Common Civil Code and Muslims-
सन 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिए बीएन राव समिति बनी थी। उसी की सिफारिशों पर हिंदू, बौद्ध, सिखों एवं जैनियों के लिए उत्तराधिकार, तलाक एवं संपत्ति से जुडे कानून संशोधित करके वर्ष 1956 में हिंदू उत्तराधिकारी अधिनियम बनाया गया।
वहीं मुस्लिम, ईसाई, पारसियों के लिए अलग व्यक्तिगत कानून चलते रहे। लेकिन यूनिफार्म सिविल कोड (uniform civil code) लागू हुआ तो इसके बाद ये व्यक्तिगत कानून समाप्त हो जाएंगे। सभी धर्मों के लोगों पर एक ही कानून लागू होगा।
दुनिया के 125 देशों में एक समान नागरिक कानून
दुनिया के 125 देशों में एक समान नागरिक कानून लागू है। कॉमन सिविल कोड, जिसमें अधिकार एक समान हो जाएंगे। इस कानून से बाकी किसी समुदाय को ऐतराज नहीं है लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोग घोर विरोध कर रहे हैं। जानकार कहते हैं कि इसकी वजह यह है कि इसी समुदाय को इसका सबसे ज्यादा फायदा मिलने वाला है। खासकर महिलाओं को। उन्हें बराबरी का हक मिलेगा। शिक्षा और शादी का हक सही उम्र और सही शख्स के साथ।
समझिये पूरे मामले को वरिष्ठ पत्रकार के नज़रिये से…
Common Civil Code and Muslims-
हिंदुओं में प्रॉपर्टी के मामले में बेटे-बेटी में भेदभाव नहीं है। पति-पत्नी में भेदभाव नहीं है। मुस्लिम समुदाय में प्रॉपर्टी के मामले में बीवी को शौहर के बराबर दर्जा नहीं दिया जाता है। यूसीसी में बराबरी का अधिकार संपत्ति और वसीयत में मिलेगा। इसी तरह गोद लेने का अधिकार भी एक जैसा होगा। अभी मुसलमानों में गोद लेने पर बच्चे को पूरी संपत्ति देने का प्रावधान नहीं है। ऐसे में प्रॉपर्टी के लिए कई शादियां की जाती हैं। ऐडवोकेट उपाध्याय कहते हैं कि मोटे तौर पर देखें तो समान नागरिक संहिता का फायदा हिंदुओं को नहीं, मुस्लिम बेटियों-बहनों को मिलेगा क्योंकि उन्हें अभी बराबरी का हक नहीं मिला है। इसके बाद पारसी और ईसाई समुदाय को ज्यादा मिलेगा।
बहुत कम लोगों को पता होगा कि देश में ही एक हिस्सा ऐसा है जहां पहले से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। गोवा में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई इसी कानून के तहत रह रहे हैं। दुनिया के 125 देशों में शादी की उम्र लड़के और लड़के की समान है यानी धर्म से इतर नियम एक है। कुछ देशों में 20 या 21 है। भारत में 18-21 का फॉर्म्युला सिर्फ हिंदुओं के लिए है। मुस्लिमों में 9 साल की उम्र रखना कहां तक जायज है? हजार साल पहले की तरह आज तो नहीं रहा जा सकता। 1400 साल पहले तो बिजली, गाड़ी नहीं थी क्या हम पहले की तरह रह सकते हैं?
Common Civil Code and Muslims-मुस्लिम समुदाय के विरोध की वजह?
मुसलमानों को लगता है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड उनके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप है। जबकि इसमें महिला और पुरुषों को समान अधिकार की बात है। इसका धर्म से कोई लेना देना नहीं है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य धार्मिक संगठनों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा इसलिए वे नहीं चाहते कि वे अप्रासंगिक हो जाएं।
समान नियम के खिलाफ मुस्लिम संगठन तर्क देते हैं कि संविधान में सभी को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है और इसलिए वे इसका विरोध करेंगे।
इस्लाम में मान्यता है कि उनका लॉ किसी का बनाया नहीं है, अल्लाह के आदेश के अनुसार चल रहे हैं। लेकिन कुछ चीजों लोगों को खटक रही हैं जैसे 9 साल शादी की उम्र क्या आज के समय में यह ठीक है?
मुस्लिम बुद्धिजीवियों के तर्क

मुसलमान तर्क देते हैं कि महिलाओं को शरीयत में उचित संरक्षण मिला हुआ है। अगर ऐसा है तो उन्हें पुरुषों के बराबर अधिकार क्यों नहीं हैं। एक एक्सपर्ट कहते हैं कि बहुत कुछ स्थिति अब भी अस्पष्ट है। बहुसंख्य और अल्पसंख्यक समुदाय के काफी लोग इससे अनजान हैं। लोग बिना जाने ही घबरा रहे हैं। विरोधी कहते हैं कि UCC से हिंदू कानूनों को सभी धर्मों पर लागू कर दिया जाएगा। जबकि इसका किसी एक धर्म से कोई लेना देना नहीं है। यह एक समानता की बात करता है।
Common Civil Code and Muslims-
आर्टिकल 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता की बात करने वाले कहते हैं कि यह अधिकारों का उल्लंघन होगा। कुछ संगठन यह कहकर लोगों को बरगलाते हैं कि इसे सब पर थोप दिया जाएगा। कुछ सियासी लोग यह कहकर मामले को हल्का करने की कोशिश करते हैं कि अब इसमें ज्यादा कुछ बचा नहीं है जो नया कानून बनाने की जरूरत हो। ये वही लोग हैं जो 370 को समाप्त किए जाने पर यह कह रहे थे कि अब उसमें कुछ बचा नहीं था।