42 साल का सियासी सफर पूरा कर वरिष्ठ भाजपा नेता, ओजस्वी वक्ता, प्रखर राजनेता और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 67 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया. मंगलवार रात ( 6 अगस्त 2019) को हार्ट अटैक आने के बाद उन्हें दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका. 42 साल के सियासी करियर में सुषमा ने करीब 5 राज्यों में अपनी अमिट राजनीतिक छाप छोड़ी. अपनी हाजिर जवाबी के लिए जानी जाने वाली सुषमा स्वराज ने राजनीतिक करियर की शुरुआत हरियाणा से की थी. वे अंबाला ज़िले से ताल्लुक रखती थीं। http://नहीं रहीं सुषमा स्वराज, पूर्व विदेश मंत्री ने एम्स में ली…
हरियाणा से शुरू हुआ सियासी सफर, 25 की उम्र में पहला चुनाव जीता

14 फरवरी 1952 को हरियाणा के अंबाला में पैदा हुई सुषमा स्वराज ने बीए और एलएलबी की पढ़ाई की थी. सुषमा ने 25 साल की उम्र में सबसे पहला चुनाव लड़ा था. वह हरियाणा की अंबाला सीट से चुनाव जीतकर देश की सबसे युवा विधायक बनी थीं. उन्हें देवीलाल सरकार में मंत्री पद की भी शपथ दिलाई गई थी. 1977 से 1979 तक सुषमा ने सामाजिक कल्याण, श्रम और रोजगार जैसे 8 पद संभाले. 1987 में सुषमा स्वराज ने फिर चुनाव जीता और 1987 से 1990 तक आपूर्ति, खाद्य और शिक्षा मंत्रालय का जिम्मा संभाला.
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42 साल का सियासी सफर, मध्य प्रदेश –यूपी-उत्तराखंड से लेकर कर्नाटक तक

सुषमा का यूपी से भी राजीतिक नाता था. सुषमा 2000 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सदस्य चुनी गईं थीं. उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद उत्तराखंड बना तो वह बतौर राज्यसभा सदस्य वहां भी सक्रिय भूमिका में रहीं. वहीं, दक्षिण की बात करें तो सुषमा ने 1999 में बेल्लारी लोकसभा सीट पर कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था.

इस चुनाव के दौरान सुषमा स्वराज ने स्थानीय मतदाताओं से सहज संवाद के लिए कन्नड़ भाषा भी सीखी थी. कर्नाटक के बेल्लारी लोकसभा सीट का चुनाव काफी चर्चित रहा था. हालांकि वह इस चुनाव में 56 हजार वोटों से हार गई थीं.
http://विदिशा से नहीं इस जगह से चुनाव लड़ना चाहती थीं सुषमा…
मध्य प्रदेश से सुषमा स्वराज दो बार लोकसभा चुनाव जीती थीं. उन्होंने पहली बार विदिशा सीट से 2009 में और दूसरी बार 2014 में चुनाव जीता था. 2014 में मोदी सरकार में उन्हें विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. उन्होंने स्वास्थ्य कारणों की वजह से 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने से मना कर दिया था.