9th to 12th century sculptures found- खोई हुई विरासत की खोज करने वाले एक समूह ने शुक्रवार को दावा किया कि उन्होंने भुवनेश्वर-पुरी मार्ग पर सातशंखा के पास लौदंकी गांव में प्राचीन मूर्तियों एवं चौखटों के खजाने की खोज की है। 6 सदस्यों की टीम जो रत्नाचीरा घाटी का सर्वेक्षण कर रही थी, को बृहस्पतिवार को प्राचीनतम मूर्तियां मिलीं जब वे पिपली से महज 15 किमी और भुवनेश्वर से 40 किमी दूर गांव में प्राचीन गाटेश्वर मंदिर परिसर का निरीक्षण कर रहे थे।
1999 में भीषण चक्रवात के दौरान खो गया था यह खजाना

टीम के प्रमुख, अनिल धीर ने बताया कि मंदिर की रसोई के पिछले हिस्से में कूड़े के ढेर के नीचे करीब 2 दर्जन पुरावशेष मिले। टीम ने इससे पहले परिसर के चारों ओर बिखरे एक प्राचीन मंदिर के सतही अवशेषों की खोज की थी जिसमें नक्काशीदार पत्थर के खंड शामिल थे। स्थानीय ग्रामीणों ने टीम को बताया कि राज्य के पुरातत्व विभाग ने 1999 में मंदिर की मरम्मत के दौरान कई पुरानी मूर्तियां खोजी थी। इन्हें राज्य संग्राहलय ले जाने के लिए अलग रख दिया गया था। हालांकि, 1999 में भीषण चक्रवात के दौरान यह खजाना खो गया। धीर ने कहा कि अधिकारी भी इन मूर्तियों को भूल गए और तब से पिछले दो दशकों से ये कूड़े के ढेर में गड़ी रहीं।
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9th to 12th century sculptures found-ये मूर्ति मिलीं
रत्नाचीरा परियोजना (Ratnachira Project) का नेतृत्व कर रहे ‘रिडस्कवर लॉस्ट हैरिटेज'(‘Ridscover Lost Heritage‘) के मुख्य समन्वयक दीपक कुमार नायक ने बताया कि खोजी गई मूर्तियों में मयूरासन में भगवान कार्तिकेय की 5 फुट ऊंची मू्र्ति, अर्धपरायनिका में 2 फुट ऊंचे गणेश, 2 फुट ऊंची महिसासुरमर्दिनी, आलस्यकन्या की जटिल नक्काशी के साथ मंदिर की चौखटों के अलावा मनसा देवी की 7 सिरों के सर्प वाली मूर्ति, ब्रूशव, नर विदाला आदि शामिल हैं। नायक ने बताया कि भगवान शिव का छोटा पीतल का मुखौटा भी मिला। पीतल के मुखौटे को छोड़कर अन्य सभी पुरावशेष नौवीं से 12वीं शताब्दी के बीच की अवधि के हैं। मूर्तियों को मंदिर के अंदर रखा गया है और अधिकारियों को सूचित कर दिया गया है।