Code Red for Humanity-संयुक्त राष्ट्र की तरफ से सोमवार को जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक पृथ्वी की जलवायु इतनी गर्म होती जा रही है कि एक दशक में तापमान संभवत: उस सीमा के पार पहुंच जाएगा, जिसे दुनिया भर के नेता रोकने का आह्वान करते रहे हैं। यूएन ने इसे Code Red for Humanity यानी मानवता के लिये कोड रेड करार दिया है।
Code Red for Humanity
अमेरिका के वायुमंडलीय अनुसंधान के लिये राष्ट्रीय केंद्र की वरिष्ठ जलवायु वैज्ञानिक और इस रिपोर्ट की सह-लेखक लिंडा मर्न्स ने कहा, ‘इस बात की गारंटी है कि चीजें और बिगड़ने जा रही हैं। मैं ऐसा कोई क्षेत्र नहीं देख पा रही जो सुरक्षित है… कहीं भागने की जगह नहीं है, कहीं छिपने की गुंजाइश नहीं है।’

हाल के वर्षों में तापमान बढ़ा है
जलवायु परिवर्तन पर अधिकार प्राप्त अंतर सरकारी समिति (आईपीसीसी) की रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी की औसत सतह का तापमान 2030 के दशक में 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा, जो पूर्वानुमानों से काफी पहले है। आंकड़े दर्शाते हैं कि हाल के वर्षों में तापमान बढ़ा है। अमेरिका के राष्ट्रीय सामुद्रिक एवं वायुमंडलीय प्रशासन के वरिष्ठ जलवायु सलाहकार और आईपीसीसी के उपाध्यक्ष को बेर्रेट ने कहा, ‘रिपोर्ट हमें बताती है कि जलवायु में हाल के समय में हुए बदलाव व्यापक, त्वरित, गहन हैं और हजारों वर्षों में अभूतपूर्व हैं। हम जिन बदलावों का अनुभव कर रहे हैं, वे तापमान के साथ और बढ़ेंगे।’
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Code Red for Humanity- पेरिस समझौते का क्या?
यह रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन को पूर्णत: मानव निर्मित करार देती है। पेरिस जलवायु समझौते पर 2015 में करीब 200 देशों ने हस्ताक्षर किए थे। इसके तहत वैश्विक औसत तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देने का लक्ष्य रखा गया था और कहा गया था कि इसे पूर्व औद्योगिक समय की तुलना में सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस के पार नहीं होने दिया जाएगा।
बढ़ रही है प्रचंड लू, सूखा, तूफान
रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान से समुद्र कर स्तर बढ़ रहा है, बर्फ का दायरा सिकुड़ रहा है तथा प्रचंड लू, सूखा, बाढ़ और तूफान की घटनाएं बढ़ रही हैं। ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात मजबूत हो रहे हैं, जबकि आर्कटिक समुद्र में गर्मियों में बर्फ पिघल रही है और इस क्षेत्र में हमेशा जमी रहने वाली बर्फ का दायरा घट रहा है। यह सभी चीजें और खराब होती जाएंगी। रिपोर्ट में कहा गया कि उदाहरण के लिए जिस तरह की प्रचंड लू पहले प्रत्येक 50 साल में एक बार आती थी, अब वह हर दशक में एक बार आ रही है और अगर दुनिया का तापमान एक और डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है तो ऐसा प्रत्येक 7 साल में एक बार होने लग जाएगा।
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