Blue Pottery A Vibrant Craft- विदेशों तक लहराया भारत का परचम

Blue Pottery A Vibrant Craft
Blue Pottery A Vibrant Craft

Blue Pottery A Vibrant Craft -जयपुर शहर अपनी ऐतिहासिक विरासत,राजघरानों, किलों, शूरवीरों की गाथाओं और अपनी परम्परागत सांस्कृतिक धरोहर के लिए पर्यटन के मानचित्र पर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। और यहां की ब्लू पॉटरी भी अपनी विशिष्टता के लिए पूरे संसार में अपनी पहचान बनाये हुए है। वैसे तो अब जयपुर में ब्लू पॉटरी कई जगह बनाई जाती है लेकिन बनी पार्क, शिव मार्ग के एक छोर पर शांत से घर में जिसे बहुत करीने से ब्लू पॉटरी की बेहतरीन कलाकृतियों से सजाया गया है और ख़ास बात है कि यहां पर यह पॉटरी बनाई भी जाती है, यह घर है ब्लू पॉटरी के भारत में जन्मदाता पदमश्री स्वर्गीय कृपाल सिंह शेखावत का। उनकी बेटी कुमुद से बात हुई ब्लू पॉटरी को लेकर।

Blue Pottery A Vibrant Craft -मुगल काल में हुई शुरुआत

Blue Pottery A Vibrant Craft
Blue Pottery A Vibrant Craft

ब्लू पॉटरी पर्शिया से आयी थी। भारत में मुगलों के समय इसका विस्तार हुआ, मुग़ल काल की बहुत सी इमारतों में या मकबरों में ब्लू टाइल्स का इस्तेमाल भी हुआ। ब्लू पॉटरी में कई तरह के प्रयोग किये गए और विभिन्न प्रकार के बर्तन, फूल दान, सजावट का सामान बनाया गया। सफ़ेद रंग की इन कलाकृतियों को कोबाल्ट के नीले रंग से सजाया-संवारा गया। इन पर फूल-पत्तों, पक्षियों और इतिहास के कई महत्वपूर्ण दृश्यों को भी चित्रित किया गया। इतिहासकारों का मानना है की 14वीं शताब्दी में मंगोल कारीगरों ने इसकी शुरुआत की।

जयपुर में फला-फूला हुनर

चीन, पर्शिया और मध्य एशिया के कई भागों में इसकी शुरुआत (Blue Pottery) हुई जहां-जहां मंगोल कारीगर बस गए थे। भारत में ख़ासकर जयपुर में जिसे ब्लू पॉटरी का गढ़ कहा जाता है, यह कब शुरू हुई कहना कठिन है। जयपुर की स्थापना महाराजा सवाई जय सिंह ने 1727 में की थी , तब उन्होंने देश के दूसरे भागों से कई कारीगरों को यहां बुलाया था जो विभिन्न व्यवसायों से जुड़े हुए थे। 1835 से 1880 के बीच सवाई राम सिंह का राज्य काल था, जिस दौरान उन्होंने जयपुर में एक कला स्कूल की स्थापना की और देश भर से बुलाये गए कारीगरों को अपने हुनर के अनुसार काम करने के लिए कहा। कई सालों तक जयपुर में हस्तशिल्प का कार्य हुआ और इन कारीगरों और शिल्पकारों ने अपनी साख भी बनाई, लेकिन फिर यह कला धीरे-धीरे लुप्त हो गयी।

Blue Pottery A Vibrant Craft -कृपाल शेखावत का बड़ा योगदान

एक लंबे अंतराल के बाद ,स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक कमला देवी चट्टोपाध्याय और राजमाता गायत्री देवी के प्रयासों से इस कला को फिर से जीवित किया गया। शिल्पकार कृपाल सिंह शेखावत ने इस कला को फिर से जयपुर में प्रचलित किया। उन्होंने पेंटिंग की शिक्षा शांति निकेतन और टोक्यो विश्वविद्यालय से हासिल की थी। पॉटरी में उनकी ख़ास रुचि थी। एक समय ऐसा था जब उन्होंने शिल्प कला मंदिर में इस कला में रुचि रखने वाले छात्रों को प्रशिक्षित भी किया। पदमश्री कृपाल सिंह शेखावत ने स्टोन पॉटरी की शुरुआत की।

अलग-अलग विधि का प्रयोग

ब्लू पॉटरी में शिल्पकार अलग-अलग विधि का प्रयोग करते हैं। क्वार्ट्ज़ पत्थर का पाउडर , शीशे का पाउडर, बोरेक्स, गौंद और मुल्तानी मिट्टी को पानी में मिला कर गूंथ कर इसके लिये तैयार किया जाता है। फिर इसे मनचाहा आकार दिया जाता है। दो-तीन दिन सूरज की रोशनी में सुखाकर इन्हें रेगमार से समतल किया जाता है । सूखने के बाद इनको एक बार फिर से स्टोन पाउडर, कांच के पाउडर के घोल से निकाला जाता है। इसके बाद फिर कोबाल्ट ऑक्साइड और फेर्रो रंगों से अलग-अलग तरह की चित्रकारी की जाती है। एक और रासायनिक प्रक्रिया से गुजरते हुए फिर इन कृतियों को जिनमें बर्तन, फूल दान,साबुनदानी,कप, सजावट की वस्तुएं शामिल हैं, को एक पत्थर की बड़ी ट्रे पर रख कर मिट्टी की बड़ी भठ्ठी में रखा जाता है। एक समय में लगभग 400 कला कृतियां रखी जा सकती हैं। यह भठ्ठी हाथ से बनाई गयी है जो पारंपरिक है और लकड़ी से ऊर्जा ग्रहण करती है। एक ख़ास तापमान पर इन्हें पकाया जाता है ताकि ये मज़बूत हो जाएं और रंग न छूटे। कुछ समय तक इन्हें ठंडा होने के लिए रखा जाता है।विदेशों में भी उनकी ब्लू पॉटरी की बहुत सराहना की गयी। पदमश्री कृपाल सिंह शेखावत को इस विधा के लिए बहुत सारे पुरस्कार और सराहना भी मिली । भारत सरकार ने 1974 में उन्हें पदमश्री से भी नवाजा व 2002 में शिल्पगुरु सम्मान भी उन्हें दिया। विलुप्त हो गयी ब्लू पॉटरी की कला को फिर से जीवन देने के लिए उन्हें सदैव याद रखा जाएगा।

Blue Pottery A Vibrant Craft -निर्यात से विदेशों तक धूम

साल 2008 में कृपाल के निधन के बाद कुमुद सिंह राठौर और उनकी बहन जो वर्षों से ब्लू पॉटरी बनाने में अपने पिता का साथ देती रहीं, इस खूबसूरत और ऐतिहासिक कला को आगे बढ़ा रही हैं। उनके साथ इस बेहतरीन स्टूडियो में सात और शिल्पकार काम करते हैं। ‘कृपाल कुंभ’ नाम से यह ब्लू पॉटरी इंग्लैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया,साउथ अफ्रीका और हॉन्गकॉन्ग जैसे देशों में निर्यात की जाती है। आप अगर जयपुर जाएं तो कृपाल कुम्भ जाएं , आप के लिए ब्लू पॉटरी में गृहसज्जा के लिए कुछ न कुछ ज़रूर मिलेगा। अगर आप कुमुद जी की तरह चाय के शौकीन हैं तो ब्लू पॉटरी का सुन्दर कप घर ला सकते हैं मात्र 800 रुपये में।