगी कि ये बच्चे के बिगड़ने के नहीं बल्कि एडीएचडी सिंड्रोम के लक्षण हैं। जी हां भारत में बीते कुछ समय में लाखों बच्चे एडीएचडी सिंड्रोम का शिकार हुए हैं। भारत के 12% से ज्यादा बच्चे एडीएचडी सिंड्रोम का शिकार हैं।
ध्यान नहीं लगा पाते
ये एक ऐसा सिंड्रोम है जिसमें बच्चों को ध्यान लगाने में परेशानी होती है और उसके स्वभाव में उत्तेजना आ जाती है। एडीएचडी यानी अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर का शिकार ज्यादातर वो बच्चे होते हैं, जिनके घरों में झगड़े होते हैं या जो तनाव में रहते हैं। इस सिंड्रोम के कारण बच्चों की पढ़ने-लिखने और नई चीजें सीखने की क्षमता प्रभावित होती है। कई बार बड़े भी इस सिंड्रोम का शिकार होते हैं मगर ज्यादातर बच्चों में ही ये पाया जाता है।
एडीएचडी सिंड्रोम 3 प्रकार का होता है
ध्यान न देना– इससे ग्रसित बच्चे किसी भी काम में अपना ध्यान नहीं लगा पाते हैं, जिसकी वजह से उनकी पढ़ाई-लिखाई प्रभावित होती है। वो कक्षा में अपना 100 प्रतिशत नहीं दे पाते।
जरूरत से अधिक सक्रियता– ऐसे बच्चे हाइपरएक्टिव होते हैं । छोटी-छोटी बात पर नाराज होना, रोना, जिद करना जैसे लक्ष्ण इनमें आम देकने को मिलते हैं।
असंतोष– वैसे तो किसी भी बच्चे को पूरी तरह से संतुष्ट करना आसान नहीं होता लेकिन जो बच्चे इस सिंड्रोम से ग्रसित होते हैं उन बच्चों में असंतोष की भावना कहीं ज्यादा होती है। ऐसे बच्चे किसी चीज से संतुष्ट नहीं होते हैं और हर समय रोते रहते हैं। उन्हें किसी भी तरह से बहलाना मुश्किल हो जाता है
स्कूल जाने और पढ़ने में परेशानी– ये बच्चे बेहद सक्रिय होते हैं और कुछ अलग तरह का व्यवहार कर सकते हैं। उनकी देखभाल करना और उन्हें कुछ सिखाना काफी मुश्किल होता है। वे स्कूल में भी जल्दी फिट नहीं हो पाते हैं और कोई न कोई शरारत करते रहते हैं। यदि इस कंडीशन को शुरू में ही काबू न किया जाए तो यह जीवन में बाद में समस्याएं पैदा कर सकती हैं।
एडीएचडी सिंड्रोम का नहीं है इलाज
एडीएचडी सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ रही है लेकिन दुख की बात ये है कि इसका कोई इलाज नहीं है। हालांकि, मौजूदा उपचार से लक्षणों को कम करने और ऐसे बच्चों की कार्यप्रणाली में सुधार के उपाय किए जा सकते हैं। कुछ मामलों में उपचार के लिए मनोचिकित्सा, शिक्षा या प्रशिक्षण या इनका मिश्रण शामिल किया जा सकता है।
एडीएचडी सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों का रखें खास ख्याल
रूटीन सेट करें
अगर इन बच्चों का प्रॉपर रुटीन बनाया जाए तो काफी हद तक इन्हें संभाला जा सकता है। इसके लिए स्पष्ट सीमाएं निर्धारित करें, ताकि हर कोई जान ले कि किस तरह का व्यवहार अपेक्षित है।
पुरस्कार और इनाम
इन बच्चों में विश्वास की काफी कमी होती है लिहाजा उन्हें प्रोत्साहित करने की बहुत ज़रूरत होती है। इसलिए अच्छे काम पर प्रशंसा या पुरस्कार देने से सकारात्मक व्यवहार को मजबूत किया जा सकता है. अच्छे व्यवहार को बढ़ाने के लिए आप अंक या स्टार सिस्टम का उपयोग करने की कोशिश कर सकते हैं।
गुस्से पर काबू करने की करें कोशिश
कई बार इन बच्चों को काफी गुस्सा आ जाता है या कई बार वो किसी की नहीं सुनते और जिद पर अड़ जाते हैं। ऐसे समय में इन्हें संभालना काफी मुश्किल होता है लेकिन इस स्थिति से निपटने के लिए आपको धैर्य रखने की सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है। क्योंकि कई बार आवेश में हम बच्चे को दंड दे देते हैं जिससे उसका स्वभाव आगे जाकर और उग्र हो सकता है तो धैर्य रखिए और बच्चें को उसकी बात कहने का मौका दें । इसके बाद बच्चे को कहीं और व्यस्त करने की कोशिश करिए। बेहतर होगा उसका मनपंसद काम करिए जिससे वो पुरानी बात को भूल जाए। कहीं बाहर ले जाने का ऑपशन भी कई बार बेहतर साबित होता है। बच्चे के दोस्तों को घर भी बुला सकते हैं।
नींद है बहुत ज़रूरी
वैसे तो बच्चा हो या बड़ा सभी को अच्ची नींद लेनी चाहिए लेकिन इस तरह के बच्चों की नींद पूरी हो इसका आपको खास ख्याल रखना होगा । क्योंकि नींद पूरी होगी को उसका मस्तिष्क भी शांत रहेगा । जिसका असर उसके व्यवहार पर दिखाई देगा। लिहाजा सोने के समय उसे किसी रोमांचक गतिविधि में न उलझने दें।