समाज ने दी नई जिंदगी, तो समाज सेवा को ही बना लिया धर्म

विकास शर्मा, चंडीगढ़

समाज से मुझे नई जिंदगी मिली है, इसीलिए मेरे लिए समाज सेवा ही धर्म है। यह कहना है पोलियो पीड़ित राहुल का, जिसे साल 1995 की सर्द शाम को उसके परिजन उसे चंडीगढ़ में छोड़कर गायब हो गए थे। पोलियो की वजह से चलने फिरने में असमर्थ राहुल को किसी ने सेक्टर -23 स्थित मदर टेरेसा होम पहुंचा दिया, बस वहीं से शुरू हुआ राहुल का संघर्ष। आज राहुल सेक्टर -22 के सिविल अस्पताल में बतौर लैब टेक्नीशियन काम करते हैं, इसके अलावा वह व्हीलचेयर क्रिकेटर, म्यूजिशियन और मीडिया ग्राफिक्स डिजाइनर भी हैं। राहुल ने बताया कि उन्हें बचपन में ही इसी बात का अहसास हो गया था कि मेरा जीवन, मेरा नहीं है। समाज का है। जिससे समाज ने मुझे सहारा देकर अपने पैरों पर खड़ा किया है, वैसे मैं भी समाज के लिए ही जिऊंगा, क्योंकि यह समाज ही तो मेरा परिवार है।

राहुल ने अपने कई दोस्तों की भी लगाया है समाज सेवा में

Conceptual symbol of multiracial human hands making a circle on white background with a copy space in the middle

राहुल ने बताया कि कि वह सेक्टर -21 के चशायर होम में रहते हैं, यह भवन दिव्यांगों के लिए इकोफ्रैंडली बिल्डिंग है। इस भवन में कई और दिव्यांग बेरोजगार युवा भी रहते हैं। ऐसे में हम सब मिलकर रोजाना सेक्टर -22 के अस्पताल में आ जाते हैं, दिनभर मरीजों की मदद करते हैं, ऐसे में यह बेरोजगारी के मानसिक तनाव से भी बचे रहते हैं। दूसरा लोगों की पीड़ा और दर्द महसूस करने से यह अपनी दिव्यांगता को भी नहीं कोसते हैं।

नर सेवा ही नारायण सेवा

राहुल ने बताया मेरा पालन पोषण मदर टेरसा होम में हुआ है, जहां मैं बचपन से ही देखता आ रहा हूं कि कैसे अपने आपको सड़कों पर छोड़ चले जाते है, और पराए आपको अपना समझकर गले से लगा लेते हैं। यह समाज इतना बुरा नहीं है, इसमें कुछ लोग बुरे हैं तो कुछ हद से ज्यादा अच्छे हैं। राहुल ने बताया कि मैं हमेशा समाज सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहता हूं, मुझसे जो भी समाज के लिए मदद हो सकती है मैं करता हूं। मैंनें सैंकड़ो दिव्यांगों के लाइसेंस, आधार कार्ड, पासपोर्ट बनाने और डॉक्टरी जांच आदि करवाने के कामों में उनकी मदद की है। अपनी कार से चार से पांच लोगों को ड्राइविंग सीखाकर प्रोफेशनल ड्राइवर बनाया है अब यह लोग ड्राइविंग से अपनी रोजी रोटी कमा रहे हैं। मेरा सपना है कि मैं कोई अपना काम खोलूं, जहां सभी दिव्यांग काम और सामाज के लिए प्ररेणा का स्त्रोत बने।

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