High rise buildings of Gurugram-देश की राजधानी दिल्ली के साथ विकसित गुरुग्राम महानगर को मिनी भारत के नाम से स्वदेश व विदेशों में खूब पहचान मिली है। बड़े उद्योगों के कारण यहां देशभर के विभिन्न राज्यों से ही नहीं संसार के अनेक देशों के लोग यहां रह रहे हैं। यहां की गगनचुंबी कंक्रीट की इमारतें, बड़े शाॅपिंग माॅल्स व पाॅश इलाकों की रंगीनिया अनायास ही लोगों को लुभाकर यहीं अपने सपनों का आशियाना बनाने की चाह मन में पालने के लिए आतुर कर देती हैं। लेकिन सेक्टर 109 में चिंटेल्स पैरोडिसो सोसायटी की पांच मंजिलें भरभराकर गिरने के बाद ये उंची इमारतें रहने के लिए सुरक्षित भी हैं या नहीं, की शंका निवासियों के मन में घर कर गई है।
18 मंजिला हाईराइज हाउसिंग सोसायटी चिंटेल्स पैरोडिसो -निर्माण कार्य में गड़बड़ी
निर्माणाधीन द्वारका एक्सप्रेस-वे पर 18 मंजिला highrise housing society chintels parodiso के डी टावर की छह मंजिलें गिरने के हादसे ने उंची इमारतों में रहने वालों लोगों की नींद उड़ाकर रख दी है। विशेष तौर पर ऐसी सोसायटी में रहने वाले लोग हर रोज बुरे सपने लेने लगे हैं जो निर्माण कार्य में गड़बड़ी संबंधी शिकायतें विभिन्न सरकारी प्लेटफार्म पर करते रहे हैं। ये आरोप लगाते हैं कि अचानक सक्रिय हुई सरकारी एजेंसियां हादसे का सारा दोष बिल्डर के माथे मढ़ने की पाठकथा लिखने में जुट गए हैं।
High rise buildings of Gurugram-नामी बिल्डर्स की 20 से अधिक ऐसी हाईराइज हाउसिंग सोसायटी

इस 18 मंजिला टावर में 64 परिवार रह रहे थे लेकिन इसके ज्यादातर अभी भी खाली थे। इसके चलते इस हादसे में जनहानि को चेतावनी सूचक ही कहा जा सकता है। शहर में नामी बिल्डर्स की 20 से अधिक ऐसी हाईराइज हाउसिंग सोसायटी हैं जिनमें घटिया निर्माण सामग्री के इस्तेमाल, आर्किटक्चरल गड़बड़ी जैसी गंभीर समस्याओं से संबंधी शिकायतें नगर एवं ग्राम योजनाकार विभाग से लेकर, हरेरा, सीएम विंडो समेत विभिन्न स्तर पर किए जाने के बाद भी समाधान के नाम पर सुरसुराहट तक नहीं हुई। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग द्वारा उपलब्ध जानकारी पर नजर डालें तो गुरुग्राम-मानेसर अर्बन डवलेपमेंट प्लान (Gurugram-Manesar Urban Development Plan) में तहत सेक्टर 1 से 115 तक 308 Group Housing Society को लाइसेंस दिया गया है। ये करीब 4900 एकड़ जमीन पर विकसित की जा रही हैं। इसके अलावा अफोर्डेबल हाउसिंग सोसायटी विकसित करने के लिए 116 लाइसेंस दिए गए हैं जो लगभग 770 एकड़ में विस्तृत होंगी। इसमें 70 प्रतिशत से अधिक सोसाइटी विकसित हो चुकी हैं और इनमें डेढ़ लाख से अधिक परिवार रह भी रहे हैं। देश के किसी एक जिले में सबसे अधिक अफोर्डेबल हाउसिंग सोसायटी के लाईसेंस देने का श्रेय भी हरियाणा को जाता है।
बिल्डर्स को लाईसेंस कैसे मिले
भवन निर्माण कार्यों से संबंधित नीति-नियमों का निर्धारण एनबीसीसी (National Buildings Construction Corporation) द्वारा किया जाता है। इनके क्रियान्यवन की जिम्मेदारी मुख्यतः स्ट्रक्चरल इंजीनियर, आर्किटेक्ट व ठेकेदार की होती है। लेकिन हैरत की बात यह है कि बिल्डर्स को लाईसेंस देने, आईडीसी-ईडीसी समेत विभिन्न प्रकार के भारी भरकम शुल्क लेने वाली सरकार ने सामान्य स्थिति में निर्माण के समय या बाद में स्ट्रक्चरल स्ट्रेंथ की निर्माण के समय या कार्य पूरा होने के बाद जांच का प्रावधान नहीं है।
High rise buildings of Gurugram-पांच साल में ही कंडम हो गया एनबीसीसी का निर्माण
देशभर में होने वाले निर्माणों के लिए मानक तय करने वाली एनबीसीसी ने सेक्टर 37 डी में ग्रीन व्यू नामक सोसायटी (NBCC has set up a society named Green View in Sector 37D.) विकसित की है। करीब 800 फ्लैट वाली यह सोसायटी सिर्फ पांच साल में कंडम घोषित की गई है। आईआईटी दिल्ली की टीम ने सोसाइटी की बिल्डिंग अनसेफ अर्थात असुरक्षित घोषित कर इसे दो महीने के अंदर खाली करवाने की सिफारिश की है। इसी तरह सेक्टर 109 में रहेजा अर्थवा, सेक्टर 92 में रहेजा नवोदया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश की गई है। सेक्टर 71 स्थित सीएचडी एवेन्यू, सेक्टर 109 स्थित ब्रिक्स लुंबिनी समेत 20 से अधिक सोसायटीज की शिकायतों पर भी कार्रवाई की जा रही है।
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कंक्रीट को घुन की तरह खोखला कर रहा पानी में फ्लोराइड!
एनबीसीसी के सीएमडी पीके गुप्ता, ग्रीन व्यू सोसायटी की बिल्डिंग के मामले में आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर अनूप कृष्णन के नेतृत्व वाली टीम की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा, ‘टीम ने अध्ययन में कुछ टेस्टिंग की सिफारिश की। जिसमें पानी में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा होना बताया गया। इसी की वजह से कोरोजन हुआ और बिल्डिंग इतनी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई।’ वह कहते हैं कि ऐसा मामला उनके सामने पहले कभी नहीं आया। अब सीपीआरआई तथा आईआईटी रुड़की के 4 सदस्यों की एक एक्सपर्ट कमेटी बनाई गई। उनकी अनुशंसा पर सोसाइटी में फिर कई टेस्टिंग करवाई गई है, जिसकी रिपोर्ट अभी आनी बाकी है। यहां यह भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि जिन इमारतों में नुकसान की ज्यादा शिकायतें हैं उनमें से अधिकांश द्वारका एक्सप्रेस-वे के दोनों ओर के सेक्टर्स में स्थित हैं। यह बरसात की दृष्टि से लो-लाइन क्षेत्र होता था, जिसमें कई दशकों तक पानी भरा रहा।
High rise buildings of Gurugram-एससी कुश, रिटायर्ड चीफ टाउन प्लानर क्या कहते हैं
‘ये जरूरी नहीं कि डीटीपी या एटीपी सिविल इंजीनियर हो, क्योंकि यह मल्टी डिस्पिलीन कोर्स होता है। डीटीपी या एसटीपी स्तर के अधिकारी स्ट्रक्चर की जांच करने के लिए सक्षम अधिकारी भी नहीं हैं। इसीलिए हरियाणा बिल्डिंग कोड में भी 15 मीटर से ज्यादा उंची इमारत के लिए बिल्डर को स्वतंत्र एजेंसी के स्ट्रक्चरल इंजीनियर की देखरेख में काम करवाना और इनका सार्टिफिकेट लेना होता है। रेरा एक्ट में इस तरह की घटनाओं के लिए बिल्डर, आर्किटेक्टर व स्ट्रक्चरल इंजीनियर के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है।’
क्या कहते हैं-अभय श्रीवास्तव, प्रमुख, हिपा-सेंटर फाॅर डिजास्टर मैनेजमेंट
‘भूकंप की दृष्टि से गुरुग्राम क्षेत्र जोन चार में शामिल है। लेकिन यहां प्वाइंट 6 स्तर के भूकंप भी आ चुके हैं। ऐसे में स्थिति की गंभीरता समझनी बेहद जरूरी है। निवासियों की बड़े पैमाने पर सुरक्षा के लिए बिल्डिंग बायलाज की सख्ती से पालना, निर्माण के दौरान तथा निर्माण के बाद स्ट्रक्चरल सेफ्टी आॅडिट तथा निर्माण के दौरान उच्च गुणवत्ता वाले पानी का इस्तेमाल बेहद जरूरी है। गुरुग्राम जैसे शहर के लिए विशेष स्ट्रक्चरल आॅडिट टीम का गठन जरूरी है।’
High rise buildings of Gurugram-राव इंद्रजीत सिंह, केंद्रीय राज्यमंत्री- कहते हैं
‘हाईराइज टावर्स में रहने वाले लोगों में विश्वास बहाली और उनकी सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। 23 फरवरी को जिम्मेदार विभागों के अधिकारियों की बैठक बुलाई गई है। जिस भी स्तर पर गड़बड़ी हुई हैं उन्हें खोजकर दोषियों को हर हाल में दंडित करवाया जाएगा। बिल्डर्स को यूं लोगों की जान से खिलवाड़ नहीं करने दिया जाएगा। इस बारे में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से भी बात करेंगे ताकि व्यवस्था में जो खामिया हैं, उन्हें दुरूस्त करवाया जा सके। हादसे के बाद काफी और बिल्डर्स के प्रोजेक्ट्स की शिकायतें मिली हैं और लोग घबराए हुए हैं। इन्हें न्याय दिलवाया जाएगा।’